डॉ. वेदप्रताप वैदिक हैदराबाद की नगर-निगम के चुनाव और उसके परिणामों की राष्ट्रीय स्तर पर विवेचना हो रही है लेकिन मुझे इस स्थानीय बिल में से एक अंतरराष्ट्रीय सांप निकलता दिखाई पड़ रहा है। यह स्थानीय नहीं, अंतरराष्ट्रीय चुनाव साबित हो सकता है। यह एक भारत को कई भारत बनानेवाली घटना बन सकता है। मोहम्मद […]
महीना: दिसम्बर 2020
*दूसरे लोगों को उचित सम्मान दीजिए। और उनके वास्तविक प्रेम का लाभ लीजिए।* संसार में सब प्रकार के लोग हैं। आपसे कम योग्यता वाले, आपके समान योग्यता वाले और आपसे अधिक योग्यता वाले भी हैं। आपको इन सब के साथ व्यवहार करना पड़ता है। जो आपसे कम योग्यता वाले हैं, उनके साथ आप वैसा व्यवहार […]
6 दिसम्बर/इतिहास-स्मृति भारत में विधर्मी आक्रमणकारियों ने बड़ी संख्या में हिन्दू मन्दिरों का विध्वंस किया। स्वतन्त्रता के बाद सरकार ने मुस्लिम वोटों के लालच में ऐसी मस्जिदों, मजारों आदि को बना रहने दिया। इनमें से श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर (अयोध्या), श्रीकृष्ण जन्मभूमि (मथुरा) और काशी विश्वनाथ मन्दिर के सीने पर बनी मस्जिदें सदा से हिन्दुओं […]
–मनमोहन कुमार आर्य परमात्मा ने सृष्टि के आरम्भ में वेदों का ज्ञान दिया था। इस ज्ञान को देने का उद्देश्य अमैथुनी सृष्टि में उत्पन्न व उसके बाद जन्म लेने वाले मनुष्यों की भाषा एवं ज्ञान की आवश्यकताओं को पूरा करना था। सृष्टि के आरम्भ से लेकर महाभारत काल पर्यन्त भारत वा आर्याव्रत सहित विश्व भर की भाषा संस्कृत ही थी जो कालान्तर में अपभ्रंस व भौगोलिक कारणों से अन्य भाषाओं में परिवर्तित होती रही और उसका परिवर्तित रूप ही लोगों में अधिक लोकप्रिय होता रहा। भारत में सृष्टि के आरम्भ से महाभारत काल के कुछ काल बाद तक जैमिनी ऋषि पर्यन्त ऋषि–परम्परा चलने से देश में संस्कृत का पठन पाठन व व्यवहार कम तो हुआ परन्तु काशी, मथुरा व देश के अनेक नगरों व ग्रामों में भी संस्कृत का व्यवहार व शिक्षण चलता रहा। तक्षशिला और नालन्दा आदि अनेक स्थानों में विश्वविद्यालय हुआ करते थे जहां प्रभूत हस्तलिखित ग्रन्थ हुआ करते थे जिन्हें विदेशी मुस्लिम आतताईयों ने जला कर नष्ट किया। इससे यह ज्ञात होता है कि भारत में संस्कृत का पठन–पाठन काशी, मथुरा, तक्षशिला एवं नालन्दा आदि अनेक स्थानों पर चलता रहा था। स्वामी शंकराचार्य जी दक्षिण भारत में उत्पन्न हुए। वह भी शास्त्रों के उच्च कोटि के विद्वान थे। आज भी उनका पूरे संसार में यश विद्यमान है। ऋषि दयानन्द के समय में भी काशी व मथुरा सहित देश के अनेक भागों में संस्कृत के अनेक विद्वान थे। वह शास्त्रीय सिद्धान्तों की दृष्टि से […]
उद्योग 1976 तक तिब्बत में उद्योगों की संख्या 272 बताई जाती थी। उनमें एक डेरी प्लांट जिसमें डिब्बाबन्द सुखाये गये दूध का उत्पादन होता है, चमड़े के कारखाने और ऊन की मिलें सम्मिलित हैं। हालाँकि, जैसा कि दूसरे उद्योगों के साथ होता है, उत्पादित की गई सामग्री तिब्बत से बाहर चीन, हांगकांग और नेपाल ले […]
जातीय भेदभाव सात वर्ष की अवस्था से तिब्बती बच्चे चीनियों के हाथों संस्थागत भेदभाव झेलते हैं। अगर वे विद्यालय में जाते हैं तो वे पाते हैं कि जरा से बहाने से उन्हें निष्कासित कर दिया जाता है जब कि चीनी बच्चों को हमेशा ही प्रोत्साहित किया जाता है। किसी भी व्यक्ति का ‘वर्ग’ उसके […]
फ्रैंच मूल के गोतिए ने फ्रांस के गौरवों में से एक नेपोलियन से ज्यादा श्रेयस्कर छत्रपति शिवाजी महाराज को माना है। गोतिए लिखते हैं- छत्रपति शिवाजी महाराज के लिए मेरे मन में प्रशंसा का बहुत गहरा भाव है, क्योंकि वह भारत के नेपोलियन हैं, एक अविश्वास्य व्यक्ति, जो अपने सिर्फ कुछ सौ पुरुषों और […]
सामान्यतया हमारी ऐसी धारणा है कि जब रामचंद्र जी इस धरती पर आए तो उनके शासनकाल को रामराज्य की उपाधि दी गई । जबकि ऐसा नहीं है । रामराज्य की परिकल्पना राम से भी पूर्व से चली आ रही है । वास्तव में जहां सत्य ,न्याय ,धर्म ,नीति और विधि के आधार पर शासन […]
प्रो. कुसुमलता केडिया यह आज हमें पता है कि भारत का वर्तमान स्वरूप 15 अगस्त 1947 की देन है। आज अखंड भारत की कल्पना में हम केवल पाकिस्तान और बांग्लादेश को जोड़ते हैं। परंतु हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि बर्मा, श्रीलंका, अफगानिस्तान आदि भी भारत के ही भाग रहे हैं। यदि हम केवल […]
जवाहरलाल कौल शास्त्र के रूप में अर्थशास्त्र जैसा अमेरिका में पढ़ाया जाता है, उसी प्रकार हमारे देश में भी पढ़ाया जाता रहा है। उसके नियम, उसके सूत्र और उसकी धारणाएं सब वैश्विक हैं। सैद्धांतिक स्तर पर यह ठीक भी है, लेकिन व्यवहार में यह सही नहीं है। व्यवहार में उन नियमों, कायदों और सूत्रों […]