‘विशेष शेर’ दयानन्द इस चमन का, खिलता गुलाब था। ज्ञान और तेज का, वह आफत़ाब था ।। करता रहा जिन्दगी में, मुतवातिर शबाब था, भारत माँ के ताज का, वो हीरा नायाब था। वो कमशीन था, इज्जोजिल था, वागीश था वो पहुँचा हुआ दरवेश था, वो प्रभु का कृपा पात्र विशेष था। इज्जोजिल अर्थात् दिव्यता […]
Author: विजेंदर सिंह आर्य
कितने विस्मय की बात सखे ! कण-कण में दिखता मुझे, प्रभु तेरा ही नूर । आत्मा में परमात्मा, परिचय को मजबूर ।।2536॥ जिसे वेद ने ‘रसो वै सः’ कहा उससे रसना ही मिलाती है- रसना रट हरि – नाम को, छोड़ व्यर्थ के काम । भवसागर तर जायेगी, मिले हरि का धाम॥2537॥ तत्वार्थ: व्यर्थ के […]
आत्मा और परमात्मा, का नरतन हैं गेह ।
मानव जीवन का लक्ष्य क्या है ? :- आत्मा और परमात्मा, का नरतन हैं गेह । नर से नारायण बनो, इसलिए मिली से देह॥2526॥ तत्वार्थ : नर से नारायण बनने से अभिप्राय है जो परमपिता परमात्मा के दिव्य गुण है उन्हें अपने चित्त में धारण करो ताकि तुम भी प्रभु के तद् रूप हो जाओ […]
धृति – वृति ठीक रख, नीलकण्ठ बन जाय ।
बिखरे मोती परमपिता परमात्मा की भक्ति में अपार शक्ति है:- ओ३म् में शक्ति अपार हैं, कोई होके देखो लीन । भव तरै मुक्ति मिले, ताप रहे ना तीन॥2517॥ आकर्षण का केन्द्र माया नहीं अपितु मायाधीश है:- प्रेम- पाश संसार का, एक दिन तुझे रुलाय। प्रेमाकर्षण ओ३म् का , भव मुत्ति दिलवाय॥2518॥ समाज के भूषण कौन […]
बिखरे मोती अध्यात्म का अर्थ:- आत्मा का तो स्वभाव है, शुद्ध बुध्द और मुक्त। अध्यात्म का सही अर्थ है, रहो सत्य से युक्त॥2514॥ तत्त्वार्थ: कवि यहाँ पर इंगित कर रहा है कि आत्मा का स्वभाव शुद्ध है, अर्थात् पवित्र है,निर्मल है, बुद्ध से अभिप्राय है वह ज्ञान- वान है , इसलिए आत्म प्रेरणा मनुष्य को […]
जब तक काम क्रोध है, दिखता नही स्वरूप।
बिखरे मोती कैसे दिखे आत्मस्वरूप :- जब तक काम क्रोध है, दिखता नही स्वरूप। काम क्रोध का शमन कर, हो जावै तदरूप॥2507॥ तत्वार्थ – कहने का अभिप्राय यह है कि मकड़ी के जाले का रेशा बहुत ही महीन होता है यदि उसके जाले का एक रेशा भी आँख की पुतली पर पड़ जाये तो आँख […]
काश! आदमी का आविर्भाव और अवसान सूर्य जैसा हो – लाली के संग रवी उगै, करे स्वर्णिम प्रभात। अस्तांचल को जब चले, तब भी लाली साथ ॥2806॥ तत्वार्थ :- भाव यह है कि कितना अच्छा हो मनुष्य का जीवन भी सूर्य जैसा हो समस्त ब्रह्माण्ड का केन्द्र बिन्दु ब्रह्म हैं ठीक इसी प्रकार सौरमण्डल का […]
ध्यान लगा हरि ओ३म् मे, हो करके योगस्थ।
बिखरे मोती जिसे वेद ने ‘रसौ वै स : ‘ कहा, वह कैसे मिले :- ध्यान लगा हरि ओ३म् मे, हो करके योगस्थ। रसों का रस मिल जायेगा, जब होगा आत्मस्थ ॥2502॥ योगस्थ अर्थात् योग में स्थित योगयुक्त | आत्मस्थ अर्थात अपनी आत्मा में रमन करना, आत्मा में स्थित होना, आत्मा का अपने स्वभाव लौटना […]
आत्मवान से आप्तकाम, विरला हो कोई शूर। परमधाम की प्राप्ति, नहीं है उससे दूर॥2495॥ आत्मवान अर्थात् अपनी आत्मा का स्वामी यानि की आत्मानुकुल आचरण करने वाला। आप्तकाम अर्थात जिसकी सभी इच्छाएँ अथवा कामनाएं पूर्ण हो गई हो, कोई कामना शेष न हो ऐसे साधक को आप्तकाम कहते हैं। विशेष ‘.शेर’ बुढ़ापे के संदर्भ में:- कौन […]
जब तक मन में कामना, लेगा जनम अनन्त
आवागमन का अन्त कैसे हो :- जब तक मन में कामना, लेगा जनम अनन्त। मन हो जाय अकाम तो, हो जन्म मरण का अन्त॥2491॥ “शेर” बोलो तो कुछ ऐसा बोलो – कौवे की तरह, कांव-कांव करने से, क्या फायदा? बोलो तो कुछ ऐसा बोलो, ताकि सनद रहे॥2492॥ सनद रहे अर्थात् वह प्रमाण रहे विशेष ‘शेर’ […]