बिखरे मोती तुच्छ जन संसार में, करें तुच्छता की बात:- तुच्छ जन संसार में, करे तुच्छता की बात। सत्पुरुष सहते रहें, भिन्न – भिन्न आघात॥1802॥ नीच- किच से बच रहो, करो नहीं तकरार। न जाने किस वक्त ये, इज्जत देंय उतार॥1803॥ महिमा मण्डित गुण करे, हीरा सा अनमोल। वाणी से मत पाप कर, तोल -तोलकर […]
Author: विजेंदर सिंह आर्य
मंगल – सूत्र का महत्व:-
बिखरे मोती मंगल – सूत्र का महत्व:- मांगालिक मर्यादा का, द्योतक मंगल – सूत्र। सुहाग और सौभाग्य को, करता परम पवित्र॥1783॥ मानव होता मौन है, जब अनुभव पक जाय। आधे – अधूरे ज्ञान से, अधिक बोलता जाय॥1784॥ बेशक गहरी रात हो, अन्त में हो प्रभात। हिम्मत से तू काम ले, बनेगी बिगड़ी बात॥1785॥ एक सहारा […]
वाणी कभी औषध बने, कभी करे है घाव।
जब व्यक्ति का उत्थान-पतन सन्निकट होता है, तो वाणी का प्रभाव तदनुसार घटता-बढ़ता रहता है:- वाणी कभी औषध बने, कभी करे है घाव। घटता-बढ़ता चाँद सा, वाणी का प्रभाव॥1760॥ वाणी ऐसी बोलिये, जो दिल में देय उतार। ऐसी कभी न बोलिये, जो दिल में दे उतार॥1761॥ वाणी में शुद्धि नहीं, बिगड़ जाय व्यवहार। आकर्षण रहता […]
मन-बुद्धि और चित्त का, सौन्दर्य मत खोय॥ यह सौन्दर्य अमूल्य है, आत्मा भूषित होथ॥1740॥ भव्यता – सौम्यता और दिव्मता से कौन सुशोभित होते है:- भवन की शोभा भव्यता, सौम्यता साधु की शान । दिव्यता पाने पर लगे , देव तुल्य इन्सान॥174॥ सौम्यता और दिव्यता की जननी कौन ? ऋजुता हृदय में होय तो , सौम्यता […]
बिखरे मोती : चिंतन के संदर्भ में:-
व्यक्ति का चिन्तन उसे, देता है व्यक्तित्व । चिन्तन आला दर्जे का, ऊँचा रखे अस्तित्व॥1721॥ चिन्तन जैसा होत है, वैसा हो व्यक्तित्व। सुई संग धागा चले, वृत्ति संग के कृतित्त्व ॥1723॥ चिन्तन मति बिगारिये, चिन्तन है बुनियाद्। ऊँचे चिन्तन से उठै, नीचे से बर्बाद॥1723॥ चिन्तन निर्मल राखिए, प्रभु की पहली पसन्द। निर्मल चिन्तन से मिले, […]
भक्ति चढ़ै परवान तो , वाणी हो खामोश । आँखियों से आंसू बह, मनुआ हो निर्दोष ॥1705 ॥ रसों का रस वह ईश है, भज उसको दिन – रात । एक दिन ऐसे जायेगा, ज्यों तारा प्रभात् ॥ 1706॥ नाम जन्म स्थान को, जाने प्राणाधार । संसृति से मुक्ति का , बिरला करे विचार॥1707॥ जीवन […]
भूल जा कड़वे अतीत को, मत कर उसको याद। सोच समय सम्पत्ति को, कर देगा बर्बाद॥1687व भक्ति के संदर्भ में:- एक जाप एक ध्यान हो, मत भटकै चहुँ ओर। हिये में आनन्द स्रोत है, सुन अनहद का शोर॥1688॥ भगवद – भाव में जी सदा, जो चाहै कल्याण। यही कमाई संग चले, जब निकलेंगे प्राण॥1689॥ दुनिया […]
बिखरे मोती : प्रभु मिलन की चाह है तो……
. दुर्गुण – दुरित का शमन, किया करो हर रोज। जग की सेवा प्रति हरी से, करो स्वयं की खोज॥1686॥ भावार्थ:- जिस प्रकार दो कुंओं का स्वच्छ जल आपस में मिलकर एकाकार हो जाता है, ठीक इसी प्रकार जब भक्तों की आत्मा में परमात्मा के ईश्वरीय गुण आत्मसाता होते हैं तो उसकी आत्मा तदाकार हो […]
सत्य शील और सोम्यता, से भूषित श्रीराम । जिसमें हों ये विभूतियाँ, पावै मुक्ति-धाम॥1685॥ भावार्थ:- भगवान राम का व्यक्तित्व अप्रतिम है, मर्यादा से परिपूर्ण है, जीवन के हर क्षेत्र में उन्होंने मर्यादा का पालन करके उन्होंने उत्कृष्ट आदर्श उपस्थित किया है। चाहे गुरु के प्रति शिष्य – धर्म हो, पितृ – धर्म हो, पत्नीव्रता – […]
चरित्र की खुशबू चारों दिशाओं को सुरभित करती है:- फूल की खुशबू बहत है, जिस दिश बहे समीर। रामचरित चहुँ दिश बहे, सुलोचना भई अधीर॥1682॥ भावार्थ:- माना कि फूल अपने आसपास के वातावरण को सौन्दर्य देते हैं, सुगन्धित करते हैं किन्तु इनकी सुगन्ध उस दिशा को बहती है जिस दिशा को वायु का वेग होता […]