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बिखरे मोती

बिखरे मोती

भक्ति की सबसे ऊँची अवस्था के संदर्भ में शेर :- तौफीक – ए – खुदा , बड़ी मुश्किल से होती है। जब भी होती है, तो वाहिद की आँख रोती है॥2741॥ वाहिद – भक्त, साधक जमाल अर्थात् बेपनाह,बसूरती, सौन्दर्य की पराकाष्ठा महर्षि देव दयानन्द का आविर्भाव इतिहास को अविस्मरणीय घटना के संदर्भ में: – दया […]

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जो प्रभु के अभिमुख रहे, छूटता जा संसार

जो प्रभु के अभिमुख रहे, छूटता जा संसार। जैसे रवि के सामने, नहीं टिकै अन्ध‌कार ॥2740॥ भावार्थ :- मेरे प्रिय पाठकगण इसे एक दृष्टान्त से समझे । जिस प्रकार सूर्य जब पीठ पीछे होता है, तो व्यक्ति अथवा की छाया आगे-आगे होती है, जो कामी-कभी बाधा भी बन जाती है किन्तु व्यक्ति सूर्य के अभिमुख […]

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प्रभु की अनन्त कृपाओं के संदर्भ में

प्रभु – कृपा नित बरसती, दिखता नहीं है कोष। ज्यों वारिद बिन रात में, बरसती रहती ओस ॥ वारिद अर्थात बादल॥2735॥ भावार्थ :- जिस प्रकार साफ आसमान से रात में गिरती हुई ओस की बूँदें दृष्टिगोचर नहीं होती है, ठीक इसी प्रकार हम पर परम पिता परमात्मा की अनेक प्रकार की अनन्त कृपाएँ बरसती हुई […]

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*”विशेष” मानव – जीवन का अन्तिम लक्ष्य क्या है :

“विशेष” मानव – जीवन का अन्तिम लक्ष्य क्या है :- मल आवरण विक्षेप की, पर्ते चढ़ी हजार। मानव-जीवन में करो, आत्मा का परिष्कार॥2734॥ तत्त्वार्थ :- मेरे प्रिय पाठक बड़ी सरलता से उपरोक्त दोहे के आशय को समझें इसको ऐसे समझें जैसे एक गोल रोटी है और उसके चार भाग हैं, जिनके नाम है- A.B.C. D. […]

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दिव्य- रथ है तन तेरा, धैर्य-शौर्य चक्र।

यह शरीर माटी का पुतला नही अपितु दिव्य-लोक का साधन है। इसमें छिपी प्रभु- प्रदत्त शक्तियों को पहचानो: – दिव्य- रथ है तन तेरा, धैर्य-शौर्य चक्र। आत्मज्ञान प्रदीप्त कर, काहे चले तू वक्र॥2732॥ भावार्थ : – प्रायः देखा गया है, कि इस संसार में कतिपय लोग इस मानव शरीर को ‘माटी का पुतला’ कहते है। […]

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सुषुप्ति समाधि मोक्ष में, आत्मा हो तद् रूप।

बिखरे मोती वे कौन सी तीन अवस्थाएं हैं ? जिनमें आत्मा अपने निजी स्वरूप में अवस्थित होती हैं अथवा जिनकी रसानुभूति अलौकिक और अपरिमित है: – सुषुप्ति समाधि मोक्ष में, आत्मा हो तद् रूप। ब्रह्म-शक्ति से युक्त हो, पावै निजी स्वरूप॥2730॥ भावार्थ:- मनुष्य जब गहरी नींद में होता है,योगी जब गहन समाधि में होता है […]

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दैवी-सम्पद साथ जा, लौकिक यहीं रह जाय।

स्वर्ग का प्रवेश-द्वार किन के लिए खुला है :- दैवी-सम्पद साथ जा, लौकिक यहीं रह जाय। भजन – भलाई रोज कर, तभी स्वर्ग को पाय॥2726॥ पूर्व-जन्म के तप को कौन नष्ट करता है :- अहंकार के कारणै, पिछला तप घट जाय। धन-यश भी घटने लगै, होंसला टूटता जाय॥2727॥ पूर्व-जन्म का तप पुनः प्रभावी कब होता […]

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बिखरे मोती

दैवी-सम्पदा चित्त में, ईश्वर को सौगात॥

‘ विशेष ‘ कहाँ छिपे हैं, दैवी -सम्पदा के अक्षय भण्डार ? वाह्य-सम्पदा के लिए, श्रम करता दिन-रात । दैवी-सम्पदा चित्त में, ईश्वर को सौगात॥2725॥ भावार्थ:- है मनुष्य! तू सांसारिक सम्पत्ति अर्जित करने के लिए दिन-रात पसीना बहाता है, भागीरथ तप करता है। अन्ततोगत्त्वा एक दिन इसे छोड़ कर चला जाता है। इसके अतिरिक्त तझे […]

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कविता

सज्जन की पहचान है, कड़‌‌वाहट पी जाय।

आओ, बादल से भी कुछ सीखें : – सज्जन की पहचान है, कड़‌‌वाहट पी जाय। खारा जल मीठा करे , जब अम्बुद बन जाय॥ अम्बुद – अर्थात, बादल॥2723॥ तत्त्वार्थ – भाव यह है कि समुद्र का जल खारा होता है किन्तु सूर्य की तेज रश्मियाँ जब उसे वाष्प में परणित करती हैं, तो वह ऊपर […]

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बिखरे मोती

*धरती देती धैर्य , नभ देता विस्तार -*

बिखरे मोती धरती देती धैर्य , नभ देता विस्तार। प्राणित करती है पवन, अग्नि दोष पखार॥2721॥ तत्त्वार्थ :-भाव यह कि मनुष्य को केवल तत्त्व ही आगे बढ़ने अथवा ऊंचा उठने के लिए प्रेरित नहीं करते हैं अपितु जड़ पदार्थ भी उसे मूक भाषा में प्रेरणा देते हैं , जैसे धरती से धैर्य सीखना चाहिए। आकाश […]

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