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संपादकीय

गाय के लिए मैराथन दौड़

भारत में धर्म राजनीति की नकेल रहा है, और राजनीति धर्म की स्थापना का अर्थात मानवता को सर्वोपरि मनवाने का सशक्त माध्यम रही है। धर्म को जिन लोगों ने सम्प्रदाय या रिलीजन माना उन्होंने धर्म और राजनीति के खूनी संबंधों को मानवता के विरूद्घ मानकर धर्म और राजनीति को अलग-अलग करने का प्रयास किया। परंतु सत्य […]

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संपादकीय

हम उस देश के वासी हैं…

भारत के गौरव पर प्रकाश डालते हुए मैक्समूलर ने अपनी पुस्तक ‘इंडिया: व्हाट कैन इज टीच अस’ में लिखा है-‘‘यदि मैं विश्वभर में से उस देश को ढूंढने के लिए चारों दिशाओं में आंखें उठाकर देखूं जिस पर प्रकृति देवी ने अपना संपूर्ण वैभव, पराक्रम तथा सौंदर्य खुले हाथों लुटाकर उसे पृथ्वी का स्वर्ग बना […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

दलकी-मलकी की दलदल में फंस गया था बलबन

युग धर्म में आया परिवर्तनजैसी परिस्थितियां होती हैं-वैसा ही युग धर्म बन जाया करता है। जब भारत वर्ष में शांति का काल था, सर्वत्र उन्नति और आत्मविकास की बातें होती थीं तो यही देश जीवेम् शरद: शतं-का उपासक था। तब यहां शतायु होने का आशीर्वाद मिलता भी था और दिया भी जाता था। परंतु जब […]

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संपादकीय

उठो! स्वाभिमानी भारत के निर्माण के लिए

पाकिस्तान ने अपने जन्म के पहले दिन से ही भारत के लिए समस्याएं खड़ी करने का रास्ता अपनाया। पराजित मानसिकता के इतिहास बोध से ग्रसित भारत के शासक वर्ग ने पाकिस्तान द्वारा देश में और देश के बाहर बोयी गयी समस्याओं के काटने पर तो ध्यान दिया, पर कभी इन समस्याओं के जनक को ललकारने […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

रजिया के शासन काल में भी जलती रही स्वतंत्रता की ज्योति

रजिया भारतवर्ष के तुर्क गुलाम वंश की नही अपितु पूरी सल्तनत काल में हुई एकमात्र मुस्लिम महिला सुल्तान है। कुछ लोगों ने हिंदू धर्म की अपेक्षा इस्लाम को अधिक प्रगतिशील माना है। परंतु इस कथित ‘प्रगतिशील धर्म’ ने अपनी इस महिला सुल्तान को अपना पूर्ण सहयोग और समर्थन प्रदान नही किया। फलस्वरूप ये मुस्लिम महिला […]

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संपादकीय

समय की पुकार यही है

मौलाना अबूल कलाम आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण नेता रहे। वह नेहरू, गांधी और पटेल की तिक्कड़ी में से नेहरू के अधिक निकट थे, गांधीजी को पसंद करते थे, और पटेल को समझने का प्रयास करते थे। उन्होंने भारत के स्वाधीनता संग्राम को लेकर एक पुस्तक लिखी, जिसका नाम था-‘आजादी की […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

अल्तमश के काल में धधकती रही सर्वत्र क्रांति की ज्वाला

क्या कहते हैं विदेशी विद्वान हमारे विषय मेंभारतीयों के विषय में प्रो. मैक्समूलर ने लिखा है:-‘‘मुस्लिम शासन के अत्याचार और वीभत्सता के वर्णन पढक़र मैं यही कह सकता हूं कि मुझे आश्चर्य है कि इतना सब होने पर भी हिंदुओं के चरित्र में उनके स्वाभाविक सदगुण एवं सच्चाई बनी रही।’’यहां मैक्समूलर ने मुस्लिम अत्याचारों की […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

स्वतंत्रता के महायोद्घा:उदयसिंह, भरतपाल, वाग्भट, जैत्रसिंह एवं वीर नारायण

पिछले पृष्ठों पर हमने शाहिद रहीम साहब का उद्घरण प्रस्तुत किया था, जिसमें उन्होंने भारत के आर्यावत्र्तीय स्वरूप का उल्लेख किया है। अपने अतीत के गौरवमयी पृष्ठों के आख्यान के लिए उनका वह उद्घरण बड़ा ही अर्थपूर्ण और तर्कपूर्ण है। उनके इस तथ्य की पुष्टिके लिए मनुस्मृति (1.2.22.29) का यह श्लोक भी ध्यातव्य है- आ […]

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संपादकीय

यू.एन. में कश्मीरी मुद्दों का सच

1947 ई. के जम्मू-कश्मीर राज्य की सीमाओं का निर्माण उससे सही सौ वर्ष पूर्व हुआ था, जब अमृतसर की संधि के अंतर्गत अंग्रेजों ने जम्मू-लद्दाख के शासक महाराजा गुलाब सिंह को कश्मीर घाटी को अपने राज्य में मिला लेने की सहमति दे दी थी। आज के पाक अधिकृत कश्मीर और भारतीय कश्मीर को मिलाकर देखने […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

अल्तमश को गद्दी पर बैठते ही मिली चुनौती

प्रसिद्घ इतिहासकार एच. जी. वैल्स ने कहा है कि-‘‘शिक्षा समाज के हित का एक सामूहिक कार्य है, केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नही है। मानव इतिहास शिक्षा और विनाश के बीच होने वाली दौड़ है।’’इस इतिहासकार का यह कथन विचार करने योग्य है कि मानव इतिहास शिक्षा और विनाश के बीच होने वाली दौड़ है। भारत […]

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