बिखरे मोती-भाग 187 गतांक से आगे…. बाढ़ ही खेती को खा रही है तो हिमायत किससे करें? किस-किस को रोओगे? रोते-रोते पागल हो जाओगे क्योंकि लोगों ने अपनी आत्मा का हनन करना शुरू कर दिया है। यह पैदा होता है कि यदि ऐसे लोग देश के सुसंस्कृत नागरिक हैं तो निकृष्ट किसे कहेंगे? यदि ऐसे […]
Author: विजेंदर सिंह आर्य
आत्मा की आवाज करती है हमारा मार्गदर्शन
बिखरे मोती-भाग 185 तत्वज्ञान प्राप्ति के लिए आत्मज्ञानी व्यक्ति बाधा आने पर भी विचलित नही होता है क्योंकि उसके अंदर स्थैर्य का विशिष्ट गुण होता है। वह थर्मोस्टेट की तरह होता है, थर्मोस्टेट से अभिप्राय है कि कमरे में लगे हुए ए.सी. के तापमान को स्थिर रखने वाला यंत्र। इस यंत्र की यह विशेषता है […]
स्थिर रख सदा मानवी मन का तापमान
बिखरे मोती-भाग 184 भक्ति के संदर्भ में महर्षि देव दयानंद ने कहा-”प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम एक घंटा प्रतिदिन ध्यान (भक्ति) में बैठना चाहिए। चित्त को हर ओर से हटाकर भगवान के चिंतन में लगा देना चाहिए परंतु जो लोग मुक्ति चाहते हैं उन्हें कम से कम दो घंटे ध्यान करना चाहिए।” महर्षि ने […]
आज भूमंडल का अस्तित्व लगा है दांव पर
बिखरे मोती-भाग 183 भाव यह है कि भगवान से ऊर्जान्वित होते रहने से मनुष्य जीवन की समर्थता है अन्यथा नहीं। दूध विभिन्न सोपानों से गुजर कर भक्ति की उत्कृष्टता और उच्चतम अवस्था को प्राप्त होता है। इसलिए भक्ति का मानव जीवन में विशिष्ट स्थान है। भक्ति के कारण मनुष्य ईश्वर की कृपा का पात्र बनता […]
भक्ति की छाया चित्त में, गहरी हो मनमीत
बिखरे मोती-भाग 182 सद्गुणों से मनुष्य प्रतिभावान होता है, आभावान होता है, दीप्तिमान होता है, गुणवान होता है। वह अपने कुल, समाज और राष्ट्र को आलोकित करता है, उनका गौरव बनता है-जबकि दुर्गुणों से मनुष्य पतन के गर्त में गिरता है, अपने कुल अथवा खानदान, राष्ट्र व समाज को कलंकित करता है और घृणा का […]
बिखरे मोती-भाग 181 अर्जित की हुई संपत्ति बंटवारे के समय विपत्ति बन जाती है। जिस संपत्ति के कारण वह अपने बुढ़ापे को सुरक्षित समझ रहा था, वही विवाद और विनाश का चक्रवात बन जाती है। जिनको वह सहारे समझ रहा था, वही किनारे बन जाते हैं। उसके सुनहले सपने यथार्थ के धरातल से कोसों दूर […]
संपत्ति संचित करी, रहा बहुत परेशान
बिखरे मोती-भाग 180 वास्तव में ऐसा व्यक्ति ही परमात्मा का सबसे प्रिय होता है, उसका खजाना कभी खाली नहीं होता है- क्योंकि उसके सिर पर परमात्मा का वरदहस्त होता है। गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं-हे पार्थ! ‘आप्त बांधव: अर्थात जो दूसरों को आपत्ति से निकालते हैं-वे मेरे रिश्तेदार हैं।’ भाव […]
सबसे बड़ा धनवान है, भूसुर है कोई खास
बिखरे मोती-भाग 179 प्रभुता पाकै श्रेष्ठ हो, फिर भी नहीं अभिमान। ऐसा नर दुर्लभ मिलै, जापै हरि मेहरबान ।। 1108 ।। व्याख्या :- भाव यह है कि प्राय: इस संसार में ऐसे लोग तो देखने को बहुत मिलते हैं, जो धन-दौलत, पद-प्रतिष्ठा, जाति-कुल, विद्या, बुद्घि, आश्रम, शारीरिक सौष्ठव अथवा सौंदर्य विभिन्न प्रकार के बल, […]
ज्ञान-दीप ज्योंहि बुझै, होता महाविनाश
बिखरे मोती-भाग 178 यह लक्षण न तो कर्मयोगी में आया है और न ज्ञान योगी में आया है। यह लक्षण भगवान कृष्ण ने केवल भक्त का बताया है, क्योंकि भक्त में आरंभ में ही मित्रता और करूणा होती है। भक्त की दृष्टि में समस्त प्राणी परमात्मा का अंश हैं, इसलिए वह सोचता है कौन वैर […]
रिश्ते खून के नहीं, इनकी जड़ जज्बात
बिखरे मोती-भाग 177 रिश्ते खून से नही अपितु भावनाओं से जुड़े होते हैं :- रिश्ते खून के नहीं, इनकी जड़ जज्बात। घायल हो जज्बात जब, लगै हृदय को आघात ।। 1104 ।। व्याख्या :- कैसी विडंबना है कि यह संसार रिश्तों की प्रगाढ़ता का मापदण्ड रक्त संबंध को मानता है? ऐसे लोगों की […]