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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-95

गीता का अठारहवां अध्याय त्रिविध सुख क्या है तीसरे सुख अर्थात तामसिक सुख के विषय में श्रीकृष्ण जी का मानना है कि तामसिक सुख प्रारम्भ से अन्त तक आत्मा को मोह में फंसाये रखता है। मोह का आवरण सबसे अधिक भयानक होता है। यह एक ऐसा आवरण है जिससे हर व्यक्ति चाहकर भी मुक्त नहीं […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-94

गीता का अठारहवां अध्याय अधर्म को धर्म समझ लेना घोर अज्ञानता का प्रतीक है। मध्यकाल में बड़े-बड़े राजा महाराजाओं ने और सुल्तानों ने अधर्म को धर्म समझकर महान नरसंहारों को अंजाम दिया। ये ऐसे नरसंहार थे -जिनसे मानवता सिहर उठी थी। वास्तव में ये कार्य तामसी बुद्घि के कार्य थे। ऐसे लोगों से संसार को […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-93

गीता का अठारहवां अध्याय त्रिविध कत्र्ता और गीता त्रिविध कर्म के पश्चात श्रीकृष्णजी त्रिविध कत्र्ता पर आते हैं। इसके विषय में वह बताते हैं कि कत्र्ता भी सात्विक, राजसिक और तामसिक-तीन प्रकार के ही होते हैं। सात्विक कत्र्ता के बारे में बताते हुए श्रीकृष्णजी कहते हैं कि ऐसा कत्र्ता आसक्ति से मुक्त रहता है, उसका […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-92

गीता का अठारहवां अध्याय अंग्रेजों के कानून ने किसी ‘डायर’ को फांसी न देकर और हर किसी ‘भगतसिंह’ को फांसी देकर मानवता के विरूद्घ अपराध किया। यह न्याय नहीं अन्याय था। यद्यपि अंग्रेज अपने आपको न्यायप्रिय जाति सिद्घ करने का एड़ी चोटी का प्रयास आज भी करते हैं। इसके विपरीत गीता दुष्ट के विनाश करने […]

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विशेष संपादकीय

आरक्षण पर विचार आवश्यक

भारत में आरक्षण को जातीय आधार पर देकर भूल की गयी- अब इस पर देश की युवा पीढ़ी में एक विशेष प्रकार की बहस चल रही है। जातीय आधार पर आरक्षण न देकर आर्थिक आधार पर लोगों को राजकीय संरक्षण मिलना चाहिए था- अब इस विचार से अधिकांश लोग सहमत होते जा रहे हैं। जिन […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-91

गीता का अठारहवां अध्याय योगीराज श्रीकृष्णजी अर्जुन को बताते हैं कि किसी भी देहधारी के लिए कर्मों का पूर्ण त्याग सम्भव नहीं है। ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई व्यक्ति कर्मों का पूर्ण त्याग कर दे। कर्म तो लगा रहता है, चलता रहता है। गीता की एक ही शर्त है जिसे श्रीकृष्णजी पुन: दोहरा […]

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राजनीति

सियासत की मजबूरी, गठबंधन जरूरी

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता। सत्ता हासिल करने के लिए कब कौन किसका दामन थाम ले कुछ कहा नहीं जा सकता। अवसरवाद की राजनीति में नेताओं के चाल, चरित्र व चेहरे को समझ पाना थोड़ा मुश्किल है। भाजपा के बढ़ते जनाधार ने देश की राजनीति को एक नए मोड़ पर […]

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राजनीति

1765 सांसदो, विधायकों के विरुद्ध वाद लंबित

कहावत है कि जैसा राजा होता है वैसी प्रजा होती है। यह बात बहुत पहले चाणक्य ने कही थी। यदि यह बात अक्षरश: आज देश में लागू हो जाए तो सचमुच प्रलय आ जाएगी और उस प्रलय में हम सब बह जाएंगे। बात यह है कि भारत की केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-90

गीता का अठारहवां अध्याय अठारहवें अध्याय में गीता समाप्त हो जाती है। इसे एक प्रकार से ‘गीता’ का उपसंहार कहा जा सकता है। जिन-जिन गूढ़ बातों पर या ज्ञान की गहरी बातों पर पूर्व अध्याय में प्रकाश डाला गया है, उन सबका निचोड़ इस अध्याय में दिया गया है। एक अच्छे लेखक की अपनी विशेषता […]

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प्रमुख समाचार/संपादकीय

माँ का ऋण चुकाना कठिन है

पूजनीया माताजी श्रीमति सत्यवती आर्या जी की 12वीं पुण्यतिथि 18 मार्च 2018 पर विशेष मातृ-पितृ ऋण हमारे ऊपर सबसे अधिक माना गया है। संसार में आकर सबसे पहले मां हमको संसार और संसार वालों के बारे में सूचना देती है, बताती है कि कौन व्यक्ति तुम्हारा क्या लगता है? इस प्रकार पिता से भी सबसे […]

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