बिखरे मोती गुणवान व्यक्ति के गुणो की जब खुशबू फैलती है,तो गुण- ग्राहक स्वयं उसे ढूंढ लेते हैं फल पड़े खुशबू उठै, खग आकै मंडरायं। माली सींचे सौ घड़ा, स्वाद विहम ले जाय॥2452॥ खग,विहग अर्थात पक्षी कुल की मर्यादा की रक्षा सर्वदा प्राणपण से करो इज्जत एक बार जाए तो, लौटकै फिर ना आय। खानदान […]
लेखक: विजेंदर सिंह आर्य
” दोहा” तत्वार्थ- हमारे धर्म – शास्त्रों में ऋषियों ने बताया है कि ब्रहमाण्ड़ में जो देवता : सूर्य, चन्द्र, जल, अग्नि माने गए है इनका संमवर्ग वायु है अर्थात् वायु इनकी शक्ति को समेट भी लेता है और इनका रक्षण भी करता है। जैसे – वायु के प्रकोप से तेज अंदड़ अथवा बादल छाने […]
बिखरे मोती सुयोग्य पुत्र के संदर्भ में:- सुयोग्य पिता के सुयोग्य सुत, दुर्लभ हो कोई एक। विद्या, विनय और शीलता, कर्म करें बड़े नेक॥ 2434॥ जिन्हें मोक्ष पाने की चाह है- भक्ति-भाव में डूबजा, जो चाहे कल्याण। मोक्ष मिले इसी जन्म में, करो यज्ञ तापदान॥2435॥ गरीबी कितना बड़ा अभिशाप है – गरीबी जैसा रोग ना, […]
‘शेर’ उन आंखों की अजीब गहराई में , समन्दर डूब जाना चाहता है। जो रूहानी रहा में, तेरा ही रूप होना चाहता है॥2418॥ ‘ सत्यप्रकाश कानपुर’ शान्ति के संदर्भ में:- शान्ति सुख की नींव है, मत खोवे नादान। बिना नीव कैसे बने, आलीशान मकान॥2019॥ षट सम्पत्ति के संदर्भ में – शान्ति से ही विकास है, […]
मिट्टी सबको खा गई, रावण बचे ना राम। पीछे दो ही रह गये, अच्छे बुरे दो काम॥2407॥ ब्रह्म की उपस्थिति के संदर्भ में ” शेर ” तेरी खुशबू से तेरे होने का, अहसास होता है। जैसे पौ फटने पर, सूर्य का आभास होता है॥2408॥ परमपिता परमात्मा के स्वरूप के संदर्भ में- शरणागति होकर मिले, जीव […]
छल-कपट अथवा चालाकी के संदर्भ में
– चालाकी करना नहीं, मन को हो एहसास। गहरी मीठी मित्रता, में पड़ जाय खटास॥2393॥ साई का सानिध्य हो, आर्जवता के बीच। लोक और परलोक में, बुरी कपट की कीच॥2394॥ ऋजुता हृदय में नहीं, हरि को रहयो पुकार। करुणा निधि कैसे मिले, निज प्रतिबिम्ब निहार॥2395॥ मानव तन दिव्या नौका है जो ईश्वर तक पहुंचाती है:- […]
” शेर ” ऐ ख़ुदा ! तहेदिल से, तुझे आद़ाब करता हूँ । तेरे नायाब रूतबे को, ज़हन में ध्यान रखता हूँ, गिर न जाऊँ तेरी नजरो में कहीं, इस बात का हमेशा ख़याल रखता हूँ । ये सितारो की महफिल सजी है, ये महफिल है सितारो की, नयारो की बहारो की, मुनव्वर कम न […]
संसार में जब तक आप उपयोगी हैं तभी तक आप आदरणीय हैं:- स्वार्थ का संसार है, बिन स्वार्थ नहीं नेह। इसीलिए लगें, धन,माया और देह॥2345॥ नोट- यहां माया से अभिप्राय है सांसारिक रिश्ते। संसार उपनाम क्यों रखता है:- आचरण के अनुरूप ही, जग रखता उपनाम। किसी को कहता संत-महात्मा, कोई हो बदनाम॥2346॥ क्या है ? […]
कांटो की बनी सेज पर, खिलता सदा गुलाब।
बिखरे मोती विषमताओं को पार कर के ही मनुष्य विलक्षण और यशस्वी बनता है:- कांटो की बनी सेज पर, खिलता सदा गुलाब। खूबसूरती खुशबू में , अद्भुत है नायाब।।2333॥ प्रभु – इच्छा ही सर्वोपरि है:- प्रभु- इच्छा प्रबल बड़ी, पूरी हो तत्काल। एक उसके संकेत से, नर होता निहाल॥2334॥ मन कहाँ रहता है :- राग […]
‘विशेष’- प्रभु से क्या मांगें भक्ति अथवा मुक्ति ? ब्रह्म-भाव में हम जीयें, करें ब्रह्म-रस पान। जीवन-धन तेरा नाम है, दो भक्ति का दान॥2775॥ तत्त्वार्थ:- हे ब्रह्मन् ! हे प्राण-प्रदाता ओ३म् !! हे धराधन्य!!! हे अनन्त और निरन्तर कृपा बरसाने वाले पर्जन्य ! आप हम पर इतनी कृपा अवश्य करें, कि आपसे निरन्तर सायुज्यता बनी […]