माँ के संदर्भ में “शेर“ :- चलती- फिरती भी , जो दुआ देती है। जन्नत से भी बढकर, वो माँ होती हैं॥2594॥ पिता के संदर्भ में ‘शेर ‘ :-** आसमान से भी ऊँचा, जिसका अरमान होता है। फरिश्ते से कभी बढ़कर, वह पिता होता हैं॥2595॥ शेर:- सावधान ! इन्सानी चोले में शैतान भी है:- दिलों […]
लेखक: विजेंदर सिंह आर्य
जिनके लिए संसार में , मनुआ पाप कमाय।
विशेष जाग जाओ, धोखे में मत रहो :-* विशेष जाग जाओ, धोखे में मत रहो :- जिनके लिए संसार में , मनुआ पाप कमाय। एक दिन ऐसा आयेगा, इनसे धोखा खाय॥2587॥ विशेष : – आत्मस्वरूप को कौन जानता है ? :- आत्मवित ही जानता, अपना आत्मस्वरूपा । अवगाहन करे ब्रह्म में, हो जाता तद् रूप॥2588॥ […]
बिखरे मोती विषेश – मानव शरीर को ब्रह्मपुरी क्यों कहा गया है ? मन बुध्दि और आत्मा, का तन है संघात । रचना प्रभु की श्रेष्ठ है। प्रभु से हो मुलाक़ात॥2582॥ तत्वार्थ : – प्रभु- प्रदत्त यह मानव – शरीर मात्र मन, बुध्दि, आत्मा और इन्द्रियों का संगठन नहीं अपितु इस देव-भूमि और ब्रह्मपुरी भी […]
” माँ ” ‘ माँ ‘ शब्द नहीं अनुभूति है, उसका जीवन ही आहुति है। उसके आगे सब बौने हैं, वह प्रभु- प्रदत्त विभूति है। माँ शब्द नही अनुभूति है , उसका जीवन ही आहुति है। माँ प्रतिरूप है ईश्वर का, बच्चों के लिये फरिश्ता है। सब रिश्तों का है मूल यही , रिश्तो में […]
आत्म – कल्याण कैसे हो:- ब्रह्मचित्त जो हो गया, मिले ब्रह्म निर्वाण। काम- क्रोध से मुक्त हो, होय आत्म-कल्याण॥2572॥ ब्रह्मचित्त अर्थात जिसका चित्त ब्रह्म जैसा हो । ब्रह्मनिर्वाण अर्थात्-मोक्ष वे कौन सी तीन चीजें हैं, जो संसार में दुर्लभ है:- दर्लभ मानव जन्म है, मोक्ष और सत्संग। पुण्यात्मा को मिले, इन तीनों का संग॥2573॥ जीवन, […]
बिखरे मोती जीवनी नैया की पतवार क्या है! जीवन की पतवार है, संयम और विवेक । संयम साधै संतुलन, विवेक लगावै ब्रेक॥2560॥ विशेष :- सुख-शान्ति का स्रोत कहाँ है ? :- धन में संतुष्टि नहीं, अध्यात्म देय संतोष । देवयान का मार्ग ये, सुख-शान्ति का कोष॥2561॥ विशेष :- जब हृदय परिवर्तन होता है, तो […]
बिखरे मोती आत्मसुधार का क्रम क्या है?!- संकल्प से हो दीक्षा, दीक्षा से पुरस्कार। श्रध्दा होवे गी अटल, होगा आत्मसुधार॥2549॥ प्रभु- मिलन कैसे हो ? जितना जड़ता में रहे, उतना हरि से दूर। जड़ता अहं को त्याग दे, तो मिले नूर से नूर॥2550॥ ब्रह्माण्ड में सबसे अधिक पवित्र कौन है ? :- इस सारे ब्रहमाण्ड […]
‘विशेष शेर’ दयानन्द इस चमन का, खिलता गुलाब था। ज्ञान और तेज का, वह आफत़ाब था ।। करता रहा जिन्दगी में, मुतवातिर शबाब था, भारत माँ के ताज का, वो हीरा नायाब था। वो कमशीन था, इज्जोजिल था, वागीश था वो पहुँचा हुआ दरवेश था, वो प्रभु का कृपा पात्र विशेष था। इज्जोजिल अर्थात् दिव्यता […]
कितने विस्मय की बात सखे ! कण-कण में दिखता मुझे, प्रभु तेरा ही नूर । आत्मा में परमात्मा, परिचय को मजबूर ।।2536॥ जिसे वेद ने ‘रसो वै सः’ कहा उससे रसना ही मिलाती है- रसना रट हरि – नाम को, छोड़ व्यर्थ के काम । भवसागर तर जायेगी, मिले हरि का धाम॥2537॥ तत्वार्थ: व्यर्थ के […]
आत्मा और परमात्मा, का नरतन हैं गेह ।
मानव जीवन का लक्ष्य क्या है ? :- आत्मा और परमात्मा, का नरतन हैं गेह । नर से नारायण बनो, इसलिए मिली से देह॥2526॥ तत्वार्थ : नर से नारायण बनने से अभिप्राय है जो परमपिता परमात्मा के दिव्य गुण है उन्हें अपने चित्त में धारण करो ताकि तुम भी प्रभु के तद् रूप हो जाओ […]