गीता का सातवां अध्याय और विश्व समाज ईश्वर विषयक भ्रम जो लोग विभिन्न देवी देवताओं की पूजा में लगे रहते हैं, या विभिन्न व्यक्तियों को ईश्वर मानकर उनकी पूजा करते रहते हैं-उन्हें श्रीकृष्ण जी बुद्घिहीन मानते हैं। कहते हैं कि जो बुद्घिहीन लोग मुझ अव्यक्त को व्यक्त हुआ मानने लगते हैं, अर्थात भिन्न-भिन्न देवताओं के […]
Month: January 2018
विकेंद्रित विकास से आर्थिक समानता
आज जरूरत है कि विकास के मॉडल में आमूलचूल परिवर्तन लाया जाए। हमें जीडीपी केंद्रित विकास के बजाय रोजगारयुक्त समानता आधारित और विकेंद्रित ग्रोथ का मॉडल अपनाना होगा। सरकारों द्वारा पूंजीपतियों को दी जाने वाली रियायतों को न्यूनतम करते हुए उसके स्थान पर लघु एवं कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देते हुए उनकी रोजगार सृजन क्षमता […]
गीता का सातवां अध्याय और विश्व समाज ज्ञान-विज्ञान और ईश्वर का ध्यान आत्र्त-जिज्ञासु भजें अर्थार्थी दिन रात। युक्तात्मा ज्ञानी भजै उसकी अनोखी बात।। श्रीकृष्ण दूसरे प्रकार के भक्त का नाम जिज्ञासु बताते हैं। जिज्ञासु का अर्थ है-जानने की इच्छा रखने वाला। यह भक्त अपना ज्ञानवद्र्घन करने के लिए मेधा की उपासना करता है। वह ईश्वर […]
उल्टा पड़ा नोटबंदी का दांव
2017 की पहली तिमाही में हमारी ग्रोथ रेट 5.7 प्रतिशत थी, जो कि दूसरी तिमाही में 6.3 प्रतिशत हो गई है। हालांकि यह सुधार प्रभावी नहीं है। न्यून ग्रोथ रेट का पहला कारण काले धन पर सरकार का प्रहार है। जी हां, सरकार की स्वच्छता ही सरकार को ले डूब रही है। जो व्यक्ति तंबाकू […]
गीता का सातवां अध्याय और विश्व समाज आज के संसार में प्रकृतिवादी लोग ऐसी ही मानसिकता और सोच रखते हैं। प्रकृतिवादी नास्तिक बन गये हैं। उन्हें प्रकृति से आगे ईश्वर के होने की बात स्वीकार ही नहीं है। वे मानते हैं कि ये प्रकृति ही सब कुछ है और यह स्वयं यन्त्रवत चल रही है। […]
गीता का सातवां अध्याय और विश्व समाज महर्षि पतंजलि ‘योग दर्शन’ में कहते हैं कि संसार और शरीर आदि के अनित्य पदार्थों को नित्य, मिथ्या-भाषण, चोरी आदि अपवित्र कर्मों को पवित्र, विषय सेवन आदि दु:ख को सुख रूप, शरीर और भौतिक जड़ पदार्थों को चेतन समझना यह अविद्या है। अनित्य को नित्य मानकर करै जो […]
दीपावली के अवसर पर महर्षि दयानंद को निर्वाण मिला था। अत: इस पावन पर्व पर महर्षि दयानंद का स्मरण हो आना स्वाभाविक है। उनका भारतीय स्वातन्त्र्य संग्राम में अनुपम और अद्वितीय योगदान था। भारत में राष्ट्रवाद की अलख जगाने वाले महर्षि दयानंद के विषय में ‘भारतीय स्वातन्त्र्य संग्राम में आर्यसमाज का योगदान’ के विद्वान लेखक […]
आइटी उद्योग के स्याह पहलू
एक वक्त था जब देश में हुई आइटी क्रांति ने रोजगार को पंख लगा दिए थे। एक ऐसे दौर में, जब देश का पड़ा-लिखा नौजवान कोई मामूली वेतन वाली नौकरी करने या फिर बेरोजगार रहने को मजबूर था, आइटी क्रांति की बदौलत देश-विदेश में उम्दा रोजगार का हकदार बना था और अपनी प्रतिभा का परचम […]
गीता का सातवां अध्याय और विश्व समाज ज्ञान-विज्ञान और ईश्वर का ध्यान गीता के सातवें अध्याय का शुभारम्भ करते हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि हे पार्थ! मुझ में मन को आसक्त करके अर्थात कर्मफल की आसक्ति के भाव को छोडक़र और संसार के भोगों या विषय वासनाओं को त्यागकर जिस प्रकार तू मुझे […]
चोरी का वैधानिकीकरण
देश का आधुनिकता और ऐश्वर्य के नाम पर भौतिकवाद ज्यों-ज्यों पांव पसारता जा रहा है-मानव जीवन पर उसका उतना ही घातक प्रभाव पड़ता जा रहा है। उदाहरण के लिए आप ए.सी. को लें। ए.सी. के प्रयोग से निकलने वाली एक घातक गैस मानव स्वास्थ्य को बड़ी गहराई से और घातक रूप से प्रभावित कर रही […]