परमात्मा और आत्मा का सम्बन्ध व्याप्य-व्यापक, उपास्य-उपासक, स्वामी-सेवक, मित्र बन्धु व सखा आदि का है। परमात्मा और आत्मा दोनों इस जगत की अनादि चेतन सत्तायें हैं। ईश्वर के अनेक कार्यों में जीवों के पाप-पुण्यों का साक्षी होना तथा उन्हें उनके कर्मानुसार सुख व दुःख रूपी फल वा भोग प्रदान करना है। हमारा जो जन्म व […]
Author: मनमोहन कुमार आर्य
मनुष्य एक ज्ञानवान प्राणी होता है। मनुष्य के पास जो ज्ञान होता है वह सभी ज्ञान स्वाभाविक ज्ञान नहीं होता। उसका अधिकांश ज्ञान नैमित्तिक होता है जिसे वह अपने शैशव काल से माता, पिता व आचार्यों सहित पुस्तकों व अपने चिन्तन, मनन, ध्यान आदि सहित अभ्यास व अनुभव के आधार पर अर्जित करता है। मनुष्य […]
आज हम वेदों के अविद्वतीय विद्वान वेद-ऋषि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी द्वारा ईश्वर विषय में की जाने वाली कुछ शंकाओं के समाधान प्रस्तुत कर रहे हैं। उन्होंने प्रश्न उपस्थित किया है कि आप ईश्वर-ईश्वर कहते हो परन्तु ईश्वर की सिद्धि किस प्रकार करते हो? इसका उत्तर देते हुए वह कहते हैं कि वह सब प्रत्यक्षादि […]
आर्य सुधारक थे महात्मा बुद्ध
बौद्ध मत के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध के बारे में यह माना जाता है कि वह आर्य मत वा वैदिक धर्म के आलोचक थे एवं बौद्ध मत के प्रवर्तक थे। उन्हें वेद विरोधी और नास्तिक भी चित्रित किया जाता है। हमारा अध्ययन यह कहता है कि वह वेदों को मानते थे तथा ईश्वर व जीवात्मा के […]
संसार में किसी विषय पर सत्य मान्यता एक व परस्पर पूरक हुआ करती हैं जबकि एक ही विषय में असत्य मान्यतायें अनेक होती व हो सकती हैं। संसार में ईश्वर व धर्म = अध्यात्म विषयक मान्यतायें भी एक समान व परस्पर एक दूसरे की पूरक होती हैं। इसी कारण से संसार में ईश्वर एक ही […]
वेद अपौरुषेय रचना है। सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा ने ही अपने अन्तर्यामीस्वरूप से चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य एवं अंगिरा को उनकी आत्माओं में वेदों का ज्ञान कराया वा दिया था। प्राचीन काल से अद्यावधि-पर्यन्त सभी ऋषि वेदों की परीक्षा कर इस तथ्य को स्वीकार करते आये हैं कि वेद वस्तुतः ईश्वर से ही […]
हमें यह ज्ञात होना चाहिये कि ईश्वर क्या व कैसा है? उसके गुण, कर्म व स्वभाव क्या व कैसे हैं? इसका ज्ञान करने का सरलतम तरीका सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ का अध्ययन है। हमारी दृष्टि में संसार में सत्यार्थप्रकाश ग्रन्थ के समान दूसरा महत्वपूर्ण ग्रन्थ नहीं है। इसके अध्ययन से मनुष्य की सभी शंकायें व समस्यायें दूर […]
आर्यसमाज एक धार्मिक एवं सामाजिक संगठन है जो विद्या से युक्त तथा अविद्या से सर्वथा मुक्त सत्य सिद्धान्तों को धर्म स्वीकार करती है और इनका देश देशान्तर में बिना किसी भेदभाव के प्रचार करती है। आर्यसमाज की स्थापना से पूर्व देश व विश्व अविद्या से ग्रस्त था। धर्म तथा मत-मतान्तरों में अविद्या प्राबल्य था। लोगों […]
प्रत्येक रचना एक रचयिता की बनाई हुई कृति होती है। हमारी यह विशाल सृष्टि किस रचयिता की कृति है, इस पर विचार करना आवश्यक एवं उचित है। सृष्टि की रचना व उत्पत्ति आदि विषयों का अध्ययन करने पर यह अपौरुषेय रचना सिद्ध होती है। अपौरुषेय रचनायें वह होती हैं जिनको मनुष्य नहीं बना सकते। संसार […]
संसार में सभी जीवन पद्धतियों में वैदिक धर्म एवं तदनुकूल जीवन पद्धति श्रेष्ठ एवं महत्वूपर्ण है। इसे जानकर और इसके अनुसार जीवन व्यतीत करने पर मनुष्य अनेक प्रकार की समस्याओं से बच जाता है। मनुष्य को अपनी शारीरिक शक्तियों के विकास वा उन्नति पर ध्यान देना चाहिये। इसके लिये उसे समय पर जागना, शौच, भ्रमण, […]