बिखरे मोती-भाग 197 यहां तक कि सद्गुणों के कारण व्यक्ति का इस संसार में ही नहीं अपितु स्वर्ग में भी उसका आसन श्रेष्ठ होता है। अत: हो सके तो संसार में अपने सद्गुणों का, अच्छे हुनर का अधिक से अधिक दान दीजिए। आपके द्वारा दान में दिये गये सद्गुण किसी को फर्श से उठाकर अर्श […]
Month: October 2017
इसके पश्चात पुन: गायत्री मंत्र का स्थान वैदिक सन्ध्या में आता है। जिसकी व्याख्या की हम पुन: कोई आवश्यकता नहीं मान रहे हैं। उसके पश्चात अगला मंत्र ‘समर्पण’ का है- हे ईश्वर दयानिधे भवत्कृपयानेन जपोपासनादिकर्मणा धर्मार्थकाममोक्षाणां सद्य: सिद्विर्भवेन्न:। अर्थात-”हे ईश्वर दयानिधे! आपकी कृपा से जो-जो उत्तम-उत्तम काम हम लोग करते हैं, वे सब आपके अर्पण […]
विशाल शत्रु दल से जीत पाना हमारे योद्घाओं के लिए तभी संभव हो पाया था-जब हमने ईश्वरीय शक्ति को अपना सम्बल मान लिया था। हम चोर नहीं थे और ना ही हम कोई अनुचित कार्य कर रहे थे, इसलिए ईश्वर ने भी हमारा साथ दिया और हमसे संसार में विषम परिस्थितियों में भी बड़े-बड़े कार्य […]
जो जन अज्ञानवश हमसे वैर करता है या किसी प्रकार का द्वेष भाव रखता है, और जिससे हम स्वयं किसी प्रकार का वैर या द्वेषभाव रखते हैं-उस वैर भाव को हम आपके न्याय रूपी जबड़े में रखते हैं। जबड़े की यह विशेषता होती है कि जो कुछ उसके नीचे आ जाता है उसे वह चबा […]