वर्तमान अनुकूल कर, अपने हित में मोड़ गतांक से आगे….सहस्र गायों के बीच में,बछड़ा मां ढिंग जाए।जैसा जिसका कर्म है,उसी के पीछे आय ।। 540 ।। आयु एक मुहूर्त की,पुण्य तै करे निहाल।पापी की क्या जिंदगी,बेशक जीये सौ साल ।। 541 ।। मुहूर्त अर्थात-48 मिनट का जीवन मिले। बीते पर मत शोक कर,भविष्य की चिंता […]
Author: विजेंदर सिंह आर्य
बिखरे मोती-भाग 39
पिता ज्ञान मां सत्य है, बहन दया, भाई धर्मगतांक से आगे….तीरथ का फल देर में,साधु का मिलै तुरंत।मन निर्मल हो जात है,सुधरे आदि अंत ।। 532 ।। पिता ज्ञान मां सत्य है,बहन दया, भाई धर्म।शांति पत्नी पुत्र क्षमा,जान गया वह मर्म ।। 533 ।। जिस प्रकार कोई भी व्यक्ति अपने बंधु बांधव अथवा परिवार से […]
बिखरे मोती-भाग 38
जन्म से पहले अन्न को, भेज देय भगवानगतांक से आगे….नीम को सींचे ईख से,तो भी मिठास न पाय।कितना ही समझा दुष्ट को,सज्जनता नही आय ।। 522 ।।भाव यह है कि किसी के मूल स्वभाव को बदलना अत्यंत कठिन है।ऊपर से कोमल रहे,अंदर से हो क्रूर।ऐसे बगुला भगत से,रहो दूर ही दूर ।। 523 ।। दुर्जन […]
बिखरे मोती-भाग 37
अंत:करण में मल भरा, और वासना है प्रधानगतांक से आगे….उस व्यक्ति पर प्रभु की विशेष कृपा है। क्योंकि उपरोक्त ऐसे गुण हैं जो अभ्यास से नही अपितु मनुष्य के जन्म लेते ही उसके स्वभाव में आ जाते हैं। हथौड़ी पाहन तोड़ दे,बेशक होय महान।एक तेज के कारनै,व्यक्ति हो बलवान ।। 518।। भाव यह है कि […]
बिखरे मोती-भाग 36
रैन काट पक्षी उड़े, सूना रह जाए नीडभिखारी शत्रु लोभी का,मूरख का गुणगान।चोरों का शत्रु चंद्रमा,कुल्टा का पति जान ।। 508।। बुद्घिहीन को ज्ञान दे,वृथा ज्ञान को खोय।बांस बसे चंदन निकट,खुशबू न वैसी होय।। 509।। बुद्घिहीन को व्यर्थ है,चारों वेदों का सार।जैसे अंधे को आइना,लगता है बेकार ।। 510।। गुदा न कभी मुख हो सके,चाहे […]
बिखरे मोती-भाग 35
मूरख अदना आदमी, दबे पै ही रस देयश्लाघा हो विद्वान की,आदर करते धनवान।सभा बीच वागीश की,विरल होय पहचान ।। 496।। मुक्ति की इच्छा यदि,त्याग दे सारे ऐब।निर्मल रख इस चित्त को,मतकर कभी फरेब ।। 497।। मीत के राज प्रकट करै,वह नीचों का नीच।दम घुटकै मर जाएगा,सांप ज्यों बांबी बीच ।। 498।। सोना बिन सुगंध के,गन्ना […]
बिखरे मोती-भाग 3४
धर्म व्यर्थ है दया बिन, यही शास्त्र का सारजिस प्रकार कुत्ता अपनों को अर्थात कुत्ते को देखकर द्वेष करता है, गुर्राता है, गैरों को देखकर दुम हिलाता है। ठीक इसी प्रकार की प्रवृत्ति दुष्ट की होती है। इस प्रकार के व्यक्ति ईश भजन से दूर किंतु मादक पदार्थों के नशे में चूर रहते हैं, और […]
बिखरे मोती-भाग 33
सेना राजा की शक्ति है, ब्राह्मण वेद-विचारबाल वृद्घ गुरू कन्या को,नही लगाओ पैर।कुपित होय परमात्मा,मांगे मिलै न खैर।। 480।। दूसरों को खुश देखकै,सज्जन मोद मनाय।देख दूसरों को दुखी,दुर्जन खुश हो जाय ।। 481।। समय परिस्थिति देखकै,शत्रु से कर व्यवहार।कभी विनय कभी वीरता,वक्त का कर इंतजार ।। 482।। स्त्रियों का बल रूप है,यौवन मधुर व्यवहार।सेना राजा […]
बिखरे मोती-भाग 31
ईश भजन से भय मिटै, विनम्रता से अहंकार कसौटी कनक को परख दे,कितना कनक में दोष।आचरण से मनुष्य के,परखे जायें गुण-दोष ।। 454।। एक ही मां की कोख है,किंतु भिन्न स्वभाव।जैसे बेर के वृक्ष पर,फल में हो अलगाव ।। 455।। जिसका हृदय साफ हो,होता न धोखेबाज।मूरख मृदुभाषी नही,जग का अटल रिवाज ।। 456।। दरिद्र द्वेष […]
बिखरे मोती-भाग 30
एक पुण्य चलेगा साथ में, सब होवेगा शून्यप्रेमहीन बन्धु जहां,और कुल्टा हो नार।दयाहीन जो धर्म हो,मत करना स्वीकार ।। 444 ।। आयु, मृत्यु, कर्म, धन,और पांचवां ज्ञान।गर्भ में ही सारे मिलें,ऐसा विधि-विधान ।। 445 ।। ेकर्म से अभिप्राय व्यवसाय से है। सत्पुरूषों से ले प्रेरणा,करें शिष्टï व्यवहार।ऐसे कुल संसार में,पाते हैं ख्याति अपार ।। 446 […]