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हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

“शिवरात्रि मूलशंकर के लिये मोक्षदायिनी बोधरात्रि बनी थी”

ओ३म् ========= सनातन धर्म सृष्टि के आरम्भ से प्रवृत्त धर्म है। इसका आधार वेद और वैदिक शिक्षायें हैं जो ईश्वर प्रदत्त होने से पूर्णतः सत्य पर आधारित हैं। वेद संसार में सबसे पुराने ग्रन्थ हैं इस कारण इन्हें पुराण भी कहा जाता है। वास्तविक पुराण वेद ही हैं। वेद में किंचित मानवीय इतिहास नहीं है। […]

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आज का चिंतन

अविद्या व अंधविश्वास दूर किये मनुष्यजाति का कल्याण सम्भव नहीं”

ओ३म् ========= अविद्या, अज्ञान व अन्धविश्वास ये सभी शब्द व इनसे उत्पन्न धार्मिक व सामाजिक प्रथायें परस्पर पूरक व एक दूसरे पर आश्रित हैं। यदि अविद्या, अज्ञान व स्वार्थ आदि न हों तो किसी भी समाज व सम्प्रदाय में अन्धविश्वास उत्पन्न नहीं हो सकते। अज्ञान व अविद्या दूर करने का एक मात्र साधन व उपाय […]

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“शिवरात्रि मूलशंकर के लिये मोक्षदायिनी बोधरात्रि बनी थी”

ओ३म् “शिवरात्रि मूलशंकर के लिये मोक्षदायिनी बोधरात्रि बनी थी” -मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। सनातन धर्म सृष्टि के आरम्भ से प्रवृत्त धर्म है। इसका आधार वेद और वैदिक शिक्षायें हैं जो ईश्वर प्रदत्त होने से पूर्णतः सत्य पर आधारित हैं। वेद संसार में सबसे पुराने ग्रन्थ हैं इस कारण इन्हें पुराण भी कहा जाता है। वास्तविक […]

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ओ३म् “धर्म की वेदि पर बलिदान हुए अमर शहीद रक्तसाक्षी पं. लेखराम आर्यमुसाफिर”

ओ३म् =========== आर्यसमाज का अस्तित्व वेद के अस्तित्व पर विद्यमान है। वेद के बाद ऋषि मुनियों के ग्रन्थ व उनकी ईश्वर, जीव व प्रकृति सहित मानव जीवन के सभी पक्षों पर मार्गदर्शन करने वाली सत्य मान्यताओं पर है। यदि किसी को शास्त्र वा शास्त्र ज्ञान उपलब्ध न हो तो उसे तर्क व युक्ति का सहारा […]

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जीवात्मा का सृष्टिकाल में जन्म-पुनर्जन्म होना सत्य सिद्धान्त है”

ओ३म् ========= हम प्रतिदिन मनुष्य व पशुओं आदि को जन्म लेते हुए देखते हैं। यदि हम इन प्राणियों के जन्मों पर विचार करें तो अनेक प्रश्न उत्पन्न होते हैं जिनके उत्तर हमें साधारणतः नहीं मिलते। मनुष्य व उसके बच्चे का जो शरीर एवं उसमें चेतन जीवात्मा होता है, वह माता के शरीर में कैसे आता […]

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ऋषि दयानन्द ने ईश्वरोपासना और अग्निहोत्र का सर्वाधिक प्रचार किया”

ओ३म् ========= ऋषि दयानन्द के प्रादुर्भाव के समय देश विदेश के लोग ईश्वर की सच्ची उपासना के ज्ञान व विधि से अपरिचित थे। यदि कुछ परिचित थे तो वह योगी व कुछ विद्वान धार्मिकजन ही रहे हो सकते हैं। वह लोग उपासना व अग्निहोत्र यज्ञों का प्रचार न कर उसे अपने तक ही सीमित किये […]

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ऋषि दयानन्द ने ईश्वरोपासना और अग्निहोत्र का सर्वाधिक प्रचार किया”

ओ३म् ऋषि दयानन्द के प्रादुर्भाव के समय देश विदेश के लोग ईश्वर की सच्ची उपासना के ज्ञान व विधि से अपरिचित थे। यदि कुछ परिचित थे तो वह योगी व कुछ विद्वान धार्मिकजन ही रहे हो सकते हैं। वह लोग उपासना व अग्निहोत्र यज्ञों का प्रचार न कर उसे अपने तक ही सीमित किये हुए […]

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ऋषि दयानन्द रचित सत्यार्थप्रकाश आदि ग्रन्थ मनुष्यों को सद्ज्ञान देकर उन्हें ईश्वर का सच्चा भक्त व मोक्षगामी बनाते हैं”

ओ३म् ऋषि दयानन्द (1825-1883) सच्चे ऋषि, योगी, वेदों के पारदर्शी विद्वान, ईश्वरभक्त, वेदभक्त, देशभक्त, सच्चे समाज सुधारक, वेदोद्धारक, वैदिकधर्म व संस्कृति के अपूर्व प्रचारक आदि अनेकानेक गुणों से सम्पन्न थे। 21 वर्ष की अवस्था होने पर वह सुख सुविधाओं से परिपूर्ण अपने माता-पिता का घर छोड़कर सच्चे शिव वा ईश्वर, आत्मज्ञान व मोक्ष के उपाय […]

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वेदों का स्वाध्याय सभी मनुष्यों का मुख्य कर्तव्य एवं परमधर्म

ओ३म् ’ मनुष्यों के अनेक कर्तव्यों में से एक कर्तव्य वेदों के सत्यस्वरूप को जानना व उनका नियमित स्वाध्याय करना है। वेदों का स्वाध्याय मनुष्य का कर्तव्य इसलिये है कि वेद संसार का सबसे पुराना व प्रथम ज्ञान है। यह वेदज्ञान मनुष्यों द्वारा अपने पुरुषार्थ से अर्जित ज्ञान नहीं है अपितु सृष्टि के आरम्भ में […]

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ओ३म् “ऋषि दयानन्द क्या चाहते थे?”

======== ऋषि दयानन्द महाभारत के बाद विगत लगभग पांच हजार वर्षों में वेदों के मंत्रों के सत्य अर्थों को जानने वाले व उनके आर्ष व्याकरणानुसार सत्य, यथार्थ तथा व्यवहारिक अर्थ करने वाले ऋषि हुए हैं। महाभारत के बाद ऐसा कोई विद्वान नहीं हुआ है जिसने वेदों के सत्य, यथार्थ तथा महर्षि यास्क के निरुक्त ग्रन्थ […]

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