——————————————— फ़िरोज़ खान गाँधी का पोता राहुल गाँधी हिन्दू समाज को शिक्षित कर रहा है और हिन्दु व हिंदुत्व का व्यापक अंतर समझा रहा है। हिंदू गांधी वाला हिंदू है और हिंदुत्व गोडसे वाला हिंदुत्व है। फ़िरोज़ खान गाँधी का पोता राहुल गांधी जनेऊ धारी हिन्दु है, इसलिए केरल की सड़कों पर गाय […]
Month: February 2022
एक बेटी सबके आगे ….
कविता — 27 बेटियां मरती हैं अपने देश में अपमान से। जी नहीं सकती हैं जीवन मान से सम्मान से।। जिंदगी बोझिल हुई है काटे नहीं कट पा रही। बूढ़े पिता की आंखें दुख को देख भी नहीं पा रही।। मां के दिल में दर्द गहरा, हो गया आघात से …. जी नहीं सकती हैं […]
वेदों में राष्ट्रभक्ति
अर्थववेद में ऋषियों ने कहा- भद्रं इच्छन्तः ऋषयः स्वर्विदः / तपो दीक्षां उपसेदु: अग्रे/ ततो राष्ट्रं बलं ओजश्च जातम्/ तदस्मै देवाः उपसं नमन्तु यानि आत्मज्ञानी ऋषियों ने जगत का कल्याण करने की इच्छा से सृष्टि के आरंभ में जो दीक्षा लेकर तप किया था, उससे राष्ट्र-निर्माण हुआ, राष्ट्रीय बल और ओज भी प्रकट हुआ। इसलिये […]
क्रंदन दूर होगा एक दिन ……
कविता – 26 क्रंदन दूर होगा एक दिन …… निशा निराशा की आये उत्साह बनाए रखना तुम। लोग नकारा कहें भले उत्कर्ष पे नजरें रखना तुम।। भवसिंधु से तरने हेतु निज पूर्वजों से अनुभव लो। उल्टे प्रकृति के चलो नहीं मन में ये ही नियम धरो।। कुछ भी दुष्कर है नहीं, […]
मदन गड़रिया धन्ना गूजर आगे बढ़े वीर सुलखान, रूपन बारी खुनखुन तेली इनके आगे बचे न प्रान। लला तमोली धनुवां तेली रन में कबहुं न मानी हार, भगे सिपाही गढ़ माडौ के अपनी छोड़-छोड़ तरवार। अगर आपने ये चार लाइन पढ़ ली हैं तो शायद अंदाजा भी हो गया होगा कि ये विख्यात लोककाव्य “आल्हा-उदल” […]
“ज्ञान कर्म और उपासना, व्यक्ति इन तीनों से कभी भी खाली नहीं रहता। इन तीनों को शुद्ध बनाएं। तभी आपका इस जीवन का भविष्य तथा अगले जन्मों का भविष्य सुखदायक होगा।” “कर्मों का फल” बहुत जटिल विषय है। बड़े-बड़े विद्वान इस विषय को ठीक से समझ नहीं पाते। “ऋषियों ने वेदों का गहराई से अध्ययन […]
दुनिया में देखें तो इतिहास वाम धूर्तों का प्रिय विषय रहा है हमेशा से। क्योंकि इतिहास के पुनरलेखन या पुनरपाठ के जरिए समाज में संघर्ष के बीज बोने की क्षमताएं असीम हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय को ही देख लें। वहां इतिहास पढ़ने वाले खुद को थोड़ा आभिजात्य मानते हैं। रोमिला थापर, बिपिन चंद्रा, हरबंश […]
इस शीर्षक को पढ़ कर आप अवश्य चौकेंगे, लेकिन सत्ता पिपासा के लिए जवाहरलाल नेहरू के ये कुछ व्यक्तिगत रहस्य भी जानने से यह स्पष्ट होता है कि स्वतंत्रता के उपरान्त भी भारत क्यों अपने गौरव को पुन: स्थापित न कर सका __ विनोद कुमार सर्वोदय श्री नरेन्द्र सिंह जी जो ‘सरीला’ रियासत (टीकमगढ़ के […]
डॉ.प्रवीण तिवारी आधुनिक इतिहासकारों का भारत के विषय में सबसे बड़ा गड़बड़झाला ये सामने आता है कि वे सिंधुघाटी सभ्यता को दुनिया की पहली विकसित नगरीय सभ्यता मानते हैं, लेकिन वैदिक सभ्यता को इसके बाद का मानते हैं। पाश्चात्य जगत के इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को बहुत असमंजस में रखा। समस्या यह थी कि वह […]
स्वामी ओमानंद जी महाराज १८५७ से बहुत पूर्व से ही अनेक कूटनीतिज्ञ अंग्रेजों को भारतीयों को ईसाई बनाने में ही अपने राज्य की स्थिरता दिखाई देती थी । ईस्ट इण्डिया कम्पनी ‘ के अध्यक्ष मिस्टर मैङ्गल्स ने १८५७ में पार्लियामेन्ट में कहा था —- ” परमात्मा ने हिन्दुस्तान का विशाल साम्राज्य इङ्गलिस्तान को सौंपा है […]