23 दिसंबर: राष्ट्रीय किसान दिवस पर विशेष प्रवीण गुगनानी देश में मोटे अनाजों की कृषि, उत्पादन व उपभोग को पर केंद्रित इस लेख के पूर्व यह कविता पढ़िए – यह रागी हुई अभागी क्यों? चावल की किस्मत जागी क्यों? जो ‘ज्वार’ जमी जन-मानस में, गेहूँ के डर से यह भागी क्यों? यूँ होता श्वेत ‘झंगोरा’ […]
लेखक: प्रवीण गुगनानी
राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।। विधि शारदा सहित दिनराती। गावत कपि के गुन बहु भाँति।। प्रभु श्रीराम के कृतित्व हेतु हनुमान जी का जो महत्त्व था वही महत्त्व स्वामी विवेकानंद के कृतित्व को प्रस्तुत करने हेतु एकनाथ जी रानाडे का रहा है. यद्दपि भगवान् श्रीराम व राम भक्त हनुमान जी समकालिक रहे […]
स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव अर्थात 75 वीं गौरवशाली वर्षगाँठ पर स्वाभाविक ही है हम जनजातीय समाज का भी स्मरण करें। जनजातीय समाज का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपना व्यापक, विस्तृत व विशाल योगदान रहा है। विदेशी आक्रान्ताओं के विरुद्ध वर्ष 812 से लेकर 1947 तक भारत की अस्मिता के रक्षण हेतु इस समाज के हजारों […]
मध्यप्रदेश: भारत का सांस्कृतिक तिलक मध्यप्रदेश वस्तूतः केवल भौगोलिक ह्रदयस्थली नही बल्कि भारत का मानसस्थल है। यहीं से संपूर्ण भारत में जागरण, चैतन्यता व सांस्कृतिक तेज का भाव संचारित होता है। यह प्रदेश एक तरफ़ से उत्तरप्रदेश, दूसरी तरफ़ से झारखण्ड, तीसरी तरफ़ से महाराष्ट्र, चौथी तरफ़ से राजस्थान, पाँचवी तरफ़ से गुजरात और छठवीं […]
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रतिवर्ष दशहरे पर नागपुर मुख्यालय में आयोजित होने वाला प्रबोधन उत्सव संपन्न हुआ. संघ के परमपूजनीय सरसंघचालक मोहनराव जी भागवत ने अपने उद्बोधन में कहा कि किसी भी देश में जनसंख्या असंतुलन उस देश के विभाजन का कारण बन सकता है. ऊन्होने कहा- हमें समझना होगा कि जब-जब जनसांख्यिकीय असंतुलन होता […]
गाजियाबाद। ( प्रवीण गुगनानी ) भीम मीम की राजनीति का षड़यंत्र भारत में शताधिक वर्षों से किया जा रहा है। जोगेंद्रनाथ मंडल, इस कुत्सित राजनीति का एक पठनीय व स्मरणीय अध्याय है, दलित बंधुओं को अवश्य पढ़ना चाहिए। आज भी दलितों पर सर्वाधिक अत्याचार मुस्लिमों द्वारा किए जाते हैं। ये अत्याचार केवल सामाजिक प्रकार के […]
स्वामी विवेकानंद जी ने भारत को व भारतत्व को कितना आत्मसात् कर लिया था, यह कविवर रविन्द्रनाथ टैगोर के इस कथन से समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि – यदि आप भारत को समझना चाहते हैं तो एक व्यक्ति को पूरा पढ़ लीजिये, और वो व्यक्ति हैं स्वामी विवेकानंद। नोबेल से सम्मानित […]
मूलनिवासी दिवस या इंडिजिनस पीपल डे एक भारत मे एक नया षड्यंत्र है। सबसे बड़ी बात यह कि इस षड्यंत्र को जिस जनजातीय समाज के विरुद्ध किया जा रहा है, उसी जनजातीय समाज के कांधो पर इसकी शोभायमान पालकी भी चतुराई पूर्वक निकाली जा रही है। वस्तुतः प्रतिवर्ष इस दिन यूरोपियन्स और पोप को आठ […]
भीम मीम की राजनीति का षड़यंत्र भारत में शताधिक वर्षों से किया जा रहा है। जोगेंद्रनाथ मंडल, इस कुत्सित राजनीति का एक पठनीय व स्मरणीय अध्याय है, दलित बंधुओं को अवश्य पढ़ना चाहिए। आज भी दलितों पर सर्वाधिक अत्याचार मुस्लिमों द्वारा किए जाते हैं। ये अत्याचार केवल सामाजिक प्रकार के नहीं होते बल्कि वे आपराधिक […]
लोग संसार में कहने को तो अपना अपना जीवन जी रहे हैं, परंतु वास्तव में उन्हें जीवन जीना आता नहीं है। “केवल सांस लेने का नाम जीवन जीना नहीं है।” तो फिर? जीवन जीने का अर्थ है, “आप स्वयं भी सुख से जिएं, और दूसरों को भी सुख से जीने दें।” यह एक बहुत बड़ी […]