हमें अपने श्वास पर एकाग्र क्यों होना चाहिए? वायु के क्या गुण और शक्तियाँ हैं? श्वास पर पूरा नियंत्रण किस प्रकार सबके लिए लाभदायक है? घृृषुं पावकं वनिनं विचर्षणिं रुद्रस्य सूनुं हवसा गृणीमसि। रजस्तुरं तवसं मारुतं गणमृजीषिणं वृषणं सश्चत श्रिये।। ऋग्वेद मन्त्र 1.64.12 (कुल मन्त्र 744) (घृृषुम्) शत्रुओं का नाशक (पावकम्) पवित्र करने वाला (वनिनम्) […]
Author: उगता भारत ब्यूरो
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ईश्वर के अजन्मा होने के प्रमाण १. न जन्म लेने वाला (अजन्मा) परमेश्वर न टूटने वाले विचारों से पृथ्वी को धारण करता है। ऋग्वेद १/६७/३ २. एकपात अजन्मा परमेश्वर हमारे लिए कल्याणकारी होवे। ऋग्वेद ७/३५/१३ ३. अपने स्वरुप से उत्पन्न न होने वाला अजन्मा परमेश्वर गर्भस्थ जीवात्मा और सब के ह्रदय में विचरता है। यजुर्वेद […]
ईश्वरप्रणिधानाद्वा- योगदर्शन- 1.23 ईश्वर के प्रति दृढ़ विश्वास, प्रेम व समर्पण से समाधि शीघ्र लग जाती है। इसके लिए शब्द प्रमाण, अनुमान प्रमाण और ईश्वर द्वारा किए जा रहे बेजोड़ उपकारों का चिन्तन करते रहना आवश्यक है। तप:स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोग: (योगदर्शन 2.1) तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान क्रिया योग है। ध्यानं निर्विषयं मन: (सांख्य दर्शन- 6.25) […]
(ऋषि निर्वाण दिवस) पावन पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ! एवं क) संक्षिप्त जीवन-परिचय स्वामी दयानन्द सरस्वती का जन्म- नाम मूलशंकर था। उनका जन्म 12 फरवरी 1824 में टंकारा ( काठियावड़, मौरवी राज्य– गुजरात) में हुआ। उनके पिता श्रीकर्षणजी तिवाड़ी, शिवभक्त औदीच्य ब्राह्मण थे। सन् 1834 में मूलशंकर ने पिता के आदेश पर, शिवरात्रि का […]
(डॉ. रामसिया सिंह पटेल- विनायक फीचर्स) सरदार वल्लभ भाई पटेल कुशल राजनीतिज्ञ तो थे ही, उनमें अद्भुत प्रशासनिक पटुता भी थी। जुलाई 1947 से भारत की अन्तरिम सरकार मेें वे देशी राज्यों के मंत्री के रूप में कार्यरत रहे। स्वतंत्र भारत में सरदार पटेल ने भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री के रूप में अपनी सेवाएं […]
आप किस प्रकार के सुपुत्रों और सुपौत्रों की आशा करते हो? श्रेष्ठ पुत्र और सुपौत्र किस प्रकार प्राप्त करें? चर्कृृत्यं मरुतः पृृत्सु दुष्टरं द्युमन्तं शुष्मं मघवत्सु धत्तन। धनस्पृृतमुक्थ्यं विश्वचर्षणिं तोकं पुष्येम तनयं शतं हिमाः ।। ऋग्वेद मन्त्र 1.64.14 (कुल मन्त्र 746) (चर्कृृत्यम्) वीरता और साहस धारण करते हुए कार्यों को बनाये रखता है (मरुतः) प्राणों […]
ईश्वरप्रणिधानाद्वा- योगदर्शन- 1.23 ईश्वर के प्रति दृढ़ विश्वास, प्रेम व समर्पण से समाधि शीघ्र लग जाती है। इसके लिए शब्द प्रमाण, अनुमान प्रमाण और ईश्वर द्वारा किए जा रहे बेजोड़ उपकारों का चिन्तन करते रहना आवश्यक है। तप:स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोग: (योगदर्शन 2.1) तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान क्रिया योग है। ध्यानं निर्विषयं मन: (सांख्य दर्शन- 6.25) […]
*”आजकल लोगों में सहनशक्ति बहुत कम हो गई है। इसीलिए छोटी-छोटी बात पर लोग आपस में झगड़ पड़ते हैं। यह अच्छा नहीं है।”* *”यदि आप अपने घर में परिवार में समाज में देश में सुख शांति से जीना चाहते हैं। तो इसके लिए एक दूसरे को समझना बहुत आवश्यक है।” “अपनी बात कहने में जल्दबाजी […]
“मैं बीए में पढ़ रही हूं. मैं पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं, लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि आगे भविष्य में क्या करना है? मैंने सुना है कि आज के युग में कंप्यूटर के ज्ञान के बिना भविष्य नहीं है. नौकरी मिलना संभव नहीं है. लेकिन मेरे पास इसे सीखने की कोई […]
प्र०- देवता किसे कहते है? उ०-देवो दानाद्वा, दीपनाद्वा द्योतनाद्वा , द्युस्थानो भवतीति वा । दान देने वाले देव कहाते हैं दीपन अर्थात विद्या रुपी प्रकाश करने वाले देव कहाते हैं । द्योतन अर्थात सत्योपदेश करने वाले देव कहाते हैं ।विद्वान भी विद्या आदि का दान करने से देव कहाते हैं विद्वानसो ही देवा । सब […]