भारत प्राचीन काल से योगगुरू रहा है। इसके ‘योग’ में जीवन व्यवस्था है, जिसे अपनाकर व्यक्ति निरोग रह सकता है और शोकमुक्त हो सकता है। हमारे ऋषि पतंजलि ने प्राचीनकाल में हमें योगदर्शन दिया। जिसे अपनाकर भारत ने दीर्घकाल तक योग के क्षेत्र में संसार का मार्गदर्शन किया। वर्तमान में ऋषि पतंजलि के ऋषि […]
महीना: सितम्बर 2017
आमेर, उदयपुर और जोधपुर की एकता बादशाह औरंगजेब मर गया तो उसके दुर्बल उत्तराधिकारियों में परस्पर उत्तराधिकार का युद्घ हुआ, जिससे मुगल बादशाहत दुर्बल हुई। इस दुर्बलता का लाभ उठाने के लिए लड़खड़ाते मुगल साम्राज्य में दो लात मारकर उसे नष्ट करने के लिए ‘हिंदू शक्ति’ के संगठन को सुदृढ़ता देने के लिए आमेर, उदयपुर […]
बिखरे मोती-भाग 196 यह कोई आवश्यक नहीं कि कपड़े रंगने से ही वैराग्य होता है। महाराजा जनक तो राजा होते हुए भी वैरागी थे। वैराग्य से अभिप्राय है-विवेक का जगना अर्थात आसुरी शक्तियों का उन्मूलन और दिव्य शक्तियों (ईश्वरीय शक्तियों) का अभ्युदय होना, उनका प्रबल होना ही वैराग्य कहलाता है। यदि जीवन में वैराग्य जग […]
इदन्नमम् का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हो यह एक लक्ष्य विचारबीज की समरूपता का परिणाम था। भारत के प्राचीन इतिहास से आप एक भी ऐसा ऋषि चिंतक, आविष्कारक, कवि, साहित्यकार, राजा, सम्राट या कोई अन्य मनीषी ढूंढक़र नहीं ला सकते-जिसका चिंतन आविष्कार, रचना या कोई कार्य परमार्थ से भिन्न था। इस देश ने उस चिंतन […]
इस मंत्र के पश्चात ‘अघमर्षण मंत्र’ आते हैं। इनमें ईश्वर की सृष्टि रचना का चिंतन किया जाता है, अर्थात हम और भी गहराई में उतर जाते हैं। जिस आनंद की अभी तक झलकियां मिल रही थीं, हम उन्हें पकड़ते हैं और कुछ अबूझ पहेलियों के उत्तर खोजने लगते हैं। पहला मंत्र है- ओ३म् ऋतं च […]
प्रात:काल की संध्या में अपने इष्ट से मिलन होते ही कितनी ऊंची चीज मांग ली है-भक्त ने। मांगने से पहले उसे सर्वव्यापक और सर्वप्रकाशक जैसे विशेषणों से पुकारा है, जो उसके लिए उचित ही है। पहली भेंट में इतनी बड़ी मांग करना कोई दीनता प्रकट करना नहीं है, अपितु अपनी पात्रका को कितना ऊंचा उठा […]
इस प्रकार मूर साहब को भी अपने परिश्रम में हार का मुंह देखना पड़ गया था। इसके उपरान्त भी भारत में यह बहस बार-बार उछाली जाती है कि आर्य विदेशी थे-इसका अभिप्राय केवल ये है कि भारत को विश्वगुरू के पद पर बैठने से रोकने वाली शक्तियां षडय़ंत्र पूर्वक भारत को अपने ही विवादों में […]
एलफिंस्टन का कहना है-”जावा का इतिहास कलिंग से आये हिन्दुओं की बहुत सी संस्थाओं के इतिहास से भरा पड़ा है। जिससे पता चलता है कि वहां से आये हुए सभ्य लोगों द्वारा स्थापित किये गये निर्माण कार्य जो ईसा से 75 वर्ष पूर्व बनाये गये थे, आज भी वैसे के वैसे ही खड़े हैं।” मि. […]
इन प्रमाणों से सिद्घ होता है कि ये सभी लोग पूर्व से अर्थात भारत से ही आये थे। ईंटों पर आज भी लोग अपनी भट्टा कंपनी का नाम लिखते हैं, उससे पता चलता है कि ईंटों पर इस प्रकार नाम लिखने की परम्परा भारत में सदियों पुरानी है। साथ ही यह भी कि पक्की ईंट […]
अपने देश की संस्कृति और धर्म को बचाकर रखने का अधिकार हर देश के निवासियों को है। हर देश मानवतावाद में विश्वास रखता है और उसे विश्व के लिए उपयोगी भी मानता है, पर जब उसे कोई संप्रदाय इस प्रकार की चुनौती देता है कि उसके अपने देश की संस्कृति और धर्म को ही अस्तित्व […]