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बिखरे मोती

प्रकृति को देखिए, करती रोज परार्थ

    प्रकृति को देखिए , करती रोज पदार्थ। नर तो वही श्रेष्ठ है , जो करता परामर्श॥ 1481॥ व्याख्या :- हमारे ऋषि – मुनि प्रकृति की सुरम्य उपत्यका में बैठकर चिंतन-मनन और ध्यान करते थे। वे प्रकृति से बहुत कुछ सीखते थे । जैसे प्रकृति के पंचभूत – पृथ्वी सबको आश्रय देती है ,भरण […]

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बिखरे मोती

परमात्मा कितना दूर कितना पास ?

बिखरे मोती पंचतत्त्व से दूर है, महत्त्व से महान । कारण रूप में व्यापता कण-कण में भगवान॥ 1476॥ भावार्थ – पृथ्वी से परे अर्थात् दूर जल है,जल से दूर तेज (अग्नि) है, तेज से दूर वायु है,वायु से दूर आकाश है,आकाश से दूर महतत्त्व है, महतत्त्व से दूर प्रकृति है,और प्रकृति से दूर परमात्मा है। […]

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बिखरे मोती

बिखरे मोती : ज्ञान से होता कर्म है ,श्रद्धा से सत्कर्म

  ज्ञान से होता कर्म है,श्रद्धा से सत्कर्म ज्ञान से होता कर्म है, श्रद्धा से सत्कर्म । धर्म होय वैराग्य से , ऐश्वर्य दे धर्म ॥1475॥ व्याख्या:- ज्ञान से अभिप्राय है – “जो जैसा है,उसे वैसा ही जानना और मानना ज्ञान कहलाता है”।”ज्ञान का क्रिया में परिवर्तित होना कर्म कहलाता है।”हमारे धर्म – शास्त्रों में […]

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बिखरे मोती

आत्मज्ञानी की पहचान

आत्मज्ञानी है वही, आत्मरमण करे रोज। स्थित आत्मस्वरूप में , करे ब्रह्म की खोज॥1474॥ व्याख्या:- पाठकों को यह बताना अपेक्षित रहेगा कि यह मरण-धर्मा शरीर उस अमृत रूप अशरीर आत्मा का अधिष्ठान है,उसके रहने का स्थान है।आत्मा स्वभाव से अशरीर है,परन्तु जब तक इस शरीर के साथ अपने को एक समझ कर रहता है तब […]

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बिखरे मोती

बिखरे मोती : श्रद्धा विवेक वैराग्य से भक्ति चढ़े परवान

बिखरे मोती श्रद्धा विवेक वैराग्य से भक्ति चढ़े परवान । भक्ति करे कोई सूरमा, जाको हरि में ध्यान॥1471॥ व्याख्या:- साधारणतया लोग ऐसे व्यक्ति को भक्त कहते हैं,जो राम-नाम का जप करता है अथवा ओ३म् नाम का जप करता है। वस्तुतः भक्ति तो चौथा सोपान है, जो अध्यात्म का शिखर है।इस शिखर तक पहुँचने से पूर्व […]

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बिखरे मोती

रसना हरि को नाम ले, मत करना प्रमाद

  रसना हरि को नाम ले, मत करना प्रमाद। अनहद – चक्र मे बजे, सुन अनहद का नाद॥ 1469॥ व्याख्या:- मनुष्य प्रकृति में परमपिता परमात्मा की उत्कृष्टतम रचना है।चौरासी लाख योनियों में केवल मनुष्य को ही प्रभु ने ऐसी रसना का अमोघ उपहार दिया है,जिससे वह संवाद के साथ-साथ भगवान की भक्ति भी कर सकता […]

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आज का चिंतन

बिखरे मोती : चिंतन होय पवित्र, तो हो व्यवहार पुनीत

  चिन्तन होय पवित्र तो, हो व्यवहार पुनीत। ऐसा वो ही कर सके, जाकी प्रभु से प्रीत॥1470॥ व्याख्या:- वस्तुत:मनुष्य का चित्त यदि मनोविकारों अथवा दुर्गुणों और दुरितों से भरा है, तो उसका आचार-विचार अथवा व्यवहार भी आसुरी प्रवृत्तियों को परिलक्षित करता है।ऐसे व्यक्ति को समाज में सभी लोग हेय-भाव से देखते हैं और यदि व्यक्ति […]

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बिखरे मोती

धन को बदलो धर्म में करो लोक कल्याण

बिखरे मोती धन को बदलो धर्म में , करो लोक – कल्याण। हाथ दिया ही संग चले, खुश होवें भगवान॥1467॥ व्याख्या :- मानव – जीवन क्षणभंगुर है,न जाने कौन सा स्वांस जाने के बाद फिर लौट कर ना आये। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह अपने तन ,मन और धन से धर्म को कमाये अर्थात् […]

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कविता

भाव से अति सूक्ष्म है ब्रह्मांड का ईशान

बिखरे मोती भाव से अति सूक्ष्म है , ब्रह्माण्ड का ईशान। चित्त का चिन्तन जानता, परम पिता भगवान॥1465॥ व्याख्या:- पाठकों की जानकारी के लिए यहां यह बता देना प्रासंगिक होगा कि आत्मा चित्त में रहती है जबकि परमात्मा आत्मा में निवास करता है।हमारे चित्त में अति सूक्ष्म सद्भाव और दुर्भावना ते हैं किंतु परमपिता परमात्मा […]

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बिखरे मोती

जैसा जिव्हा जप करे वैसे मन में भाव

बिखरे मोती   जैसा जिह्वा जप करे, वैसे मन में भाव। दोनों में हो एकता, पार लगेगी नाव ॥1463॥ व्याख्या:- प्रायःदेखा गया है कि कतिपय लोग अपनी रसना से किसी वेद – मंत्र अथवा श्लोक का जप तो करते हैं किंतु चित्त में आर्जवता(सरलता) नहीं कुटिलता होती है अर्थात् छल, कपट, ईर्ष्या, द्वेष,प्रतिशोध और जघन्य […]

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