परिस्थिति के निर्माता हम स्वयं वास्तव में सारी परिस्थितियों के हम स्वयं ही निर्माता हैं। परिस्थितियों को हम ही बनाते हैं, परिस्थितियां हमें कदापि नहीं बनाती हैं। लोकतंत्र को ‘लूटतंत्र’ में हमने ही तो परिवर्तित किया है। कैसे? जनता ने ‘वोट’ के बदले नेता से ‘नोट’ पाकर। अधिकारी ने मनचाहे स्थान के लिए ‘स्थानांतरण’ कराने […]
Month: April 2017
निजी अनुभवों की सांझ-4
भ्रष्टाचारी भी नहीं और आय भी बहुत एक जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्टे्रट कह रहे थे कि जिलाधिकारी महोदय एक माह में 50 लाख रूपये तो तब कमा लेते हैं जब उन्हें किसी से रिश्वत या भ्रष्टाचार के माध्यम से कोई पैसा लेने या मांगने की आवश्यकता ही न पड़े। ऐसा सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ […]
निजी अनुभवों की सांझ-3
जी हां! अपने प्यारे देश में ‘कमीशन’ ने सिद्घांतों का सौदा कर दिया है। इस ‘कमीशन’ के लिए अब तो समय आ गया है कि जब इसे भगवान मानकर इसकी आरती उतारी जाए। जिधर देखता हूं बस! उधर तू ही तू है। कि हर शय में जलवा तेरा हू ब हू है।। ‘कमीशन’ की इस […]
भारत का संविधान कानून के समक्ष समानता की बात कहता है। यदि भारतीय संविधान पर एक समीक्षात्मक दृष्टिपात किया जाए तो यह संविधान अपने मौलिक स्वरूप में सामंती परम्परा और उसके प्रतीकों को जारी रखने का विरोधी है और यह नहीं चाहता कि समाज में कोई ऐसा वर्ग या समुदाय पनपे या विकसित हो जो […]
दिल्ली एमसीडी के परिणाम
दिल्ली ने एमसीडी के चुनावों में ‘आप’ को उसके ‘पाप’ का दण्ड सुना दिया है, साथ ही कांग्रेस की नेतृत्वविहीनता को उसका उचित पुरस्कार देकर भाजपा को फिर से सत्ता सौंपकर नरेन्द्र मोदी की नीतियों में विश्वास प्रकट किया है। पूर्व से ही दिल्ली के ऐसे परिणामों की अपेक्षा लोगों की थी कि दिल्ली इस […]
भक्ति की छाया चित्त में, गहरी हो मनमीत
बिखरे मोती-भाग 182 सद्गुणों से मनुष्य प्रतिभावान होता है, आभावान होता है, दीप्तिमान होता है, गुणवान होता है। वह अपने कुल, समाज और राष्ट्र को आलोकित करता है, उनका गौरव बनता है-जबकि दुर्गुणों से मनुष्य पतन के गर्त में गिरता है, अपने कुल अथवा खानदान, राष्ट्र व समाज को कलंकित करता है और घृणा का […]
पुन: मेवाड़ की ओर अब हम एक बार पुन: महाराणा प्रताप की पुण्य कर्मस्थली मेवाड़ और उनके राणा वंश की ओर चलें। यह वंश निरंतर कितनी ही पीढिय़ों तक देश सेवा में लगा रहा। महाराणा प्रतापसिंह के पुत्र राणा अमरसिंह से चित्तौड़ हाथ में आने के उपरांत भी निकल गयी थी। अपने पिता की भांति […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-54
लाभकारी हो हवन हर जीवधारी के लिए अग्नि प्रज्ज्वलन के मंत्रों में ‘ओ३म् भू: भुव: स्व:।’ प्रथम बार में बोला जाता है। इसका अभिप्राय है कि जिस अग्नि को हवन कुण्ड के मूल में प्रदीप्त किया जा रहा है उसके भी मूल में प्राणों को उत्पन्न करने की शक्ति विद्यमान है। इसी में भुव: अर्थात […]
‘भारत गांवों का देश है’-ऐसा कहा जाता है। पर आज हम देख रहे हैं कि गांवों से भारत शहरों की ओर भाग रहा है। मानो, वह इस कहावत को अब बदल देना चाहता है कि ‘भारत गांवों का देश है।’ भारत शहरों का देश बनता जा रहा है। लोगों का मिट्टी से लगाव कम होकर […]
निजी अनुभवों की सांझ-2
‘कमीशन’ का घुन खा रहा है, राष्ट्र को किंतु हम सब इस व्यवस्था के प्रति अभ्यस्त होने का प्रदर्शन करते हैं, न कि आंदोलित होते हैं, ऐसा क्यों? क्योंकि हमारे नेतागण ‘कमीशन’ का विष हमारी नसों में चढ़ाने में सफल रहे हैं। देखिये- जब कोई राष्ट्र अपने आदर्शों को भुलाकर उधारे आदर्शों का आश्रय लिया […]