लोग संसार में कहने को तो अपना अपना जीवन जी रहे हैं, परंतु वास्तव में उन्हें जीवन जीना आता नहीं है। “केवल सांस लेने का नाम जीवन जीना नहीं है।” तो फिर? जीवन जीने का अर्थ है, “आप स्वयं भी सुख से जिएं, और दूसरों को भी सुख से जीने दें।” यह एक बहुत बड़ी […]
Author: प्रवीण गुगनानी
विदेश मंत्रालय, भारत सरकार में सलाहकार (राजभाषा)
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“वासुदेव सुतं देवम कंस चाणूर मर्दनम्, देवकी परमानन्दं कृष्णम वन्दे जगतगुरु” श्रीकृष्ण को विश्व का श्रेष्ठतम गुरु क्यों कहा जाता है? शिष्य अर्जुन की खोज के कारण? अर्जुन को कुरुक्षेत्र में ईश्वर का विराट रूप दिखा देने के कारण? महाभारत के रणक्षेत्र में श्रीमद्भागवद्गीता रच देने के कारण? या कथनी और करनी में भेद न […]
जनजातीय मुद्दों पर प्रतिदिन अपने स्वार्थ की रोटियां सेंकने वाले विभिन्न संगठन व राजनैतिक दल डिलिस्टिंग जैसे संवेदनशील मुद्दे पर चुप क्यों हैं? स्पष्ट है कि वे कथित धर्मान्तरित होकर जनजातीय समाज के साथ छलावा और धोखा देनें वाले लोगों के साथ खड़े हैं. ये कथित दल, संगठन और एनजीओ भोले भाले वनवासी जनजातीय समाज […]
समर्थ रामदास जयंती रामनवमी पर विशेष – हमारे सनातनी संत केवल संत होकर तपस्या, धार्मिक अनुष्ठान, पूजा पाठ व मोक्षप्राप्ति के हेतु ही कार्य ही नहीं करते हैं अपितु समय समय पर देश समाज की राजनीति को राजदरबार (संसद) से लेकर, समाज के चौक चौबारों तक व युद्ध की भूमि में जाकर रणभेरी बजाने […]
प्रवीण गुगनानी डॉ. हेडगेवार जी की जयंती पर विशेष आ सिंधु-सिंधु पर्यन्ता, यस्य भारत भूमिका l पितृभू-पुण्यभू भुश्चेव सा वै हिंदू रीति स्मृता ll इस श्लोक के अनुसार “भारत के वह सभी लोग हिंदू हैं जो इस देश को पितृभूमि-पुण्यभूमि मानते हैं” वीर दामोदर सावरकर के इस दर्शन को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का मूलाधार […]
— भारतीय समाज में आजकल धर्मांतरण और हिन्दू धर्म में घर वापसी एक बड़ा विषय चर्चित और उल्लेखनीय हो चला है. यह विषय राजनैतिक कारणों से चर्चित भले ही अब हो रहा हो, किन्तु सामाजिक स्तर पर धर्मांतरण हिन्दुस्थान में सदियों से एक चिंतनीय विषय रहा है. इस देश में धर्मांतरण की चर्चा और चिंता […]
प्रवीण गुगनानी उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी, भीख निदान, वाली कहावत वाले हमारे देश में कृषि और कृषक दोनों ही पिछले ७ दशकों से अपनाई जा रही गलत नीतियों का शिकार हो चुकें हैं। ऋषि पराशर व अन्य कई प्राचीन कृषि वैज्ञानिकों वाले हमारे देश में, घाघ व भड्डरी की विज्ञानसम्मत कृषि कहावतों व […]
प्रवीण गुगनानी कबीर तहां न जाइए, जहाँ सिद्ध को गाँव स्वामी कहे न बैठना, फिर फिर पूछे नांव इष्ट मिले अरु मन मिले मिले सकल रस रीति कहैं कबीर तहां जाइए, जंह संतान की प्रीति बाबासाहेब अम्बेडकर के कांग्रेस से जुड़ाव को कबीर के इन दोहों के माध्यम से पुर्णतः प्रकट किया जा सकता है। […]
कबीर तहां न जाइए, जहाँ सिद्ध को गाँव स्वामी कहे न बैठना, फिर फिर पूछे नांव इष्ट मिले अरु मन मिले मिले सकल रस रीति कहैं कबीर तहां जाइए, जंह संतान की प्रीति बाबासाहेब अम्बेडकर के कांग्रेस से जुड़ाव को कबीर के इन दोहों के माध्यम से पुर्णतः प्रकट किया जा सकता है. बाबा […]
आज जब देश के प्रधानमंत्री श्रीयुत नरेंद्र मोदी देश में भगवान् बिरसा मुंडा के जन्मदिन 15 नवंबर को राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की परंपरा का शुभारंभ कर रहे हैं तब स्वाभाविक ही विदेशी परंपरा व विघ्नसंतोषियों के “मूलनिवासी दिवस” का विचार हृदय में आता है। भारत में मूलनिवासी दिवस या इंडिजिनस […]