राग-द्वेष की कीच जग, मत ढूँढों आनंन्द । रमण करो हरि-नाम में, पावै परमानन्द ॥2327॥ ये कैसे लोग हैं? आन्तरिक सौन्दर्य को खोकर, बाहरी सजावट में लगे हैं:- बाहरी सजावट में लगे, ये संसारी लोग । अन्तःकरण पावित्र कर, कटेंगें सारे रोग॥2328॥ मन की प्रतिकृति कौन है – आचरण वैसा ही बने, जैसे मन में […]
लेखक: विजेंदर सिंह आर्य
परम पिता परमात्मा को पाना है, तो उसे खोजो मत,उसमें खो जाओ :- चराचर में हरि रम रहा, चिन्तन कर तू रोज। खो-जा उसके ध्यान में, मत कर उसकी खोज॥2320॥ वह कौन है? जिसे ‘वेद’ वे रसो वै सः कहा:- माया- जीव का अधिपति, जग में है भगवान। रसों का रस वह ब्रह्म है, लगा […]
बिखरे मोती परम पिता परमात्मा के चित्त जैसा हमारा मन कैसे बने :- विषयों का चिन्तन करे, मन विष जैसा होय। जो चिन्तन हरि का करे, तो हरि जैसा होय॥2303॥ आनन्दधन कहाँ रहता है :- अनन्त बार यह तत मिला, मिला नहीं आनन्द । माया में रहा ढूँढता, अन्तस्थ में था आनन्द॥2304॥ पवित्र हृदय में […]
जीवन की सबसे बड़ी पूँजी क्या है –
जीवन की सबसे बड़ी पूँजी क्या है – स्वार्थ को तू मार ले, जिन्दा रख सद्भाव। भाव गया आदर गया, घट घेरे दुर्भाव॥2281॥ विशेष शेर काश! मेरी अन्तिम इच्छा पूर्ण हो :- ऐ ख़ुदा ! मेरा मन, तेरी इबादत में लग जाये। ये जिस्म जो मेरा , खलक – ए – खिद्मत में लग जाये […]
तौफीक है ख़ुदा की, ये मुनव्वर जो तेरा।
प्रभु-प्रदत्त विभूति अर्थात् विलक्षणता के संदर्भ में:- “शेर” तौफीक है ख़ुदा की, ये मुनव्वर जो तेरा। नादानगी से कहता, ये मुनव्वर है मेरा॥ है जुगनू जैसा डेरा , तू सिर झुका कर कह दे, जो भी दिया है तेरा॥ भाव यह है किं प्रभु-प्रदत्त विभूतियाँ अर्थात- विलक्षणताएँ परम-पिता परमात्मा की दिव्य दौलत हैं। भगवान कृष्ण […]
रसना रूपी कमान से, चले शब्द के तीर। कोई हियो घायल करे, कोई बंधावे धीर॥2271॥ जब प्रभु-कृपा बरसती है- शमा रोशन हौ गई, रहमत बरसी आज। तू और मैं का भेद ना, मनुआ करता नाज़॥2272॥ पीड़ा भरी पुकार प्रभु अवश्य सुनते है- तुझे पुकारू सुन मेरी, दर्द भरी आवाज। रक्षक मेरा है तू ही, प्रभु […]
कभी लावा भू-गर्भ में, कभी शिखर बन जाय। बर्फ की चादर मिल गई, हरियाली छुट जाय॥2264॥ प्रभु से जब भी मांगो तो इन तीनो को मांगो दिव्य गुणो से चित मेरा, होय सदा भरपूर। सरस्वती हो वाक में, आत्मा में हरि – नूर॥2265॥ लालच बुरी बलाय है लालच में मत पाप कर, भोगेगा तू आप। […]
पंचभूत से जग रचा, रचनाकार महान। स्थूल समाया सूक्ष्म में, मन होता हैरान॥2257॥ वेद ने विधाता को हिरण्यगर्भः क्यों कहा:- क्षितिज से उस पार क्या, क्या उनका आधार। सृष्टि तेरे गर्भ में, पालक सर्वाधार॥2258॥ विशेष : देवताओ को भूख क्यो नही लगती- देवत्त्व को जो प्राप्त हो हो, उड़ै पार्थिव भूख। तन्मात्राओं से तृप्त हो, […]
बिखरे मोती : प्रभु-मिलन की चाह है तो….
अब सफ़र ज्यादा नही, आ लिया वक्त अकीर। ब्रहम ऋता बुद्धि बने, तो जग जाय जमीर॥2243॥ भगवद्-भाव में रहना है तो निन्दा- चुगली छोड़ के, ले रसना हरि नाम। नेकी कर संसार में, जो चाहे हरि-धाम॥2244॥ जब स्वतः ही आनन्द की प्राप्ति होती है:- सत् चर्चा सत् कर्म कर, जिस क्षण मन लग जाय। सत् […]
संतो को संसार में, भेजता है करतार। जाओ सृष्टि संवार दो, करना तुम उपकार॥2225॥ सन्त तो झरने जान ज्ञान के, जहाँ प्रक्तै सुख दे। अज्ञान अभाव अन्याय को, देखत ही हर लें॥2226॥ संसार में कैसे रहो :- हृदय में सद्भाव रख, अपना हो संसार। दुर्गणों को त्याग दे, निज प्रतिबिम्ध बिहार॥2227॥ आनन्द की प्राप्ति कैसे […]