बिखरे मोती “प्रकृति परिवर्तनशील है” किन्तु इस नियम में अपवाद भी है, जैसे:- हवा सदा बहती रहे, पर्वत रहें कठोर। रवि सदा तपता रहे, सांझ होय चाहे भोर।।1998॥ भक्ति की परिकाष्ठा के संदर्भ में – भक्ति चढ़े परवान तो, छूट जाय संसार। कण-कण में दिखने लगे, सबका प्राणाधार॥1999॥ वैश्वानार एक रूप अनेक – फूलों में […]
Author: विजेंदर सिंह आर्य
शख्सियत और शोहरत (यश) के संदर्भ में
बिखरे मोती शख्सियत और शोहरत , बड़े नसीब से मिलती है। यह वह नयाब दौलत है, जो खुदा के करीब से मिलती है॥1980॥ तेरी कृपा से उगें, मन में सत्संकल्प । दृढ़ होवै संकल्प तो, कोई नहीं विकल्प॥ 1981॥ तेरे ध्यान में प्रभु! रहूं सदा में लीन तुम बिन चित्त तडपै मेरा, जैसे जल बिन […]
परमपिता परमात्मा की अनंत कृपा के संदर्भ-
बिखरे मोती तू सौवे वह जागता, चला रहा तेरे सांस । हृदय की धड़कन चला, करता तेरा विकास॥1959॥ संत संनिधि के संदर्भ में- आत्मवेत्ता संत मिले, तो सद् गुण बढ़ जाय। जैसे पारस लोहे को, सोना दे बनाय॥1960॥ मूरख के स्वभाव के संदर्भ में – मूरख निज मन की करे, समझाना बेकार । ज्ञान की […]
प्रेम और मोह में अंतर
बिखरे मोती प्रेम और मोह में अंतर प्रेम में मनुष्य तेरा ही तेरा कहता है अर्थात् त्याग और बलिदान की भावना प्रबल होती है जबकि मोह में मनुष्य मेरा ही मेरा कहता है अर्थात् स्वार्थ और संकीर्णता की भावना होती है इसलिए सर्वदा प्राणी मात्र से प्रेम करो पर मोह- पाश में मत फँसो I […]
बिखरे मोती द्वेष क्रोध का अचार है, पालै मत मन माहिं। जब तक घट में द्वेष है, भक्ति सफल हो नाहिं॥1916॥ वाणी से आदर करें, नयन बरसे नेंह । ऐसा हृदय होत है, पाक प्रेम का गेह॥1917॥ बैर गिरावै प्रेम बढ़ावै, खुलै हरि का द्वार I मत जीवै तू बैर में , बैर […]
बिखरे मोती : मानव – जीवन का उद्देश्य:-
शोकों से तरणा तुझे, प्रभु -मिलन की चाह । माया के फंसा भवॅर में, भूला अपनी रहा॥1899॥ शेर ख़ुदा जब किसी को बढ़ाना चाहता है , तो उसकी शख्सियत में नायब हुनर देता है । अपने तो क्या गैर भी तारीफ करते है, ज़माना नाज़ करता है॥1900॥ पद की शोभा शख्सियत, हाथ की शोभा दान […]
पक्षी बैठे वृक्ष पर, एक देखे एक खाय । जैसा जिसका कर्म है, वैसे ही फल पायं ॥1888 ॥ फूलों में है सुगन्ध तू , तारों में प्रकाश । हृदय में धड़कन तूही, प्रमाणित करता सांस॥1889॥ लालच जड़ है पाप की , क्रोध है वन की आग । काम खाय सौन्दर्य को , अहंकार है […]
जब रजोगुण सतोगुण पर शासन करने लगे:-
बिखरे मोती जब रजोगुण सतोगुण पर शासन करने लगे:- रज हावी हो सत्त्व पर , धर्म शिक्षिल हो जाय। मन की शांति भंग हो, बार-बार पछताय॥1872॥ आत्मा की जो ऊर्जा, ग़र हरि से जुड़ जाय। भव -बन्धन सारे कटें, और मुक्ति मिल जाय॥1873॥ विशेष:- भगवान कृष्ण ने गीता के 12 अध्याय के दूसरे श्लोक में […]
मैं हँसु मैया हँसे, मैं रोऊँ माँ रोय। ज़रा कराहुँ दर्द में, रात-रात ना सोय॥1837॥ मैया जीवित है यदि, बूढ़ा भी बच्चा होय। माँ की ताड़ना प्यार है, बेशक गुस्सा होय॥1838॥ माँ के आशीर्वाद से, पूरे हों सब काज। बाल शिवा से बन गए, छत्रपति महाराज॥1839॥ माँ के आंचल में छिपी, षट – सम्पत्ति की […]
माँ की महिमा :- माँ के चरणों में झुके, जितना नर का माथ। उतना ही ऊँचा उठे, ईश्वर पकड़े हाथ॥1821॥ जन्नत माँ की गोद है, जीते जी मिल जाय। माँ का नहीं मुकाबला, सब बौने पड़ जाएं॥1822॥ माँ का दिल ममता भरा, वात्सल्य का कोष। कोमल है नवनीत सा, स्वर्ग सी है आगोश॥1823॥ माँ होती […]