बिखरे मोती-भाग 197 यहां तक कि सद्गुणों के कारण व्यक्ति का इस संसार में ही नहीं अपितु स्वर्ग में भी उसका आसन श्रेष्ठ होता है। अत: हो सके तो संसार में अपने सद्गुणों का, अच्छे हुनर का अधिक से अधिक दान दीजिए। आपके द्वारा दान में दिये गये सद्गुण किसी को फर्श से उठाकर अर्श […]
Author: विजेंदर सिंह आर्य
बिखरे मोती-भाग 196 यह कोई आवश्यक नहीं कि कपड़े रंगने से ही वैराग्य होता है। महाराजा जनक तो राजा होते हुए भी वैरागी थे। वैराग्य से अभिप्राय है-विवेक का जगना अर्थात आसुरी शक्तियों का उन्मूलन और दिव्य शक्तियों (ईश्वरीय शक्तियों) का अभ्युदय होना, उनका प्रबल होना ही वैराग्य कहलाता है। यदि जीवन में वैराग्य जग […]
बाना लिया बैराग का, पर भीतरले में मोह
बिखरे मोती-भाग 195 जो लोग इस तन को सजाने संवारने में, उसे हर प्रकार से प्रसन्न रखने में उसके लिए ‘येन केन प्रकारेण’ अर्थोपार्जन करने में अर्थात अनाप-शनाप तरीके से धन कमाने में जीवनपर्यन्त लगे रहते हैं, वे आत्मा का हनन करते हैं, अक्षम्य अपराध करते हैं, वे इस लोक में तो अपयश के भागी […]
भगवद् भक्ति का लक्ष्य पीछे छूट गया
बिखरे मोती-भाग 194 गतांक से आगे…. भोजन वसन तन को दिये, सुंदर दिये आवास, भक्ति-रस ना दे सका, नहीं बुझी हंस की प्यास ।। 1127।। व्याख्या :-हाय रे मानव! तेरी मनोदशा देखकर मुझे करूणा आती है। पता नहीं कितने जन्मों के बाद तुझे यह नर-तन मिला है, इसे तो प्यारा प्रभु ही जानता है। इसीलिए […]
अहम् बहम के कारणै, नर ऊंचे से गिर जाए
बिखरे मोती-भाग 193 परिणाम यह होता है कि पहले तो रिश्तों में खिंचाव और बचाव का क्रम चलता है, घुटन, तनाव और दूरी बढऩे लगती है, ईष्र्या और घृणा की अग्नि जो सामाजिक आवरण की राख के नीचे दबी थी, उसे मामूली से क्रोध की चिंगारी विस्फोटक और भयावह इस कदर बना देती है कि […]
सोओ तो कहो शुक्रिया, जो कुछ दीना मोर
बिखरे मोती-भाग 192 इनका स्वामी तो केवल वही परमपिता परमात्मा है। इसीलिए ऋग्वेद के ऋषि ने भी उसे ‘स्ववान’ कहा है। ‘स्व’ कहते हैं धन को और वान कहते हैं स्वामी को अर्थात जो समस्त सृष्टि के ऐश्वर्य का स्वामी है। जो सूर्य, चंद्र, नक्षत्र, पृथ्वी आदि का रचने हारा है, जो पर्वत, पठार, सरिता, […]
धनपति और पृथ्वीपति, कहला गये अनेक
बिखरे मोती-भाग 191 गतांक से आगे…. यदि वाणी में आकर्षण नहीं अपितु विकर्षण है तो परिजन, मित्र बंधु-बांधव, अनुयायी, भृत्य और प्रशंसक ऐसे छोडक़र चले जाते हैं जैसे सूखे वृक्ष को छोडक़र पक्षी चले जाते हैं। इसलिए श्रेष्ठता का ताज व्यक्ति की वाणी पर टिका है, क्योंकि वाणी ही व्यवहार का आधार होती है। सम्राट […]
ताज टिका नहीं शीश पै, इसकी नींव जुबान
बिखरे मोती-भाग 190 गतांक से आगे…. कहने का अभिप्राय है कि जो व्यक्ति पैसे के लिए दूसरों का हक मारते हैं, उनका टेंटुआ दबाते हैं, उन्हें पाप-पुण्य अथवा धर्म-कर्म की चिंता नहीं, उन्हें तो पैसा चाहिए, पैसा। चाहे वह ईमानदारी के बजाए बेशक बेइमानी से आये, उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं। ऐसे लोग […]
आनंद लोक को ले चले, बिरला मिलता नेक
बिखरे मोती-भाग 189 गतांक से आगे…. ”जीना है तो दिव्यता में जीओ।” ”आत्मा की आवाज सुनो और आगे बढ़ो।” आत्मा की आवाज परमात्मा की आवाज होती है। आत्मा की बात को मानना भगवान की बात को मानना है। इस संदर्भ में भगवान राम ‘रामचरितमानस’ के उत्तरकाण्ड पृष्ठ 843 पर कहते हैं- सोइ सेवक प्रियतम मम […]
यदि यही प्रगति है तो पतन क्या होगा
बिखरे मोती-भाग 188 गतांक से आगे…. हिंसा मन का स्वभाव है जबकि अहिंसा आत्मा का स्वभाव है। लोभवश कोई अपराध करने पर कहता है-”मन बिगड़ गया था” अर्थात आत्मा रूपी सवार को मन रूपी घोड़ा उड़ा ले गया और उसे पतन के गड्ढे में गिरा दिया। इससे स्पष्ट होता है कि लोभ मन का स्वभाव […]