त्रिगुणातीत से क्या अभिप्राय है ? आसक्ति – अहंकार को, जिसने लिया जीत । उद्वेगों से दूर मन, हो गया त्रिगुणातीत॥ तत्त्वार्थ : – यह दृश्यमान प्रकृति परमपिता परमात्मा की सुन्दरतम रचना है । ‘ प्र ‘ से अभिप्राय प्रमुख, विशिष्ट अर्थात् सुन्दरतम और कृति से अभिप्रया है – रचना यानी की परमपिता परमात्मा की […]
Author: विजेंदर सिंह आर्य
बिखरे मोती : सुख दुःख के संदर्भ में
सुख दुःख के संदर्भ में रात में प्रभात छिपा है, मत ना होय अधीर । काल चक्र से बच नही पाये, राजा हो या फकीर॥2117॥ कर्म की आत्मा भाव है – कर्म फल देता नही, फल देता है भाव । कर्मा शय वैसा बने, जैसे मन के भाव॥2118॥ ज्ञान-कर्म -उपासना के संदर्भ में – ज्ञान, […]
बिखरे मोती नववर्ष के अवसर पर मानव जीवन के संदर्भ में – अरे यह साल भी बीता, अरे यह साल भी बीता । मगर भक्ति के मार्ग में, खड़ा हूं आज भी रीता॥ अरे यह साल भी बीता … मन में विकारों का लगा है, आज भी डेरा । माया ठगनी ने मुझे, चहुँ ओर […]
साधना के संदर्भ में – साधना स्वान्त सुखाय है, दिखावे की नहीं बात । वहीं साधना श्रेष्ठ है, जिसमें मन खो जात॥2107॥ दुष्ट और सज्जन के मन की तरंगों (Vibration) के संदर्भ में – मन को शान्ति देत है, साधु से मुलाक़ात । दुष्ट के दर्शन मात्र से, हृदय दुःखी हो जात॥2108॥ सज्जन की सलाह […]
क्रिया से भी श्रेष्ठ है, हृदय के सद्भाव । स्थितप्रज्ञ की ओर चाहिए, निरखै मन के भाव ॥2011॥ प्रेम के संदर्भ में प्रेम के धागे से बंधे , जितने जग के जीव । प्रेम से ही प्राप्त हो, मेरा प्रिय जीव॥2100 ॥ आत्मा और परमात्मा के संदर्भ में एक डाल पर दो खग बैठे, जोने […]
बिखरे मोती : आत्मस्वरूप के संदर्भ में
प्रेरक तेरा ओ३म् है , रक्षक सर्वाधार । नित चरणौं में बैठके, निज प्रतिबिम्ब निहार॥2091॥ भाव की उत्कृष्टतम्ब निकृष्टतम्ब अव्यवस्था के संदर्भ में – भाव की ऊंची है गति, भक्ति में हो लीन । क्रोध और अहंकार में, उठते भाव मलीन॥2092॥ जीव ईश्वर का अंश है पुराण – पुरुष का अंशु तू , मत भूले […]
बुरी नहीं वृत्ति कोई, यदि बदलो उपयोग । जिसने जाना राज को, सफल हुए वे लोग॥2067॥ वृत्तियों का रूपान्तरण कैसे करें ? उदाहरण के लिए – 1- काम का उपयोग आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हो, सन्तानोत्पत्ति के लिए हो, विलास के लिए नहीं । 2- क्रोध की वृत्ति का उपयोग शत्रु को परास्त […]
अवगुण मेरे विसार दे, कर दे भव से पार
बिखरे मोती अवगुण मेरे विसार दे, कर दे भव से पार अवगुण मेरे विसार दे, कर दे भव से पार । मन लगे भक्ति मे, करो अर्ज स्वीकार॥2056॥ चोला बदले आत्मा, नये दरे जा नाम । चौरासी में घूमता, भूला हरि का नाम॥2057 ॥ अन्तःकरण की शुद्धि के संदर्भ में – शुद्ध अन्तःकरण की, केवल […]
भक्ति में मांगो नहीं,जो चाहो कल्याण
भक्ति में मांगो नहीं,जो चाहो कल्याण भक्ति में मांगो नहीं, जो चाहो कल्याण । बिन मागें ही देत ब है, दाता करुणा निधान॥2041॥ आयु की दौलत घटे, सांस – सांस हर रोज । उनसे प्रीति: जग की सेवा, करले मैं की खोज॥2042॥ पंचभूत से जग रचा, यत्र तत्र सर्वत्र । सबके लिए रच दिए, रविचंद्र […]
भक्ति के संदर्भ में – भक्ति में आलस नहीं, ले उत्साह से नाम। जितने दुर्गुण दुरित हैं, उन पर लगा लगाम॥ 2018॥ देवी और आसुरी प्रकृति के संदर्भ में – आसुरी – दैवी सम्पदा, दोनों है विपरीत । लाख यत्न कर लीजिए, नहीं बनेगे मीत॥2019॥ आत्मा और सूक्ष्म शरीर के अन्यो न्याश्रित संबंध के संदर्भ […]