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प्रमुख समाचार/संपादकीय राजनीति विविधा संपादकीय

नई राजनीति के खिलाड़ी वरूण गांधी

सूखे पेड़ पर बैठा पक्षी भी बुरा लगता है। यहां तक कि यात्री भी सूखे पेड़ की अपेक्षा हरे-भरे पेड़ को तलाशता है, और अपनी थकान मिटाता है। इस घटना को समझने के दो पहलू हो सकते हैं, एक तो यह कि संसार स्वार्थी होता है, जहां तक आपके पास कुछ है, तब तक लोग […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

बलबन के काल में हिन्दू राजाओं ने अपनायी आपराधिक तटस्थता

युवा जुड़ें अपने गौरवपूर्ण अतीत के साथ मैं अपने सुबुद्घ पाठकों से विनम्र अनुरोध करूंगा कि वे ‘इतिहास बोध’ के लिए अपने अतीत के साथ दृढ़ता से जुडऩे का संकल्प लें। क्योंकि अपने अतीत के गौरव को आप जितना ही आज में पकडक़र खड़े होंगे, आपका आगत (भविष्य) भी उतना ही गौरवमय और उज्ज्वल बनेगा। […]

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संपादकीय

‘बुद्घ नही युद्घ’ के उद्घोषक: सावरकर

बात 10 मई 1957 की है। सारा देश 1857 की क्रांति की शताब्दी मना रहा था। दिल्ली में रामलीला मैदान में तब एक भव्य कार्यक्रम हुआ था। हिंदू महासभा के नेता वीर सावरकर यद्यपि उस समय कुछ अस्वस्थ थे, परंतु उसके उपरांत भी वह इस ऐतिहासिक समारोह में उपस्थित हुए थे। वह देश के पहले […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

लाखों स्वतंत्रता सैनानियों की हत्या कर दी थी बलबन ने

गयासुद्दीन बलबन गुलाम वंश का सबसे प्रमुख सुल्तान था। नासिरूद्दीन के शासन काल में वह मुख्य सेनापति था और तब उसकी शक्ति में पर्याप्त वृद्घि हो गयी थी। बदायूंनी का कथन तो यह भी है कि सुल्तान नासिरूद्दीन ने राज्यसिंहासन पर बैठते ही उलुघ खां की उपाधि बलबन को दी थी और इस उपाधि को […]

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संपादकीय

मोदी युग में गांधी-नेहरू का उतरता जुआ

राष्ट्रदेव की आराधना के लिए मां भारती का सच्चा सेवक कोई ‘मोदी’ ही हो सकता है। राष्ट्र आराधना और ‘मां भारती’ की सेवा के समक्ष अन्य सब बातों को गौण समझ लेना ही जीवन ध्येय की सार्थकता है। इस कत्र्तव्य बोध से भर जाना और फिर भरे ही रहना जीवन की बहुत बड़ी साधना है। […]

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संपादकीय

हिन्दू महासभा की प्रचण्डता में ही छिपा है देश की अखण्डता का मूलमंत्र

हिंदू महासभा का अपना गौरवमयी अतीत है। 10 अप्रैल 1875 ई. में आर्यसमाज की स्थापना महर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज के द्वारा मुंबई में की गयी थी। उसके पश्चात हिंदू सभा पंजाब (1882 ई.) का जन्म हुआ। 1909ई. में बंगाल हिंदू सभा की स्थापना की गयी थी। इससे पूर्व 1906 ई. में ढाका में मुस्लिम […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

आसाम, मध्य प्रदेश, दोआब में चलता रहा स्वतंत्रता संघर्ष

महाभारत के वनपर्व में वर्णित नलोपाख्यान राजा नल के लिए आता है। उस समय इस राजा की राजधानी का नाम नलपुर था, जो कालांतर में नलपुर से नरवर शब्द से रूढ़ हो गयी। इसी नरवर में एक प्राचीन दुर्ग भी विद्यमान है, जो कि यहां की एक पहाड़ी पर स्थित है। इसलिए इस शहर को […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

उलुध खां को यदुवंशी मेवों और हिन्दू वीर गक्खरों ने चबाए थे नाकों चने

जो जातियां विदेशी आक्रांताओं को लूट-पीटकर जंगलों में छिप जाती थीं, या जंगलों की ओर भाग जाती थीं, उसे विदेशी (वास्तविक लुटेरों) ने ‘लुटेरी जाति’ कहकर संबोधित किया और उसे ऐसा ही इतिहास में प्रसिद्घ किया। 1936 ई. में वर्तमान भारत को उसके अतीत से काटने के लिए एक ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ नामक संगठन ने […]

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संपादकीय

सरकार व्यक्ति और व्यवस्था

किसी संस्कृत के कवि ने कितना सुंदर कहा है :- यन्मनसा ध्यायति तद्वाचा वदति,यद्वाचा वदति तत्कर्मणा करोति,यद्कर्मणा करोति तदभि सम्पद्यते। अर्थात मनुष्य जैसा विचारता है-ध्यान करता है, वैसा ही बोलता है, जैसा बोलता है-वैसा ही कर्म करता है और जैसा कर्म करता है वैसा फलोपभोग करता है।इसका अभिप्राय है कि संसार के सारे व्यवहार-व्यापार का […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

रणथम्भौर का हिन्दूवीर शासक नाहर देव (जैत्रसिंह)

ऋषिजीवन की एकघटना: महर्षि दयानंद सरस्वती के जीवन की एक घटना है। महर्षि हरिद्वार के कुम्भ मेले में एक स्थान पर टिके हुए थे। उनके पास कुछ लोग बैठे थे, जिनमें से दो चार मुसलमान भी थे। उन लोगों का परस्पर वार्तालाप हो रहा था। तब एक मुसलमान ने किसी हिंदू से कहा कि तुम […]

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