खुले आकाश के नीचे मां की गोद में लेटे-लेटे जब कभी चंदा मामा दूर के, सुना करते थे तो लगा करता था कि यह चंदा मामा निकट के क्यों नहीं हो जाते? मामा का घर और वह भी इतनी दूर यह तो कोई बात नहीं हुई। समय ने करवट ली और जब थोड़े से बड़े […]
Month: June 2017
अस्पृश्यता को लेकर पुन: एक बार चर्चा चली है। पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने इस विषय में कुछ समय पूर्व आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया है था और शूद्रों को मंदिर में प्रवेश पाने से निषिद्घ करने की बात कही थी। जब विश्व मंगल ग्रह पर जाकर पृथ्वी के मंगल गीतों से मंगल पर […]
खेल की भावना से यदि कोई कार्य किया जाए तो उसे सबसे उत्तम माना जाता है। खेल में बच्चे गिरते हैं-चोट खाते हैं, जीतते और हारते हैं-पर खेल के मैदान से बाहर आते ही हाथ मिला लेते हैं। हार जीत के खट्टे मीठे अनुभवों को वहीं छोड़ देते हैं, और एक अच्छे भाव के साथ […]
पत्थरबाजो! भारत छोड़ो,’ भाग-6
‘सोचने की बात यह है कि उनके कारनामे कितने घृणास्पद रहे होंगे, जबकि कंपनी के निदेशकों तक ने स्वीकार किया है कि भारत में व्यापार करके जो बड़ी से बड़ी संपत्ति पैदा की गयी उनमें उतना ही बड़ा अन्याय और जुल्म भरा हुआ है, जितना बड़ा जुल्म संसार के इतिहास में कहीं सुनने और पढऩे […]
राष्ट्रीय साक्षरता अभियान, भाग-2
फ्रायड का फ्राड और भारतीय शिक्षा फ्रायड नाम के विदेशी मनोवैज्ञानिक ने एक शब्द पकड़ लिया ङ्ख्रञ्जष्ट॥ वाच। इसकी व्याख्या उसने करते हुए कहा कि देखो इसका प्रथम अक्षर ङ्ख कह रहा है कि ‘वाच यौर वर्डस’ अपने शब्दों पर ध्यान दें कि आप क्या कह रहे हैं? इसी प्रकार र से एक्शन ञ्ज से […]
राष्ट्रीय साक्षरता अभियान
हमारे देश में लोगों को साक्षर करने का मिशन बड़े जोरों पर चलाया गया है। राजनीतिज्ञों ने इस अभियान का राजनीतिक लाभ और देश के नौकरशाहों ने आर्थिक लाभ उठाने का भी भरपूर प्रयास किया है। अपने इस प्यारे एवं ‘सारे जहां से अच्छे हिंदुस्तान’ में जिस प्रकार सडक़ें फाइलों में बन जाती हैं और […]
सोचने की बात यह है कि उनके कारनामे कितने घृणास्पद रहे होंगे, जबकि कंपनी के निदेशकों तक ने स्वीकार किया है कि भारत में व्यापार करके जो बड़ी से बड़ी संपत्ति पैदा की गयी उनमें उतना ही बड़ा अन्याय और जुल्म भरा हुआ है, जितना बड़ा जुल्म संसार के इतिहास में कहीं सुनने और पढऩे […]
(50) कोच्चीन, त्रावणकोर- इन दोनों क्षेत्रों में मुस्लिम शासन एक दिन भी नहीं रहा। जबकि 1857 ई. से यहां अंग्रेजी राज्य अवश्य आ गया। इस प्रकार के परिश्रम साध्य विषय को समझकर और देखकर हमें ज्ञात होता है कि अंग्रेजों का भारत में विस्तार सामान्यता 1820 ई. से बाद का है। उसमें भी अधिकांश 1857 […]
आत्मदाह की प्रवृत्ति यह आत्मदाह की ही प्रवृत्ति का एक स्वरूप है कि यहां का युवा वर्ग अपने गौरवपूर्ण अतीत से काट दिया गया है, या कट रहा है। इस भटकते हुए युवा मानस को यह बताना आज नितांत आवश्यक हो गया है कि उस भारत के वे महान जुझारू संघर्षशील राजा कौन थे जो […]
पिछले लेखों में हम मध्य प्रदेश ‘हिंदी ग्रंथ अकादमी’ द्वारा प्रकाशित ‘भारत: हजारों वर्षों की पराधीनता एक औपनिवेशिक भ्रमजाल’ पुस्तक के आधार पर चर्चा कर रहे थे कि कितना भारत कितनी देर विदेशी शासन के आधीन रहा और कौन सा क्षेत्र अपनी स्वतंत्रता को बचाये रखने में सफल रहा? इस आलेख में भी उसी चर्चा […]