मृत्यु खावै रोग को, पाप आत्मा खाय। ऐसी करनी कर चलो, जो परमधाम मिल जाय॥1461॥ व्याख्या :- मृत्यु का क्षण बड़ा दार्शनिक होता है।आदर्श और यथार्थ का यह कितना कठोर संगम है? मृत्यु की गोद में जीवन के सारे स्वप्न सो जाते हैं। वियोग जीवन का परम सत्य है।एक न एक दिन सभी को […]
Author: विजेंदर सिंह आर्य
बाहर की प्रताड़ना देती मन को त्रास
बिखरे मोती हरि भजै दुर्गुण तजै, मन होवै प्रपन्न। ऐसे साधक से सदा, हरी रहे प्रपन्न॥1458॥ प्रपन्न – अहंकार का गलना और प्रभु के समर्पित होना,प्रभु के शरणागत होना साधक -भक्त धन – माया दोनों छिनें, मृत्यु छीने प्राण। सर सूखे हंसा उड़़े, सब कुछ हो सुनसान॥1459॥ बाहर की प्रताड़ना, देती मन को त्रास। […]
माँ शब्द वाचिक नहीं, हृदय की सौगात
मां के चरणों में झुके जितना नर का माथ। उतना ही ऊंचा उठे ईश्वर पकड़े हाथ।। जन्नत मां की गोद में जीते जी मिल जाय। मां का नहीं मुकाबला सब बौने पड़ जाय।। मां का दिल ममता भरा वात्सल्य का कोष। कोमल है नवनीत सा स्वर्ग सी है आगोश।। मां होती है प्यार की बदली […]
अशेष की जो विभूतियां, जाने सिर्फ अशेष अक्षत मन से सिमरले, परम – पिता का नाम। आत्मा का भोजन भजन, लिया करो सुबह-शाम॥1448॥ अक्षत मन – पूरा मन, पूर्ण मनोयोग भक्ति में हो प्रेम-रस, साधक होवै लीन। अवगाहन हरि में करे। जैसे जल में मीन ॥1449॥ अवगाहन – विचरण रूहानी – दौलत के छिपे , […]
जीवन के दो मार्ग हैं …….
बिखरे मोती जीवन के दो मार्ग हैं, एक प्रेय एक श्रेय जीवन के दो मार्ग हैं, एक प्रेय एक श्रेय। श्रेय – मार्ग से ही मिले, ब्रह्म – प्राप्ति का ध्येय॥1413॥ मानुषी – धन संचित किया , दिव्य से खाली हाथ। मानुषी रह जायेगा, दिव्य चलेगा साथ॥1414॥ अगम अगोचर ईश है , ज्ञानी ध्यान लगाय। […]
अंकित सिंह अपनी बहुमुखी प्रतिभा से हिन्दी भाषा की अकल्पनीय सेवा कर गये भारतेंदु हरिश्चंद भारतेंदु हरिश्चंद्र ने उस दौर में हिंदी साहित्य के आयाम को नयी दिशा दी जब अंग्रेजों का शासन था और अपनी बात कह पाना कठिन था। उन्होंने एक ओर खड़ी बोली के विकास में मदद की वहीं अपनी भावना […]
भक्ति रस में डूब जा, जो चाहे कल्याण भक्ति रस में डूब जा, जो चाहे कल्याण। रसना पै हरि -ओ३म् हो, जब निकले तेरे प्राण॥ 1395॥ एक हरि का आसरा, बाकी जग में भीड़। सर सूखे हंसा उड़े , खाली होगा नीड़॥1396॥ न्याय करे संसार में, ईश्वर का कानून । बिजली की तरह टूटता, […]
चुनरी अंतःकरण की,धोय सके तो धोय
चुनरी अंतःकरण की,धोय सके तो धोय चुनरी अंतःकरण की, धोय सके तो धोय। दिव्यलोक – नौका मिली, मत वृथा इसे खोय॥ 1261॥ व्याख्या:- हे मनुष्य! वस्त्रों में लगे दागों की तो तू चिंता करता है और उन्हें येन केन प्रकारेण साफ भी कर लेता है किन्तु तेरी नादानीयों के कारण यह मनुष्य- जीवन व्यर्थ जा […]
बिखरे मोती-भाग 239
हे मनुष्य! बाधाओं को देखकर निराश मत हो, जीवन में बाधाएं तो आएंगी ही आएंगी। जैसे सागर के जल से लहरों को अलग नहीं किया जा सकता है, ठीक इसी प्रकार जीवन से समस्याओं को दूर नहीं किया जा सकता है। इनसे तो जूझना ही पड़ता है। पानी की तरह रास्ता ढूंढऩा पड़ता है, और […]
बिखरे मोती-भाग 238
समस्त सृष्टि की रचना पंचमहाभूतों से हुई है। इनमें अग्नि तत्त्व ऐसा है, जो चार महाभूतों जल, पृथ्वी, वायु और आकाश का अतिथि है अर्थात अग्नि तत्त्व सब महाभूतों में प्रविष्टï हो सकता है, यह विशेषता अन्य किसी महाभूत में नहीं है। यदि पांचों महाभूतों में प्रविष्टï होने की विलक्षणता है, तो वह केवल मात्र […]