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संपादकीय

कांग्रेस का बेअसर नेतृत्व

मोदी सरकार के विरूद्घ कांग्रेस ने मोर्चा खोल रखा है। विरोध लोकतंत्र में आवश्यक होता है पर उसकी अपनी सीमाएं हैं। सकारात्मक विरोध सरकार के लिए नकेल का काम करता है, और उसे स्वेच्छाचारी बनने से रोकता है। स्वेच्छाचारिता लोकतंत्र को प्रतिबंधित और संकीर्ण करती है। लोकतंत्र में यह दुर्गुण प्रविष्ट न होने पाये, इसलिए […]

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संपादकीय

अंग्रेजी काल का ये पुलिस प्रशासन

स्वतंत्र भारत की पहली सरकार जब पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में अस्तित्व में आयी थी तो उसके लिए नौकरशाही वही कार्य कर रही थी जो 15 अगस्त 1947 तक अंग्रेजों के लिए कार्य करती रही थी। शासन प्रशासन में से प्रशासन वही था जो अंग्रेजों का था और शासन में वो लोग सत्तासीन हुए […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

गांवों में मुकद्दम भी करते रहे स्वतंत्रता संघर्ष का नेतृत्व

पूर्व आलेख में प्रसंग इटावा का चल रहा था कि यहां के मुकद्दम या ग्राम्य मुखिया लोगों ने भी किस प्रकार स्वतंत्रता की ज्योति जलाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पूर्व आलेख में प्रसंग इटावा का चल रहा था कि यहां के मुकद्दम या ग्राम्य मुखिया लोगों ने भी किस प्रकार स्वतंत्रता की ज्योति जलाये […]

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संपादकीय

नकारात्मक सोच का संघर्ष

मनुष्य काम घृणा के और बातें प्रेम की करता है, नफ रत के बीज बोकर प्रेम की फ सल काटने के सपने संजोता है, अपनी चिंतन शक्ति की बड़ी उर्जा को नकारात्मक बातों में व्यय करता है और बातें अपनी उर्जा को सकारात्मक चिंतन के व्यापार-विस्तार में लगाने की करता है। यह द्वन्द्व है। एक […]

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संपादकीय

‘आंधी के आम’ और हमारे सांसद

जब आंधी आती है तो उसमें आम बहुत झड़ जाते हैं। इन ‘आंधी के आमों’ की बाजार में कीमत भी गिर जाती है। लोग उन्हें खरीदते नही हैं, अपितु दुकानदार कम से कम मूल्य करके उन्हें अपने ग्राहकों से खरीदवाता है। ऐसा ही हमारे सांसदों के अथवा जनप्रतिनिधियों के साथ होता है। जब किसी पार्टी […]

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संपादकीय

आंकड़ों में उलझी गरीबी

भारत में आंकड़ों के खेल के जादूगर बहुत हैं। ये जादूगर बड़ी होशियारी से आंकड़ों का ऐसा खेल बनाते दिखाते हैं कि अच्छे से अच्छा विशेषज्ञ या विवेकशील व्यक्ति भी इनमें उलझकर रह जाएगा। उसका सिर भी चकरा जाएगा और वह भी आंकड़ों के जादूगर को उसके बौद्घिक कौशल के लिए बधाई दिये बिना नही […]

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संपादकीय

‘कोऊ नृप होई हमें का हानि’ और राज्यसभा, भाग-दो

जब वहां की संसद के ‘हाउस ऑफ लार्ड्स’ ने तत्कालीन प्रधानमंत्री एच.एच. एसक्विथ द्वारा प्रस्तुत किये गये बजट पर अपनी ओर से ‘अड़ंगा’ डाल दिया था। तब प्रधानमंत्री ने पहले तो त्यागपत्र दिया और फिर जनता के न्यायालय में जाकर इस बात पर जनता का फैसला अपने पक्ष में कराने में सफलता प्राप्त की कि […]

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संपादकीय

‘कोऊ नृप होई हमें का हानि’ और राज्यसभा

पूर्व राष्ट्रपति कलाम चले गये, ‘मुंबई बम कांड’ के दोषी याकूब मेमन को भी फांसी हो गयी। बहुत सा पानी यमुना के पुल के नीचे से बह गया। पर हमारी संसद में राजनीतिक दलों की राजनीति हठ किये हुए वहीं खड़ी है, जहां सत्रारम्भ में 21 जुलाई को खड़ी थी। सचमुच ऐसी स्थिति पूरे देश […]

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संपादकीय

याकूब मेमन की फांसी

हम भारतीय जब किसी दुर्दांत आतंकवादी संगठन की ओर से की गयी किसी दुखद घटना को निकट से देखते हैं तो उस पर हमें इतना दुख होता है कि उस घटना को अंजाम देने वाले व्यक्ति या संगठन को हम तुरंत फांसी दे देना चाहते हैं। पर उसी घटना को करने वाले किसी व्यक्ति को […]

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संपादकीय

प्रतिशोध और केवल प्रतिशोध

भारत में पाकिस्तान ने पुन: एक बार अस्थिरता फैलाकर पंजाब के गुरदासपुर जिले में एक पीड़ादायक आतंकी घटना को अंजाम दिया है। इस पर हम फिर चुप लगा गये हैं। ‘अहिंसा, चरखा और सत्याग्रह’ के प्रपंच ने भारत के इतिहास को और हमारी वीर परंपरा को इतना विकृत और छलनी कर दिया है कि कुछ […]

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