🚩🇮🇳 अपने हंगामे से संसद के मानसून सत्र को एक तरह से नकाम करने के बाद विपक्षी दलों का उत्साहित होना समझ से परे है यह उत्साहित होने की नहीं बल्कि चिंतन-मनन करने की बात है कि आखिर इससे उसे हासिल क्या हुआ??? इसमें संदेह है कि सोनिया गांधी की ओर से बुलाई गई विपक्षी […]
लेखक: ज्ञानप्रकाश वैदिक
पढ़ लो हिन्दुओं ” भाईचारे का भूत“, और ” सेकुलरिज्म का नशा” उतर जाएगा 【संग्रह करने योग्य पोस्ट】 1- Verse 9 Surah 5 فَاِذَاانْسَلَخَالۡاَشۡهُرُالۡحرِكِيۡنَحَيۡثُوَجَدْتُّمُوۡهُمۡوَخُذُوۡهُمۡوَاحۡصُرُوۡهُمۡوَاقۡعُدُوۡالَهُمۡكُلَّمَرۡصَدٍ ۚفَاِنۡتَابُوۡاوَاَقَامُواالصَّلٰوةَوَاٰتَوُاالزَّكٰوةَفَخَلُّوۡاسَبِيۡلَهُمۡ ؕاِنَّاللّٰهَغَفُوۡرٌرَّحِيۡمٌ मतलब: फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएं तो मुशरिकों को जहां कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में […]
✍🏻 लेखक – डॉ० सुरेन्द्रकुमार ( मनुस्मृति भाष्यकार एवं समीक्षक ) 📚 आर्य मिलन 🌹 ( अ ) डॉ० अम्बेडकर का मनु प्राचीन मनुओं से भिन्न है : डॉ० भीमराव अम्बेडकर ने अपने साहित्य में अनेक स्थलों पर ‘ मनु ‘ का नाम लेकर कटु आलोचना की है । ऐसी स्थिति में प्रश्न उठता है […]
कभी सुख कभी दुख, कभी लाभ कभी हानि, कभी अनुकूलता कभी प्रतिकूलता, यह तो जीवन में चलता ही रहता है। यही तो जीवन है। जैसे गंगा आदि नदी के दायां और बायां दो किनारे होते हैं, ऐसे ही संसार रूपी नदी के भी सुख और दुख रूपी दो किनारे हैं। कभी जीवन रूपी नैया सुख […]
लेखक :-आचार्य भगवान देव गुरुकुल झज्जर अंग्रेजों के भारत आने से पूर्व योरूप के किसी भी देश में इतना शिक्षा का प्रचार नहीं था जितना कि भारत वर्ष में था। भारत विद्या का भण्डार था। सार्वजनिक शिक्षा की दृष्टि से भारत सब देशों का शिरोमणि था। उस समय असंख्य ब्राह्मण प्राचार्य अपने – अपने […]
लेखक :- स्वामी ओमानन्द सरस्वती हरियाणा संवाद :- 10मई 1975 प्रस्तुति :- अमित सिवाहा महर्षि दयानन्द जी ने संसार का उपकार करने के लिए बम्बई में चैत्र शुक्ला प्रतिपदा विक्रमी सम्वत् १९३२ को आर्यसमाज की स्थापना की। उस समय आर्य जाति की रीति – नीति , सभ्यता , संस्कृति को पाचात्य सभ्यता का झंझावात […]
रोमिला थापर vs. सीताराम गोयल: भारत के मार्क्सवादी इतिहासकार दो हथियारों (तकनिकों) से हंमेशा लैस रहते है: उनका पहला हथियार होता है अपने इतिहास लेखन पर प्रश्न उठाने वालों या असहमत होने वालों पर तुरंत “साम्प्रदायिक – communal” होने का लांछन लगा देना, ताकि सामने वाला शुरु से ही बचाव मुद्रा में आ जाए, […]
उन्नीसवीं सदी के हिन्दू नवोत्थान के इतिहास का पृष्ठ-पृष्ठ बतलाता है कि जब यूरोप वाले भारतवर्ष में आये तब यहां के धर्म और संस्कृति पर रूढ़ि की पर्तें जमी हुई थीं एवं यूरोप के मुकाबले में उठने के लिए यह आवश्यक हो गया था कि ये पर्तें एकदम उखाड़ फेंकी जाएँ और हिन्दुत्व का […]
सेक्युलर भजन – ईश्वर अल्लाह तेरो नाम कितना सही है? कुरान के अल्लाह व वेद के ईश्वर में अन्तर अलग अलग भाषाओं में सर्वव्यापी परमात्मा के अलग अलग नाम हैं । मूर्खों ने परमात्मा के नाम पर हिन्दू मुस्लिम सिक्ख जैन बोद्ध ईसाई आदि अनेक मतमतान्तर खडे कर लिए हैं । अल्लाह अरबी भाषा […]
मैक्समूलर के कुछ पत्र अपनी पत्नी, पुत्र आदि के नाम लिखे हुए उपलब्ध हुए हैं। पत्र-लेखक पत्रों में अपने हृदय के भाव बिना किसी लाग-लपेट के लिखता है। अतः किसी भी व्यक्ति के लिखे हुए ग्रन्थों की अपेक्षा उसके पत्रों में लिखे विचार अधिक प्रामाणिक माने जाते हैं। प्रारम्भिक विचार- मैक्समूलर के आरम्भिक काल में […]