प्रो. लल्लन प्रसाद कहा जाता है कि प्रजातंत्र में जैसे लोग होते हैं, वैसा ही उन्हें राजा मिलता है। परंतु यह बात आंशिक रूप से ही सही है। भारतीय राजनीतिशास्त्रकारों के अनुसार चाहे राजतंत्र हो या प्रजातंत्र, जैसा राजा होता है, वैसी ही प्रजा होती है। यही कारण है कि सभी भारतीय राजनीतिशास्त्री इस बात […]
Author: उगता भारत ब्यूरो
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महिलाओं की स्वतंत्रता , उचित या अनुचित
बजरंग मुनि (लेखक राजनीतिक चिंतक हैं।) समाज में शराफत और धूर्तता के बीच हमेशा ही टकराव रहा है। शरीफ लोगो की औसत संख्या अट्ठानवें प्रतिशत और अपराधी धूर्तो की दो प्रतिषत के आस पास होती है। ये दो प्रतिशत लोग स्वयं को सुरक्षित बनाये रखने के लिए वर्ग निर्माण का सहारा करते है। यह वर्ग […]
प्रो. कुसुमलता केडिया (लेखिका धर्मपाल शोधपीठ, भोपाल की निदेशक हैं।) यह आज हमें पता है कि भारत का वर्तमान स्वरूप 15 अगस्त 1947 की देन है। आज अखंड भारत की कल्पना में हम केवल पाकिस्तान और बांग्लादेश को जोड़ते हैं। परंतु हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि बर्मा, श्रीलंका, अफगानिस्तान आदि भी भारत के ही […]
दो महान देशभक्तों की कहानी और दो बडे़ गद्दारों की भी। जनता को नहीं पता है कि भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने वाले वे दो व्यक्ति कौन थे, जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में, असेंबली में बम फेंकने का मुकद्दमा चला तो… 👉 भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त […]
किसान की बदहाली का जिम्मेदार कौन ?
प्रो. कुसुमलता केडिया (लेखिका प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं।) भारत की हजारों वर्षों की जिस संपन्नता की बात की जाती है, वह मुख्यतया किसानों, शिल्पियों और व्यापारियों पर टिकी थी। राजकोष में आने वाले धन का सबसे बड़ा हिस्सा किसानों से प्राप्त होता था। मनुस्मृति, विष्णु धर्मसूत्र, गौतम धर्मसूत्र आदि में स्पष्ट व्यवस्था है कि सामान्यतया राज्य, […]
रामेश्वर प्रसाद मिश्र (लेखक गांधी विद्या संस्था, बनारस के निदेशक हैं।) यदि हम विश्व के सभी समाजों का अध्ययन करें तो पाएंगे कि हिंदू समाज दुनिया का सबसे अधिक समरस, संगठित और सभ्य समाज है। परंतु दुर्भाग्यवश आज इसे सर्वाधिक भेदभावपूर्ण, बिखरा हुआ और संकीर्ण समाज के रूप में चित्रित किया जाता है। ये करने […]
दलित की परिभाषा
डॉ. विवेक भटनागर कहा जाता है कि पुष्यमित्र शुंग के काल में ब्राह्मण और दलित जैसा विभाजन था, जबकि यह विभाजन मुसलमानों और अंग्रेजों की देन है। उन्होंने अपने समय में जो हमारी पुस्तकों से खिलवाड़ किया और हमारे समाज की वर्ण व्यवस्था को समझ नहीं सके। मुसलमानों को शेख सैयद, मुगल व पठान जैसे […]
डॉ. आनन्द वर्धन (लेखक म्यूजियम एसोशिएशन ऑफ इंडिया के सचिव हैं।) दुनिया की सभी सभ्यताओं और संस्कृतियों में धार्मिक प्रतीकों का व्यापक प्रयोग किया गया है। परंतु हमारे मंदिर केवल प्रतीक होने तक सीमित नहीं हैं। यदि हम वेदों की ऋषि-प्रज्ञा को मंदिर स्थापत्य की परंपरा से जोड़कर देखें तो उसमें उस समस्त वैज्ञानिकता का […]
15 सितम्बर/जन्म-दिवस इतिहास और पुरातत्व के शीर्षस्थ विद्वान डा. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा की गिनती प्रमुख इतिहासकारों में होती है। जिन दिनों सब ओर भारतीय इतिहास को अंग्रेजी चश्मे से ही देखने का प्रचलन था, उन दिनों उन्होंने अपने शोध के बल पर राजस्थान का सही इतिहास विश्व के सम्मुख प्रस्तुत किया। गौरीशंकर जी का जन्म […]
15 सितम्बर/जन्म-दिवस आधुनिक भारत के विश्वकर्मा श्री मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितम्बर, 1861 को कर्नाटक के मैसूर जिले में मुदेनाहल्ली ग्राम में पण्डित श्रीनिवास शास्त्री के घर हुआ था। निर्धनता के कारण विश्वेश्वरैया ने घर पर रहकर ही अपने परिश्रम से प्राथमिक स्तर की पढ़ाई की। जब ये 15 वर्ष के थे, तब इनके […]