प्रमोद भार्गवदेश के धर्म स्थलों पर लगने वाले मेले अचानक टूट पडऩे वाली भगदड़ से बड़े हादसों का शिकार हो रहे हैं। नतीजतन श्रृद्धालु पुण्य लाभ कमाने के फेर में आकस्मिक मौतों की गिरफ्त में आ रहे हैं। इस क्रम में नया हादसा आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में पुष्करालू उत्सव में स्नान के दौरान घटा। […]
महीना: जुलाई 2015
उमेश प्रसाद सिंहगाय का भारतीय संस्कृति में विशिष्ट स्थान है। यह सदा से भारतीय जन-जीवन की धुरी रही है। प्राचीन काल में हमारे देश में सर्वाधिक सम्पन्नता के स्तर का मापक गाय ही हुआ करती थी। देशी-विदेशी चिकित्सा प्रणालियों में गाय की बड़ी महिमा है। पुराणों के अनुसार गाय में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का निवास […]
जातिगत जनगणना के आंकड़ों की आड़ में हो रही राजनीति के बीच केंद्रीय वित्तमंत्री ने यह स्पष्ट करके अच्छा किया कि राज्यों को ये आंकड़े पहले ही भेजे जा चुके हैं और वे जातियों-उपजातियों, गोत्रों आदि के असमंजस को दूर कर दें तो फिर तर्कसंगत वर्गीकरण का काम शुरू हो। यह काम ‘नीति आयोग की […]
झारखंड के जेपी आंदोलनकारियों के अच्छे दिन आनेवाले हैं। रघुवर सरकार ने न सिर्फ उन्हें प्रतिमाह पेंशन राशि दिए जाने की मंजूरी दी है बल्कि उन्हें प्रतिवर्ष इलाज के लिए 30,000 तक की राशि भी मिलेगी। मंगलवार को जेपी आंदोलनकारियों को सम्मान और अन्य सुविधाएं दिए जाने का निर्णय लिया। जेपी आंदोलन के दौरान पुलिस […]
अतुल मोहन सिंहसमाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और 3 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके मुलायम सिंह यादव सूबे के ही आईपीएस अधिकारी को धमकी देने के मामले में विवादों में घिर गए हैं। सवाल ये है कि मुलायम जैसे क़द्दावर नेता ने ख़ुद फोन करके एक आईपीएस अधिकारी को धमकी क्यों दी। सूत्रों […]
क्यों हो गया रक्त पिपासु? आणविक रासायनिक अस्त्रों से,क्या तेरे बुझेगी प्यास? मायावाद की मरूभूमि में, तुझे कहां मिलेगी घास? संभूति और असंभूति का,मिलन ही पूर्ण विकास। है मंजिल यही तेरे जीवन की, तुझे कब होगा अहसास? क्या कभी सोचकर देखा?निकट है काल की रेखा। जीवन बीत रहा पल-पल, जीवन बदल रहा पल-पलअरे मनुष्य! तेरे […]
पेरिस में एक ‘शार्ली अब्दो पत्रिका के कार्यालय में आतंकियों ने जिस प्रकार प्रैस की स्वतंत्रता पर आक्रमण कर अपनी क्रूरता का नंगा नाच किया है, उससे विश्व समाज पुन: कुछ सोचने पर बाध्य हो गया है। विगत 7 जनवरी को घटी इस घटना पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है। भावनात्मक बातें भी हो […]
आलोक कुमार सेवा नहीं, खुद के लिए मेवा का जुगाड़ ही आज की राजनीति है। मेवा खाने की तड़प ही राजनीति की ओर खींच लाती है। आज राजनीति का मूल-मंत्र क्या है मेवा नहीं तो सेवा नहीं पिछले अड़सठ सालों में हमारी किसी भी सरकार ,हमारे किसी भी राजनीतिक दल ने एक भी ऐसा ठोस […]
84 लाख योनियों के बाद: शास्त्रों और विद्वानों के अनुसार कुछ पशु-पक्षी ऐसे हैं, जो आत्मा की विकास यात्रा के अंतिम पड़ाव पर होते हैं। उनमें से गाय भी एक है। इसके बाद उस आत्मा को मनुष्य योनि में आना ही होता है। हम जितनी भी गाएं देखते हैं, ये 84 लाख योनियों के विकास […]
मनुष्य के भटकाव का अन्त कहाँ है? जन्म लेने से मृत्यु तक कितने चरणों में उसका बाहरी रूप बदलता है? हर वर्ष का पतझड़ उसके हृदय के रेगिस्तान को और भी ‘तपन’ दे जाता है। पर फि र बसन्त आता है और मन का मोर नाचने लगता है।—-लेकिन कितनी देर, कभी गरम लू तो कभी […]