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शिक्षा/रोजगार

स्कूली शिक्षा विद्यार्थियों में नैतिक गुणों का विकास करने में अक्षम है

ओ३म् ============= किसी भी देश की उन्नति, सुरक्षा व सामर्थ्य उसकी युवा पीढ़ी के नैतिक व चारित्रिक गुणों पर निर्भर करती है। बच्चों व युवाओं में यह गुण अपने प्रारब्ध, अपने माता-पिता तथा परिवेश सहित अपने आचार्यों व विद्यालयों की शिक्षा से आते हैं। देश की आजादी के बाद धर्मनिरेक्षता और प्रधानमंत्री का एक विचारधारा […]

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समाज

संसार का ईश्वर के एक सत्य स्वरूप पर सहमत न होना कल्याणकारी नहीं

ओ३म्=========== हमारा यह संसार एक अपौरुषेय सत्ता द्वारा बनाया गया है। वही सत्ता इस संसार को बनाती है व चलाती भी है। संसार को बनाकर उसने ही अपनी योजना के अनुसार अनादि, अविनाशी, नित्य व जन्म-मरण धर्मा जीवात्माओं को इस संसार में भिन्न-भिन्न प्राणी योनियों में जन्म दिया है। जीवात्माओं का जन्म उनके पूर्वजन्मों के […]

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धर्म-अध्यात्म

आत्मा की उन्नति के बिना सामाजिक और देशोन्नती संभव नहीं

मनुष्य मननशील प्राणी को कहते हैं। मनन का अर्थ सत्यासत्य का विचार करना होता है। सत्यासत्य के विचार करने की सामथ्र्य मनुष्य को विद्या व ज्ञान की प्राप्ति से होती है। विद्या व ज्ञान प्राप्ति के लिये बाल्यावस्था में किसी आचार्य से किसी पाठशाला, गुरुकुल या विद्यालय में अध्ययन करना होता है। विद्या प्राप्ति के […]

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धर्म-अध्यात्म

संसार की सभी अपौरुषेय रचनाएं ईश्वर के अस्तित्व का प्रमाण

अधिकांश मनुष्यों को यह नहीं पता कि संसार में ईश्वर है या नहीं? जो ईश्वर को मानते हैं वह भी ईश्वर के पक्ष में कोई ठोस प्रमाण प्रायः नहीं दे पाते। ऋषि दयानन्द ने अपने समय में ईश्वर की उपस्थिति व अस्तित्व के विषय में विचार कर स्वयं ही ईश्वर के होने के प्रमाण अपने […]

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हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

दयानंद वेद योग और ब्रह्मचर्य की शक्तियों से देदीप्यमान थे

ओ३म् ============ ऋषि दयानन्द संसार के सभी मनुष्यों व महापुरुषों से अलग थे। उनका जीवन वेदज्ञान, योग सिद्धि तथा ब्रह्मचर्य की शक्तियों से देदीप्यमान था। महाभारत के बाद इन सभी गुणों का विश्व के किसी एक महापुरुष में होना विदित नहीं होता। इन गुणों ने ही उन्हें विश्व का महान महापुरुष बनाया। वेदज्ञान ने उन्हें […]

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धर्म-अध्यात्म व्यक्तित्व

ऋषि दयानंद ने सच्चे धर्म के बारे में मानवता को कराया था परिचय

महर्षि दयानन्द (1825-1883) ने देश में वैदिक धर्म के सत्यस्वरूप को प्रस्तुत कर उसका प्रचार किया था। उनके समय में धर्म का सत्यस्वरूप विस्मृत हो गया था। न कोई धर्म को जानता था न अधर्म को। धर्म पालन से लाभ तथा अधर्म से होने वाली हानियों का भी मनुष्यों को ज्ञान नहीं था। ईश्वर का […]

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गौ और गोवंश

देश की सुख समृद्धि एवं सुरक्षा के लिए गोवध पर पूर्ण प्रतिबंध अनिवार्य है

ओ३म् ============= मनुष्य तथा पशु-पक्षी आदि सभी प्राणियों की उत्पत्ति अपने पूर्वजन्मों के कर्मों का सुख व दुःख रूपी फल भोगने के लिये हुई है। मनुष्य योनि उभय योनि है जिसमें मनुष्य पूर्वजन्मों के कर्मों का फल भोगता है तथा नये कर्मों को भी करता है। यह नये कर्म मनुष्य के बन्धन व मोक्ष का […]

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धर्म-अध्यात्म

उपयोग की सभी वस्तुओं का स्वदेश में ही उत्पादन देशोन्नति तथा आत्मनिर्भरता का मूल है

भारत विश्व का सबसे प्राचीन राष्ट्र है। भारत ने ही सृष्टि के आरम्भ से विश्व के लोगों को भाषा एवं ज्ञान दिया है। विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थों में प्रमुख मनुस्मृति के अनुसार भारत वा आर्यावर्त देश ही विश्व में विद्वान, चरित्रवान व गुणी लोगों को उत्पन्न करने वाला देश है। यहां के ऋषि, मुनि, विद्वान […]

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वैदिक संपत्ति

धार्मिक एवं सामाजिक साहित्य में सत्यार्थ प्रकाश का अग्रणीय स्थान है

ओ३म् =========== संसार में धर्म व नैतिकता विषयक अनेक ग्रन्थ हैं जिनका अपना-अपना महत्व है। इन सब ग्रन्थों की रचना व परम्परा का आरम्भ सृष्टि के आदिकाल में ही ईश्वर प्रदत्त वेदों का ज्ञान देने के बाद से हो गया था। सृष्टि को बने हुए 1.96 अरब वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। इस अवधि में […]

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भारतीय संस्कृति

तामसिक भोजन एवं मांसाहार करने वाला मनुष्य ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता

ओ३म् =========== हम और हमारा यह संसार परमात्मा के बनाये हुए हैं। संसार में जितने भी प्राणी हैं वह सब भी परमेश्वर ने ही बनाये हैं। परमेश्वर ने सब प्राणियों को उनके पूर्वजन्मों के कर्मों का सुख व दुःख रूपी फल भोगने के लिये बनाया है। परमात्मा ने मनुष्यों के शरीर की जो रचना की […]

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