यह शरीर माटी का पुतला नही अपितु दिव्य-लोक का साधन है। इसमें छिपी प्रभु- प्रदत्त शक्तियों को पहचानो: – दिव्य- रथ है तन तेरा, धैर्य-शौर्य चक्र। आत्मज्ञान प्रदीप्त कर, काहे चले तू वक्र॥2732॥ भावार्थ : – प्रायः देखा गया है, कि इस संसार में कतिपय लोग इस मानव शरीर को ‘माटी का पुतला’ कहते है। […]
लेखक: विजेंदर सिंह आर्य
बिखरे मोती वे कौन सी तीन अवस्थाएं हैं ? जिनमें आत्मा अपने निजी स्वरूप में अवस्थित होती हैं अथवा जिनकी रसानुभूति अलौकिक और अपरिमित है: – सुषुप्ति समाधि मोक्ष में, आत्मा हो तद् रूप। ब्रह्म-शक्ति से युक्त हो, पावै निजी स्वरूप॥2730॥ भावार्थ:- मनुष्य जब गहरी नींद में होता है,योगी जब गहन समाधि में होता है […]
स्वर्ग का प्रवेश-द्वार किन के लिए खुला है :- दैवी-सम्पद साथ जा, लौकिक यहीं रह जाय। भजन – भलाई रोज कर, तभी स्वर्ग को पाय॥2726॥ पूर्व-जन्म के तप को कौन नष्ट करता है :- अहंकार के कारणै, पिछला तप घट जाय। धन-यश भी घटने लगै, होंसला टूटता जाय॥2727॥ पूर्व-जन्म का तप पुनः प्रभावी कब होता […]
‘ विशेष ‘ कहाँ छिपे हैं, दैवी -सम्पदा के अक्षय भण्डार ? वाह्य-सम्पदा के लिए, श्रम करता दिन-रात । दैवी-सम्पदा चित्त में, ईश्वर को सौगात॥2725॥ भावार्थ:- है मनुष्य! तू सांसारिक सम्पत्ति अर्जित करने के लिए दिन-रात पसीना बहाता है, भागीरथ तप करता है। अन्ततोगत्त्वा एक दिन इसे छोड़ कर चला जाता है। इसके अतिरिक्त तझे […]
आओ, बादल से भी कुछ सीखें : – सज्जन की पहचान है, कड़वाहट पी जाय। खारा जल मीठा करे , जब अम्बुद बन जाय॥ अम्बुद – अर्थात, बादल॥2723॥ तत्त्वार्थ – भाव यह है कि समुद्र का जल खारा होता है किन्तु सूर्य की तेज रश्मियाँ जब उसे वाष्प में परणित करती हैं, तो वह ऊपर […]
बिखरे मोती धरती देती धैर्य , नभ देता विस्तार। प्राणित करती है पवन, अग्नि दोष पखार॥2721॥ तत्त्वार्थ :-भाव यह कि मनुष्य को केवल तत्त्व ही आगे बढ़ने अथवा ऊंचा उठने के लिए प्रेरित नहीं करते हैं अपितु जड़ पदार्थ भी उसे मूक भाषा में प्रेरणा देते हैं , जैसे धरती से धैर्य सीखना चाहिए। आकाश […]
‘विशेष ‘ -भाव जब अश्रु बनते हैं:- हृदय को संवेदना, जब बनती हैं भाव। नयनों में अश्रु बनें , मिट जाता दुर्भाव॥2719॥ भाव कर्म की आत्मा है, कैसे ? कर्म की आत्मा भाव , इसके बहु आयाम। हाथ उठे प्रहार को, कभी करे प्रणाम॥2720॥ तत्त्वार्थ :- इस संसार में प्राय यह देखा जाता है मन, […]
‘ विशेष ‘ निर्मल और अधम हृदय की पहचान :- निर्मल हृदय में उगें , प्रभु-प्रेरित सद्भाव। अधम हृदय में जन्मते, कल्मष कुटिल दुराव॥2718॥ तत्त्वार्थ- भाव यह है कि जनका हृदय निर्मल होता है। वे प्रभु-कृपा के पात्र होते है। प्रभु प्रेरणा से उनके हृदय में हमेशा ऐसी उर्मियाँ उठती हैं,जो उन्हें सत् चर्चा सत्कर्म […]
भक्ति की धारा बहे, चाव-भाव के बीच। ध्यान लगा हरि-ओ३म् -से, आँखों को ले मींच ॥2715॥ प्रत्येक जीवात्मा के साथ जिनका अनन्य सम्बन्ध है- मन ज्ञानेन्द्री जीव , ऐसे है सम्बन्ध । जैसे वायु के संग में, बहती रहती गन्द॥2716॥ तत्त्वार्थ:– भाव यह है कि परम पिता परमात्मा प्रत्येक जीवात्मा को मन अथवा चित्त श्रोत्र, […]
‘विशेष शेर’ सर्वदा शब्द सम्भालकर बोलिए :- जीभ में ज़ख्म हो, तो कुछ वक्त में भर जाता है। मगर जीभ से दिया ज़ख्म, ताउम्र नहीं भरता॥2713॥ जो कहते कुछ हैं और करते कुछ है उनके संदर्भ में:- देखा नज़दीक से लोगों को , तो होश उड़ गए । हक़ीक़त जानकर, हम खामोश हो गए॥2714॥ क्या […]