ओ३म् ========= संसार में मत-मतान्तर तो अनेक हैं परन्तु धर्म एक ही है। वेद ही एकमात्र सर्वाधिक व पूर्ण मानवतावादी धर्म है। वेद में निर्दोष प्राणियों, मनुष्य व पशु-पक्षी आदि किसी के प्रति भी, हिंसा करने का कहीं उल्लेख नहीं है। वेद की विचारधारा मांसाहार को सबसे बुरा मानती है। वेद मनुष्य को सभी प्राणियों […]
Author: मनमोहन कुमार आर्य
ओ३म् ============= वर्तमान समय में मनुष्य का उद्देश्य धन सम्पत्ति का अर्जन व उससे सुख व सुविधाओं का भोग बन गया है। इसी कारण से संसार में सर्वत्र पाप, भ्रष्टाचार, अन्याय, शोषण, अभाव, भूख, अकाल मृत्यु आदि देखने को मिलती हैं। इसके अतिरिक्त अविद्यायुक्त मत-मतान्तर अपने प्रसार की योजनायें बनाकर भारत जैसे देश की सत्ता […]
ओ३म् =========== धर्म के विषय में तरह तरह की बातें की जाती हैं परन्तु धर्म सत्याचरण वा सत्य कर्तव्यों के धारण व पालन का नाम है। यह विचार व सिद्धान्त हमें वेदाध्ययन करने पर प्राप्त होते हैं। महाराज मनु ने कहा है कि धर्म की जिज्ञासा होने पर उनका वेदों से जो उत्तर व समाधान […]
ओ३म् =========== मनुष्य में भूलने की प्रवृत्ति व स्वभाव होता है। वह अपने जीवन में अनेक बातों को कुछ ही समय में भूल जाता है। हमने कल, परसों व उससे पहले किस दिन क्या क्या व कब कब भोजन किया, किस रंग व कौन से वस्त्र पहने थे, किससे कब कब मिले थे, कहां कहां […]
ओ३म् ============ ऋषि दयानन्द जी ने सत्यार्थप्रकाश के सप्तम समुल्लास के आरम्भ में ऋग्वेद के 4 और यजुर्वेद के एक मन्त्र को प्रस्तुत कर उनके अर्थों सहित ईश्वर के सत्यस्वरूप तथा गुण, कर्म व स्वभाव का प्रकाश किया है। इन मन्त्रों में तीसरा मन्त्र ऋग्वेद के दशवे मण्डल के सूक्त 48 का प्रथम मन्त्र है। […]
ओ३म् वर्तमान समय से लगभग 5,200 वर्ष पूर्व महाभारत का विनाशकारी युद्ध हुआ था। महाभारत काल तक वेद अपने सत्यस्वरूप में विद्यमान थे जिसके कारण संसार में विद्या व सत्य ज्ञान का प्रचार व प्रसार था। महाभारत के बाद वेदों के अध्ययन अध्यापन तथा प्रचार में बाधा उत्पन्न हुई जिसके कारण विद्या धीरे धीरे समाप्त […]
ओ३म् ========== ईश्वर एक सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान एवं सर्वज्ञ सत्ता है जबकि जीवात्मा एक एकदेशी, ससीम तथा अल्पज्ञ सत्ता है। अल्पज्ञ होने के कारण से जीवात्मा वा मनुष्य को अपने जीवन को सुखी बनाने एवं लक्ष्य प्राप्ति के लिये सद्ज्ञान एवं शारीरिक शक्तियों की आवश्यकता होती है। सत्यस्वरूप ईश्वर सर्वज्ञ है एवं वह पूर्ण ज्ञानी है। […]
ओ३म् ============ सभी मनुष्य सुख प्राप्ति की कामना करते हैं। इसके साथ ही जीवन में कभी दुःख प्राप्त न हों, इसके लिए भी सभी पुरुषार्थ कर धनसंचय आदि करते हैं। धनसंचय करने से मनुष्य सुखों के भौतिक साधनों को प्राप्त हो सकता है परन्तु अनेक ऐसे दुःख होते हैं जिनका निवारण धन से भी नहीं […]
गुरुकुल शिक्षा प्रणाली विश्व की सबसे प्राचीन शिक्षा प्रणाली है। महाभारत के समय तक इसी प्रणाली से लोग विद्याध्ययन करते थे। इसी शिक्षा पद्धति का अनुसरण कर हमें ऋषि, मुनि, योगी, धर्म प्रचारक, विद्वान, आचार्य, उच्च कोटि के ब्रह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूरवीर आदि मिला करते थे। महाभारत युद्ध के कुछ वर्षों बाद वैदिक धर्म का […]
ओ३म् वैदिक धर्म एवं संस्कृति में यज्ञ का प्रमुख स्थान है। यज्ञ किसी भी पवित्र व श्रेष्ठ कार्य करने को कहा जाता है। मनुष्य जो शुभ कर्म करता है वह सब भी यज्ञीय कार्य होते हैं। माता पिता व आचार्यों सहित अपने परिवार की सेवा व पालन पोषण करना मनुष्य का कर्तव्य होता है। यह […]