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बिखरे मोती

ये जीवन स्वर्ग कैसे बने :-

बिखरे मोती ये जीवन स्वर्ग कैसे बने :- आंखों में स्वर्ग रखो। हृदय में रहम रखो॥ हाथों में कर्म रखो। वाणी को नरम रखो।। गुणी- ज्ञानी के पास में लगा रहे दरबार :- सागर को घेरे रहे, ज्यों सरिता की धार। गुणी-ज्ञानी के पास में, लगा रहे दरबार ।। मूरख से बचाव ही श्रेयस्कर है:- […]

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बिखरे मोती

घट भीतर परमात्मा, जाग सके तो जाग

बिखरे मोती आत्म – साक्षात्कार के संदर्भ में:- आतम भावना जी सदा, देह – भाव को त्याग। घट भीतर परमात्मा, जाग सके तो जाग॥1677॥ जिनके कारण मनुष्य का रिश्ता कहलाता है:- कीर्ति जैसा धन नहीं, माता जैसा देव। संयम जैसा गुण नहीं, नर होता भूदेव॥1678॥ भूदेव – अर्थात् पृथ्वी का देवता भूल की भूल आत्मा […]

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बिखरे मोती

अंहता – ममता कब मोक्ष दायिनी होती है

बिखरे मोती अंहता – ममता में फंसा, ये सारा संसार। बदलो अहं की सोच को, मिले मुक्ति का द्वार॥1676॥ व्याख्या:- दृश्यम संसार अहंता और ममता में फंसा हुआ है, चाहे वह राजा है अथवा रंक हो। अहंता से अभिप्राय है -ममता से अभिप्रया है – जो इस शरीर से जुड़े हैं उनके प्रति आसक्ति भाव […]

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बिखरे मोती

प्रतिभापुँज व्यक्ति आकर्षण का केंद्र होता है

बिखरे मोती प्रतिभापुँज व्यक्ति आकर्षण का केंद्र होता है प्रतिभापुँज संसार में, बिरला होता कोय। आकर्षण का केंद्र हो, सभा भी रोशन होय॥1669॥ भावार्थ:- जिस प्रकार झील का कमल और सरोवर का हंस दोनों ही अपनी उपस्थिति से यथा स्थान शोभा में चार चांद लगाते हैं, वहां की शोभा बढ़ाते हैं, ठीक इसी प्रकार प्रतिभा […]

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धर्म-अध्यात्म

बिखरे मोती : बहुवित से भी श्रेष्ठ है, चित्तपावन व्यवहार

बहुवित से भी श्रेष्ठ है, चित्तपावन व्यवहार। दत्तचित होकर सुने, अनुगामी संसार॥1667॥ व्याख्या:- अधिकांशत:इस संसार में ऐसे लोग बहुत मिल जाएंगे जो बहुत कुछ जानते हैं, और उसे अपनी वाणी से अभिव्यक्त भी करते हैं तथा स्वयं को श्रेष्ठ होने का मिथ्या दम्भ पाले रखते हैं किन्तु वास्तव में वही व्यक्ति श्रेष्ठ है,जो अपने चित्त […]

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बिखरे मोती

बिखरे मोती : मन, दिव्य शक्ति है-

मन के शुभ संकल्प से, होता है कल्याण। मन रक्षक मन ब्रह्म है, शक्ति दिव्य महान॥1666॥ व्याख्या:- प्रायः मन के बारे में कहा जाता है कि मन पापी है, मन कपटी है, मन चोर है, मन बेलगाम घोड़ा है, यह मन का नकारात्मक पक्ष है किन्तु समग्र दृष्टि से देखिए,समीक्षा कीजिए, सकारात्मक पक्ष पर भी […]

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बिखरे मोती

कौन किसके लिए कितना महत्त्वपूर्ण

बिखरे मोती खेती होवै पानी से, वाणी से व्यापार। हाँ – जी से हो चाकरी, चाव से हो त्योहार॥1664॥ वाणी विधाता का वरदान है वाणी तो एक बांसुरी, मोहक धुन की खान। गहना है व्यक्तित्व का, विधाता का वरदान॥1665॥ व्याख्या :- वाणी और मुस्कान परमपिता परमात्मा ने केवल मनुष्य को ही प्रदान किए हैं, अन्य […]

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बिखरे मोती

जीवन का सार,मन-वाणी की साधना

मन-वाणी की साधना, दो ऐसी पतवार। जीवन – नैया को करें, भवसागर से पार॥1662॥ भावार्थ :- प्रायः मनुष्य तीन तरह से पाप करता है – मन ,वाणी और शरीर पाप के माध्यम है। इसके अतिरिक्त इन तीनों से शुभ – कर्म भी होते हैं, जो इस प्रकार हैं:- तन से होने वाले पाप:- अशुभ कर्म- […]

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बिखरे मोती

वाणी रूपी गाय को, संयम रूपी खूँटे से बाँध कर रखिए

बिखरे मोती संयम खूंटे से बाँधले, वाणी रूपी गाय, खुली छोड़ने पर तेरी, यस – खेती चर जाय।।1661।। भावार्थ :- जिनकी वाणी में प्राण और प्राण में प्राण होता है, संसार में ऐसे लोग बिरले ही होते हैं। वाणी माननीय व्यक्तित्व का सर्वश्रेष्ठ गहना है। सब गहने एक दिन अपनी चमक खो देते हैं किन्तु […]

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बिखरे मोती

साधना से सृजन करें, कोई दाता या शूर

साधना से सृजन करे, कोई दाता या शूर। सृष्टि-हित में रत रहे, ईश्वर का है नूर॥1656॥ भावार्थ:- अपनी आजीविका आजीविका के लिए सामान्य व्यक्ति कुछ न कुछ उत्पन्न करने अथवा निर्माण करने में लगा हुआ है किन्तु संसार में ऐसे ही व्यक्ति होते परमपिता परमात्मा की बनाई सृष्टि के कल्याण के लिए निर्माण अथवा अनुसंधान […]

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