कौटिल्य ने देश को चलाने के लिए किसी मंत्री की योग्यता की एक व्यवस्थित सूची हमें दी है। उनके अनुसार-‘‘एक मंत्री को देशवासी (विदेशी ना हो) उच्चकुलोत्पन्न (संस्कारित और उच्च शिक्षा प्राप्त) प्रभावशाली, कलानिपुण, दूरदर्शी, विवेकशील, (न्यायप्रिय दूध का दूध और पानी का पानी करने वाला-नीर-क्षीर विवेकशक्ति संपन्न) अच्छी स्मृति वाला, जागरूक, अच्छा वक्ता, (समाज […]
लेखक: डॉ॰ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत
ग्राम अपने आप में एक ऐसी व्यवस्था है जिसके विषय में इसके पूर्णत: आत्मनिर्भर पूर्णत: आत्मानुशासित और पूर्णत: आत्मनियंत्रित रहने की परिकल्पना को हमारे ऋषि पूर्वजों ने साकार रूप दिया। आज के भौतिकवादी युग में किसी ईकाई या संस्था के पूर्णत: आत्मनिर्भर आत्मानुशासित अथवा आत्मनियंत्रित होने की कल्पना नही की जा सकती। ग्राम्य और शहरी […]
बात सन 986-987 की है। भारत पर उस समय आक्रमण करने की एक श्रंखला को महमूद गजनवी अभी आरंभ कर नही पाया था। तब प्रतीहार वंश भारत में पतनोन्मुख हो चला था, यद्यपि यह वंश भारत के लिए बहुत ही गौरव प्रदान कराने वाला रहा था। ऐसा गौरव जिसे देखकर इतिहासकारों की मान्यता बनी कि […]
गुजरात का प्राचीन काल से ही भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह प्रांत वीर गुर्जर जाति का निवास स्थान रहा है। गुर्जर जाति ने इस प्रांत से देश विदेश के बहुत बड़े भूभाग पर शासन किया और मां भारती के यश और शौर्य की गाथा का डिण्डिम घोष किया।
भारत के संविधान की मूल भावना के साथ हमारे राजनीतिज्ञों ने निहित स्वार्थों में निर्लज्जता की सीमा तक छेड़छाड़ की है। संविधान नही चाहता कि देश में किसी गरीब को सरकारी संरक्षण से केवल इसलिए वंचित होना पड़े कि वह किसी अगड़ी या सवर्ण जाति का है, लेकिन व्यवहार में कितने ही निर्धनों को जाति […]
अभी हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा है। इस हार से पहुंचे ‘सदमे’ से सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य नेता अभी उभर नही पाए हैं। देश के लिए कांग्रेस का हार जाना बुरी बात नही है, बुरी बात है देश में अब […]
प्रसिद्घ दार्शनिक सुकरात को शीशा देखने का बड़ा चाव था। नित्य की भांति वह उस दिन भी शीशा देख रहे थे, तो उन्हें शीशा देखते हुए उनके एक शिष्य ने देख लिया। शिष्य अपने कुरूप गुरू को शीशा देखते हुए देखकर मुस्कराने लगा। उसकी मुस्कुराहट ने दार्शनिक सुकरात को समझा दिया कि वह क्यों हंस […]
कभी आंसू बन जाते हैं तकदीर,कभी आंसू मिटा देते हैं तस्वीर।आंसुओं का भी अपना इतिहास है,कभी इनसे घबराती है शमशीर।बादल गरजता है बरसता है,पर पपीहा एक बूंद को तरसता है।हृदयाकाश में उठे गर नेकनीयती की बदरिया,तो आंसू ‘मोदी के मोती’ बनकर झरता है।। 20 मई को भाजपा के नवनिर्वाचित सांसदों की बैठक संसद में हो […]
भारत के राजनीतिक क्षितिज पर नया सवेरा हो रहा है। इतिहास ने अपना नया अध्याय लिखना आरंभ कर दिया है, लगता है देश में फिर से मधुमास आ गया है। आज समय है स्वतंत्रता, स्वराज्य और व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की प्रचलित परिभाषाओं की समीक्षा करने का और इन प्रचलित परिभाषाओं की ओट में इन […]
जब विदेशियों ने भारत के इतिहास लेखन के लिए लेखनी उठाई तो उन्होंने भारतीय समाज की तत्कालीन कई दुर्बलताओं को दुर्बलता के रूप में स्थापित ना करके उन्हें भारतीय संस्कृति का अविभाज्य अंग मानकर स्थापित किया। जैसे भारत में मूर्तिपूजा ने भारत के लोगों को भाग्यवादी बनाने में सहयोग दिया, यद्यपि मूलरूप में भारत भाग्यवादी […]