हम महाभारत के पृष्ठ पलटें तो पता चलता है कि दुर्योधन युधिष्ठिर की श्री को देखकर सदा जलता रहता था। वह अपने पिता धृतराष्ट्र से कहता भी है कि मैं जो कुछ भोगता हूं युधिष्ठिर की लक्ष्मी देखकर उनमें मन नहीं रमता। युधिष्ठिर की दैदीप्यमान राजश्री ही मेरे तेज को नष्ट कर रही है। इस […]
महीना: सितम्बर 2017
देश की राजनीति में और देश के हर राजनीतिक दल में कुछ ऐसे लोग हुआ करते हैं जिन्हें लोकमान्यता तो प्राप्त नहीं होती-पर वे सत्ता सुख भोगने में सफल हो जाते हैं। हमारी संविधान प्रतिपादित लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसे छिद्र हैं जिनमें से कुछ लोग देश के लोकतंत्र के पावन मंदिर संसद के ऊपरी सदन […]
तुर्किस्तान कर्नल टॉड का कहना है कि-”जैसलमेर के वृत्तांत में लिखा है कि यहां के यदु विक्रम से काफी समय पूर्व से ही गजनी और समरकन्द में शासन करते थे। वे यहां महाभारत के युद्घ के पश्चात आकर बस गये थे और फिर इस्लाम के उदय होने के पश्चात उन्हें भारत में धकेल दिया गया […]
वीरता को अपने आधीन करके उसे अपनी चेरी बनाकर रखना हर शासक के लिए आवश्यक माना जाता है, विशेषत: तब जबकि वीरता या साहस किसी विपरीत पक्ष वाले व्यक्ति के पास हों। तब हर शासक यह मानता है कि यदि इस व्यक्ति का पूर्णत: दमन करके नही रखा गया तो यह भविष्य में तेरे लिए […]
बिखरे मोती-भाग 195 जो लोग इस तन को सजाने संवारने में, उसे हर प्रकार से प्रसन्न रखने में उसके लिए ‘येन केन प्रकारेण’ अर्थोपार्जन करने में अर्थात अनाप-शनाप तरीके से धन कमाने में जीवनपर्यन्त लगे रहते हैं, वे आत्मा का हनन करते हैं, अक्षम्य अपराध करते हैं, वे इस लोक में तो अपयश के भागी […]
इदन्नमम् का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हो क्वाचिद्भूमौ शय्याक्वचिदपि च पर्यंकशयनम् क्वचिच्छाकाहारी क्वचिदपि च शाल्योदन रूचि:। क्वचिन्तकन्थाधारी क्वचिदपि च दिव्याम्बर धरो, मनस्वी कार्यार्थी न गणपति दुखं न च सुखम्।। (नीतिशतक 83) भर्तहरि जी स्पष्ट कर रहे हैं कि जो व्यक्ति संकल्प शक्ति के धनी होते हैं, विचारधील और उद्यमी होते हैं, अपने कार्य की सिद्घि […]
सिंधु नदी के मुहाने से लेकर कुमारी अंतरीप तक समुद्र के किनारे रहने वाले लोगों के प्रयत्नों का ही प्रभाव था कि उनकी शानदार सभ्यता यहां पुष्पित एवं पल्लिवत हुई। ये लोग समुद्र के किनारे-किनारे चलकर ओमान, यमन होते हुए शक्तिशाली धारा को पार करके मिस्र न्यूकिया एवं अबीसिनिया आये। ये वही लोग हैं जो […]
विकास और विनाश के इस खेल को भारत अपने देवासुर संग्राम की कहानियों के माध्यम से स्मरण रखता है और उसे इसीलिए बार-बार दोहराता है अर्थात ध्यान करता है कि यदि कहीं थोड़ी सी भी चूक हो गयी या हमने प्रमादपूर्ण शिथिलता का प्रदर्शन किया तो महाविनाश हो जाएगा। यही कारण है कि भारत अत्यंत […]
मनु महाराज के पश्चात प्रियव्रत ने अपने पुत्र आग्नीन्ध्र को जम्बूद्वीप (आज का एशिया महाद्वीप), मेधातिथि को प्लक्षद्वीप (यूरोप), वयुष्मान को शाल्मलिद्वीप (अफ्रीका महाद्वीप), ज्योतिष्मान को कुशद्वीप (दक्षिण अमेरिका), भव्य को शाकद्वीप (आस्टे्रलिया) तथा सवन को पुष्करद्वीप (अण्टार्कटिका महाद्वीप) का स्वामी या अधिपति बनाया। पुराणों की इस साक्षी से पता चलता है कि भारत के […]
जलप्लावन की सूचना और भारतीय इतिहास भारत के इतिहास ने ज्योतिष शास्त्र और विज्ञान के क्षेत्र की बहुत सी घटनाओं को अपने में समाविष्ट किया है। इसलिए इसके गहन अध्ययन से अतीत की बहुत सी ऐसी घटनाओं की सूचना हमें सहज ही उपलब्ध हो जाती है जो कि ज्योतिष से या विज्ञान से जुड़ी होने […]