Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्व गुरु के रुप में भारत -15

भारत का राष्ट्रवाद और विश्व भारत का राष्ट्रवाद आज के अंतर्राष्ट्रवाद से ऊंची सोच वाला रहा है। आज के विश्व मंचों पर भी राजनीतिज्ञ अपने-अपने देशों के हितों के लिए लड़ते-झगड़ते हैं, और ‘संयुक्त राष्ट्र’ जैसी विश्व संस्था का भी या तो उपहास उड़ा रहे हैं या फिर उसे असहाय बनाने में अपनी नकारात्मक भूमिका […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-14

वराहमिहिर वराहमिहिर भारत की एक अनमोल प्रतिभा हैं, जिनकी प्रतिभा पर संपूर्ण भारतवर्ष को गर्व है। उनकी प्रतिभा ने संपूर्ण भूमंडल को लाभान्वित किया है। वराहमिहिर का जन्म मध्यप्रदेश में स्थित उज्जैन के निकट कापित्थ नामक ग्राम में आदित्यदास नामक ब्राह्मण के घर में हुआ माना जाता है। कुछ लोगों का मत है कि उनका […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-13

नागार्जुन भारत के महान वैज्ञानिक ऋषियों में नागार्जुन का नाम भी अग्रगण्य है। वह गुजरात के सोमनाथ के निकट देहक दुर्ग में जन्मे थे। उनके काल में देश में एक बार अकाल पड़ा। तब उनके मन में लोगों के लिए सस्ती धातु से सोना बनाने का विचार आया। उन्हें पता चला कि समुद्र पार एक […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-12

ऋषि भारद्वाज ने जिन विमानों का निर्माण कराया उनके लिए उन्होंने ऐसे ईंधन की तकनीक बतायी है जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के अनुकूल हो। इससे स्पष्ट होता है कि ऋषि भारद्वाज का चिंतन पूर्णत: सात्विक और मानवता के हितों के अनुकूल था। ऋषि भारद्वाज का आश्रम प्रयाग में त्रिवेणी के संगम पर स्थित माना […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-11

यह अलग बात है कि उस पुष्टि को करने के पश्चात भी वे हमारे ऋषियों के चिकित्सा विज्ञान को सही अर्थों में समझने में असफल रहे हैं। भारत में 1947 तक भी भारत की परम्परागत देशी औषधियां ही लोगों का उपचार करती थीं। हमारे देशी वैद्य स्वयं लोगों के पास जाकर उनका उपचार करते थे। […]

Categories
संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

दुर्गादास और जयसिंह ने उड़ा दी थी बादशाह औरंगजेब की नींद

जीवित रहने के लिए हम ही सबसे योग्य थे वीर सावरकर ने एक लेख में लिखा था-”हिंदुओं! अपना राष्ट्र गत दो हजार ऐतिहासिक वर्षों तक जो जीवित रह सका, ऐसा जो कहते हैं वे मूर्ख तथा लुच्चे हैं। हम जीवित रहे क्योंकि जीवित रहने के लिए हम ही सबसे योग्य थे। उन परिस्थितियों से जूझने […]

Categories
पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-66

स्वार्थभाव मिटे हमारा प्रेमपथ विस्तार हो गतांक से आगे…. नीति शतक में भर्तृहरि जी कहते हैं कि दान, भोग और नाश धन की ये तीन गति होती हैं। जो न देता है, और न खाता है उसके धन की तीसरी गति होती है अर्थात उसके धन का नाश होता है। संसार में ऐसा ही देखने […]

Categories
बिखरे मोती

अहम् बहम के कारणै, नर ऊंचे से गिर जाए

बिखरे मोती-भाग 193 परिणाम यह होता है कि पहले तो रिश्तों में खिंचाव और बचाव का क्रम चलता है, घुटन, तनाव और दूरी बढऩे लगती है, ईष्र्या और घृणा की अग्नि जो सामाजिक आवरण की राख के नीचे दबी थी, उसे मामूली से क्रोध की चिंगारी विस्फोटक और भयावह इस कदर बना देती है कि […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-9

हम यज्ञादि पर उद्घोष लगाया करते हैं कि-‘प्राणियों में सदभावना हो’ और-‘विश्व का कल्याण हो’-इनका अर्थ तभी सार्थक हो सकता है जब हम अपनी नेक कमाई में से अन्य प्राणियों के लिए भी कुछ निकालें और उसे हमारे पूर्वज वैद्य हम लोगों से कितने सुंदर और उत्तम ढंग से निकलवा लेते थे? तब सचमुच प्राणियों […]

Categories
विश्वगुरू के रूप में भारत संपादकीय

विश्वगुरू के रूप में भारत-10

यद्यपि हाल ही के वर्षों में रोगी यूरोप भारत की योग पद्घति की ओर झुका अवश्य है, उसे कुछ-कुछ पता चला है कि निरे भौतिकवाद से भी काम नहीं चलने वाला और यह भी निरे भौतिकवाद ने उसकी रातों की नींद और दिन का चैन छीन लिया है। तब हारा थका और भौतिकवाद से पराजित […]

Exit mobile version