मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कोप्जे, मेसेडोनिया[i] में हुआ था और बारह वर्ष की आयु में उन्हें अहसास हुआ कि “उन्हें ईश्वर बुला रहा है”। 24 मई 1931 को वे कलकत्ता आई और यही की होकर रह गई। कोलकाता आने पर धन की उगाही करने के लिए मदर टेरेसा ने अपनी मार्केटिंग […]
Author: विवेक आर्य
26 अगस्त जन्मदिन पर भारत में गरीबों और बीमारों की सेवा के नाम पर धर्मांतरण कराने वाली ईसाई एजेंट एग्नेस गोंक्सा बोयाजियू उर्फ मदर टेरेसा के नाम के आगे ‘संत’ जोड़ा जा रहा है। पिछले आधी से ज्यादा सदी से भारत और दुनिया भर में मदर टेरेसा का महिमामंडन होता रहा है। जबकि यह बात […]
#डॉविवेकआर्य देश के इतिहास में सन् 1921 में केरल के मालाबार में एक गांव में मोपलाओं ने हिन्दू जनता पर अमानवीय क्रूर हिंसा की थी। इस घटना पर देशभक्त जीवित शहीद वीर सावरकर जी ने ‘मोपला’ नाम का प्रसिद्ध उपन्यास लिखा था। हिन्दू विरोधी इस कुकृत्य को जानने के लिए हिन्दू जनता द्वारा इस […]
#डॉविवेकआर्य नास्तिकों के एक समूह में नीचे दिया गया चित्र दर्शाया गया। इस चित्र में दर्शया गया कि इस्लाम, ईसाई,बुद्ध, जैन आदि धर्मों के जन्मदाता तो ज्ञात हैं। मगर हिन्दू धर्म के जन्मदाता का नाम बताये। इस पोस्ट का मुख्य उद्देश्य हिन्दू समाज का उपहास करना था। क्यूंकि साधारण हिन्दू युवक इस पोस्ट से […]
स्वामी दयानंद और चित्तौड़गढ़
राजपूतों के इस संघ में ऋषि दयानंद को महाराणा प्रताप और दुर्गादास राठोड़ की संतान को देखने का अवसर मिला, कहा वह स्वाधीन शेर? क्या यह राज्य और इन्द्रियों के बन्धुए? ऋषि दयानंद ने राजपूतने की दशा को रोते हुए ह्रदय से देखा, जो लोग वीरता के आदर्श थे, मान के पुजारी आयर स्वाधीनता के […]
नवबुद्ध बनना: नौटंकी या फैशन
बुद्ध मत स्वीकार करने वाला 99.9 %दलित वर्ग बुद्ध मत को एक फैशन के रूप में स्वीकार करता हैं। उसे महात्मा बुद्ध कि शिक्षाओं और मान्यताओं से कुछ भी लेना देना नहीं होता। उलटे उसका आचरण उससे विपरीत ही रहता हैं। उदहारण के लिए- 1. मान्यता- महात्मा बुद्ध प्राणी हिंसा के विरुद्ध थे एवं मांसाहार […]
#डॉविवेकआर्य रावलपिंडी के समीप हिन्दुओं का एक छोटा सा गांव था। 500 के लगभग व्यसक होंगे। बाकि बच्चे, बुड्ढे। गांव के सरपंच रामलाल एक विशाल बरगद के नीचे बैठे थे। तभी मोहन भागता हुआ आया। बोला सरपंच जी, सरपंच जो। सरपंच जी कहा ,”क्या हुआ मोहन ? ” सरपंच जी मुझे पता लगा है […]
#डॉविवेकआर्य लाहौर में एक चौबारा था। उसका नाम था ‘छज्जू का चौबारा’। पंजाबी जीवन शैली में लोकोक्ति चर्चित है-‘जो सुख छज्जू दे चौबारे, न बलख न बुखारे’ अर्थात छज्जू के चौबारे का सुख के आगे बल्क व बुखारे का सुख भी फीका पड़ जाता है। छज्जू भगत का असली नाम छज्जू भाटिया था। वे […]
गधे की मजार
#डॉविवेकआर्य (वीरवार के दिन पीरों-मजारों वालों के लिए विशेष रूप से प्रकाशित) एक फकीर किसी बंजारे की सेवा से बहुत प्रसन्न हो गया। और उस बंजारे को उसने एक गधा भेंट किया। बंजारा बड़ा प्रसन्न था गधे के साथ। अब उसे पेदल यात्रा न करनी पड़ती थी। सामान भी अपने कंधे पर न ढोना […]
भेड़ के पीछे भेड़ न बने। विचारशून्य हिन्दू अर्थात लाभदायक मूर्ख Useful Idiots (लाभदायक मूर्ख ) एक विश्व-विख्यात मुहावरा है। इसी नाम से बी.बी.सी. ने एक ज्ञानवर्द्धक डॉक्यूमेंटरी भी बनाई है। इस कवित्वमय मुहावरे के जन्मदाता रूसी कम्युनिज्म के संस्थापक लेनिन थे। वे बुद्धिजीवी जो अपनी किसी हल्की या भावुक समझ से कम्युनिस्टों की मदद […]