भारत के पड़ोस के पाकिस्तान, और उसके बगल के इराक, अफगानिस्तान जैसे मुस्लिम देशों में इस्लामी आतंक आसमान पर पहुंचा हुआ है। मजहब के नाम पर वहां के आतंकी दस्ते खुद भी जान दे रहे हैं,
महीना: जून 2014
इतिहास में ऐसे कई मोड़ आते हैं जो विश्व के इतिहास में, दुनिया की यादों में और वीरता की कहानियों में अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हल्दी घाटी का युद्ध आजादी की सदाकांक्षा का परिणाम था जिसे वीरता और बलिदान का प्रतीक माना जाता है।
घुसपैठियों का सत्कार और श्री राम को दुत्कार। नीचता के किस रसातल मे पहुंच गयी है हमारी राजनीति, ममता छाती ठोंक कर कह रही है की अगर किसी ने बांग्लादेश के घुसपैठिओ को हाथ भी लगाया तो दिल्ली हिला कर रख दूँगी|
मित्रों,इन दिनों केंद्र की मोदी सरकार जब पुराने राज्यपालों को हटाने जा रही है तो सारे छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी दल बेजा शोर मचाने में लगे हैं। जब संप्रग सरकार ने वर्ष 2004 में राजग काल के राज्यपालों को हटाया था तब तो यही लोग तालियाँ पीट रहे थे फिर आज विरोध क्यों?
पुण्य प्रसून वाजपेयी बंधु दिल्ली में कोई हमें घर देने को तैयार नहीं है। यह ना तो मुंबई की तर्ज पर किसी मुस्लिम का कथन है और ना ही घर ढूंढने वाले किसी बेरोजगार का। जिससे किराया मिलेगा या नहीं इस डर से मकान मालिक घर देने से इंकार कर दे। यह शब्द अरविन्द केजरीवाल […]
कुलदीप चंद्र अग्निहोत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद अपनी विदेश यात्रा के लिये सबसे पहले भूटान को चुना । अपने देश की पुरानी परम्परा सबसे पहले या तो अमेरिका या फिर पश्चिमी देशों की ओर भागने की रही है ।
भारत मां के गगनांचल रूपी आंचल में ऐसे-ऐसे नक्षत्र उद्दीप्त हुये है जो न केवल भारत भूमि को बल्कि संपूर्ण विश्व भू मण्डल को अपने प्रकाश पुंजों से आलोकित किया है।
एक बार एक युवक अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने वाला था। उसकी बहुत दिनों से एक शोरूम में रखी स्पोर्टस कार लेने की इच्छा थी। उसने अपने पिता से कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने पर उपहारस्वरूप वह कार लेने की बात कही क्योंकि वह जानता था कि उसके पिता उसकी इच्छा पूरी करने में […]
रामस्वरूप भारत जब विश्व सभ्यता का केन्द्र था तो स्वाभाविक ही उसका संबंध संसार की तत्कालीन प्रमुख सभ्यताओं और समाजों से प्रगाढ़ और प्रभावकारी था। जैसा कि भाषाओं के साम्य से स्पष्टहोता है यूरोप, फारस और भारत परस्पर घनिष्ठता से संबंद्घ हैं, और संभवत: इनका मूल भी एक ही हो, परंतु तीनों के समान पूर्वज […]
भारत के संविधान की मूल भावना के साथ हमारे राजनीतिज्ञों ने निहित स्वार्थों में निर्लज्जता की सीमा तक छेड़छाड़ की है। संविधान नही चाहता कि देश में किसी गरीब को सरकारी संरक्षण से केवल इसलिए वंचित होना पड़े कि वह किसी अगड़ी या सवर्ण जाति का है, लेकिन व्यवहार में कितने ही निर्धनों को जाति […]