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बिखरे मोती

आकर्षक व्यक्तित्व हो, प्रतिभा सौम्य स्वभाव ।

व्यक्ति को विभूतियां विधाता की कृपा से ही मिलती हैं:- आकर्षक व्यक्तित्व हो, प्रतिभा सौम्य स्वभाव । ये तो प्रभु की देन है, प्रशस्या वाक प्रभाव॥2682॥ व्याख्या : अर्थात् मन को मोहने वाला सुंदर व्यक्तित्व बहुमुखि प्रतिभा का धनी होना तथा इसके साथ-साथ स्वभाव में शालीनता, अहंकार शून्यता होना ये बड़प्पन के लक्ष्ण है, ये […]

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बिखरे मोती

ज्ञान को गम्भीरता और चरित्र की उच्चता के संदर्भ में

‘विशेष शेर’: – ज्ञान की गहराई, चरित्रा की ऊँचाई, दिलों पर गहरी छाप छोड़ती हैं। एक लम्हा ऐसा भी आता है, जब ज़िन्दगी को, रुहानी राह की तरफ मोड़ती हैं॥2674॥ सोचो, यह कितना बढ़ा अज्ञान है? ऐ बशर ! जो तेरा नहीं है, उसे तू मेरा कहता है। खुदा का नाम तेरा था, तेरा है,तेरा […]

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बिखरे मोती

ऐ खुदा ! मैं इस काबिल तो नहीं,

‘ विशेष ‘ जब तुम्हें किसी सभा में सम्मानित किया जाय तो कृतज्ञता इस प्रकार ज्ञापित करें :- ऐ खुदा ! मैं इस काबिल तो नहीं, कि कोई दिल से नवाजे मुझे, लगता है तोफ़ा भेजा है तूने , यही सोचकर नज़रें मैंने झुका दीं। ऐ वाहिद! तू इतना बता मुझे, तुझे मेरी खूबी किसने […]

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दौलत और शोहरत, ज़माना देखता है

स्वर्ग की कामना रखने वालों, जरा ध्यान दो :- दौलत और शोहरत, ज़माना देखता है। मगर दिल की पाकीज़गी, सिर्फ खुदा देखता है॥2650॥ जन्नत की तमन्ना है, तो दिल को पाक रख। जहाँ तेरा यकीन करें, ऐसी साख रख ॥2651॥ जन्नत में पुण्य की , मुद्रा चलती है। वहाँ संसारी दौलत को, कोई नहीं पूछता॥2652॥ […]

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बिखरे मोती

*भक्ति के संदर्भ में ‘शेर’* ग़र ख़ून में बेवफाई हो, तो वफ़ा मिलती नहीं हैं।

भक्ति के संदर्भ में ‘शेर’ ग़र ख़ून में बेवफाई हो, तो वफ़ा मिलती नहीं हैं। ग़र दिल की ज़मी बंजर हो, तो तेरे ईश्क की कली खिलती नहीं है॥2644॥ कब मिलती है मन की शांति सुकून -ए-दिल के लिए, तू दर – दर गया। मगर ये उसको मिला, जो रहबर हो गया॥2645॥ रहबर अर्थात् – […]

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काम नचाता मनुज को, मारग पकड़े प्रेय।

विशेष – मनुष्य को जीवनभर कौन नचाता है ? काम नचाता मनुज को, मारग पकड़े प्रेय। कामना से बढ़ै कामना, मारग भूलै श्रेय॥2629॥ तत्त्वार्थ:- काम अर्थात् इच्छा, स्पृहा ये आकाश की तरह अनन्त है जो जीवनभर पूर्ण नहीं होती हैं। कैसी विडम्बना हैइच्छाओं से भी इच्छाएँ बढ़ती चली जाती हैं । इनकी पूर्ति के लिए […]

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बिखरे मोती

मानव जीवन कब धन्य होता है ?*

ईश्वर – प्रणिधान में, अपना समय गुज़ार। काल – कुल्हाड़ा शीश पें, कब करदे प्रहार॥2625॥ तत्त्वार्थ – ईश्वर प्रणिधान से अभिप्राय है प्रभु की शरणागत होना अर्थात भक्ति के साथ-साथ ऐसे कर्म करना जिनसे प्रभु प्रसन्न हो ,निष्काम-भाव से उन्हें प्रभु के चरणों समर्पित करना ऐसे प्रभु-प्रेम को योगदर्शन ने ईश्वर – प्रणिधान कहा है। […]

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आज का चिंतन

मन खो – जा प्रभु नाम में , पा अतुलित आनन्द ।

सब प्रकार के शोको से मुक्ति कैसे मिले :- मन खो – जा प्रभु नाम में , पा अतुलित आनन्द । रसानुभूति ब्रह्म की, काटे सारे फन्द ॥2615॥ चित्त की कुटिलता भक्ति में सबसे बड़ी बाधा जिनके चित्त में कुटिलता, प्रभु से कोसों दूर। सहज सरल उर में बसे, सारे जग का नूर॥2616॥ नागफनी है […]

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बिखरे मोती

कार्यक्षेत्र के शिखर पर , जब पहुँचे इन्सान।

जब इन्सान अपनी कला की बुलन्दी पर होता है: – कार्यक्षेत्र के शिखर पर , जब पहुँचे इन्सान। दुनियां चक्कर काटती, बने खास पहचान॥2607॥ पक्षी मंडराने लगें, ज्यो फल पकता जाय। गुणी-ज्ञानी इन्सान की, दुनिया कीर्ति गाये॥2608॥ विदाई के संदर्भ में विशेष शेर :- ऐ सितारो ! तुम्हारे मुनव्वर से , ये सभा रोशन हो […]

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बिखरे मोती

क्रिया में कर्मत्त्व को, भरता है संकल्प

बिखरे मोती मनुष्य का कायाकल्प कब होता है ? :- क्रिया में कर्मत्त्व को, भरता है संकल्प । साहस और विवेक से, होता कायाकल्प॥2599॥ कर्मत्त्व अर्थात् अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरन्तर कर्मरत रहना। संकल्प – पक्का इरादा दूर-दृष्टि कायाकल्प – विकासमान होना विशेष :- परलोक सुधारना है तो कर्माशय सुधारों: – जाग सके, […]

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