डॉ.राधे श्याम द्विवेदी सोसल मीडिया में एक खबर कहीं से आ गई कि जीवित व्यक्ति की जयंती नहीं मनाई जाती है,नश्वर व्यक्ति की जयंती मनाई जाती है। यह कथन बिल्कुल सत्य नहीं है। आइए ” जयन्ती” शब्द के बारे में कुछ विचार विमर्श कर लें। केवल सही विश्लेषण को आगे बढ़ाएं। भ्रांतियां और गलत संदेश […]
Author: उगता भारत ब्यूरो
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निरंकारी मिशन का सच-* भाग 1
भाग 1 डॉ डी के गर्ग निवेदन:कृपया लेख पूरा पढ़े,अपने विचार बताए और अन्य ग्रुप में फॉरवर्ड करे। प्रश्न : निरंकारी मिशन क्या हिन्दू धर्म का एक हिस्सा है ? २ निरंकारी मिशन क्या एक परिवार की धरोहर है ? ३ निरंकारी मिशन वास्तव में है क्या ? निरंकारी मिशन का इतिहास : १९वीं शताब्दी […]
वेदो के अनुसार मनुष्य को प्रतिदिन अपने जीवन में पाँच महायज्ञ जरूर करने चाहिए।* (1) ब्रह्मयज्ञ :- ब्रह्म यज्ञ संध्या ,उपासना को कहते है। प्रात: सूर्योदय से पूर्व तथा सायं सूर्यास्त के बाद जब आकाश में लालिमा होती है, तब एकांत स्थान में बैठ कर ओम् वा गायत्री आदि वेद मंत्रों से ईश्वर की महिमा […]
कौन सुनेगा श्रमिक महिलाओं का दर्द?
वंदना कुमारी मुजफ्फरपुर, बिहार भारत की अर्थव्यवस्था का मेरुदंड खेती-किसानी और मजदूरी है. यदि खेती नहीं हो, तो आदमी खाएगा क्या? आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021-22 के मुताबिक कृषि में सकल घरेलू उत्पाद की हिस्सेदारी 20.2 फीसदी है. भारत की तकरीबन आधी जनसंख्या रोजगार के लिए खेती बाड़ी पर ही निर्भर है. कृषि द्वितीयक उद्योगों के […]
देवेन्द्रराज सुथार जालौर, राजस्थान मातृभाषा किसी भी देश या क्षेत्र की संस्कृति और अस्मिता की संवाहक होती है. इसके बिना मौलिक चिंतन संभव नहीं है. नई शिक्षा नीति में कक्षा 5 तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में रखने की बात कही गई है, लेकिन राजस्थान के लोग मातृभाषा में शिक्षा पाने […]
🙏 6 अप्रैल बलिदान दिवस पर प्रकाशित #डॉविवेकआर्य 🚩सन १९२३ में मुसलमानों की ओर से दो पुस्तकें “#१९वींसदीकामहर्षि” और “#कृष्णतेरीगीताजलानीपड़ेगी ” प्रकाशित हुई थी। 🚩पहली पुस्तक में आर्यसमाज का संस्थापक #स्वामीदयानंद का सत्यार्थ प्रकाश के १४ सम्मुलास में कुरान की समीक्षा से खीज कर उनके विरुद्ध आपत्तिजनक एवं घिनौना चित्रण प्रकाशित किया था जबकि दूसरी […]
कम्युनिस्ट न देश के थे, न होंगे मार्क्सवाद के प्रणेता कार्ल माक्र्स की समग्र रचनाओं में “राष्ट्र” नामक इकाई के लिए कोई स्थान नहीं है। मार्क्सवादी तो केवल सर्वहारा को जानता है, जिसे मार्क्स ने “प्रोलेतेरियत” कहकर पुकारा है और जो उसके अनुसार भौतिक द्वंद्ववाद के आधार पर हो रहे ऐतिहासिक विकास-क्रम में पूंजीवाद की […]
गुरु बिन मुक्ति नाही* भाग 5
डॉ डी के गर्ग कबीर ने कहा है जाका गुरु भी अंधला, चेला खरा निरंध अँधा-अँधा ठेलिया, दून्यू कूप पड़ंत 1जीवन में दुःख का कारण मनुष्य के स्वयं के कर्म हैं। जो जैसा करेगा वो वैसा भरेगा के वैदिक सिद्धांत की अनदेखी कर मनुष्य न तो अपने कर्मों को श्रेष्ठ बनाने का प्रयत्न करना चाहता […]
हरीश कुमार पुंछ, जम्मू कहते हैं कि स्वास्थ्य ही जीवन है. वास्तव में प्रथम सुख ही निरोगी काया को कहा गया है. किंतु आज की व्यस्त एवं तनावग्रस्त जिंदगी में मानव अपने स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान नहीं दे पा रहा है. काम, व्यस्तता और तनाव के कारण ही इंसान के स्वास्थ्य पर लगातार प्रतिकूल प्रभाव […]
नहीं बदली है माहवारी से जुड़ी अवधारणाएं
नैना सुहानी मुजफ्फरपुर, बिहार मासिक धर्म एक ऐसा विषय है जिस से ग्रामीण इलाकों में अनगिनत अंधविश्वास और पुरानी सोच जुड़ी हुई है. सामाजिक प्रतिबंध के कारण यहां ऐसे विषयों पर बात करना भी पाप माना जाता है. जिस वहज से महिलाएं सही जानकारी के अभाव में बीमारियों का शिकार हो जाती हैं और उन्हें […]