कामनाएं पूर्ण होवें यज्ञ से नरनार की क्रोध, मद, मोह, लोभ इत्यादि के विषय में भी ऐसा ही मानना चाहिए। अर्थात एक सीमा तक क्रोध (मन्यु) ईश्वरीय व्यवस्था के अंतर्गत उचित है, परंतु सीमोल्लंघन होते ही क्रोध भी ईश्वरीय व्यवस्था में बाधक हो जाता है। यदि पापी, दुष्ट, अत्याचारी, अनाचारी और किसी भी असामाजिक व्यक्ति […]
Author: डॉ॰ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत
गांधीजी का कहना था कि- ”अगर पाकिस्तान बनेगा तो मेरी लाश पर बनेगा” परंतु यह उनके जीते जी ही बन गया। हां! ये अलग बात है कि वह उनकी लाश पर न बनकर देश के असंख्य लोगों की लाशों पर बना। क्या ही अच्छा होता कि यदि वह केवल उनकी ही लाश पर बनता तो […]
महात्मा की अपेक्षाएं महात्मा तो वह होता है जिसकी आत्मा संसार के महत्व को समझकर विषमताओं, प्रतिकूलताओं और आवेश के क्षणों में भी जनसाधारण के प्रति असमानता का व्यवहार न करते हुए समभाव का ही प्रदर्शन करती है, किंतु जिसका व्यवहार हठीला हो, दुराग्रही हो, सच को सच न कह सकता हो, इसलिए एक पक्ष […]
गांधीजी के नैतिक मूल्यों ने इन समस्याओं को और उलझा दिया। आज परिणाम हम देख रहे हैं कि मानव-मानव से जुड़ा नहीं है, अपितु पृथक हुआ है। आज मानव दानव बन गया है। संप्रदाय आदि के झगड़े राष्ट्र में शैतान की आंत की भांति बढ़े हैं। क्योंकि हमने मजहब संप्रदाय, वर्ग, पंथ, भाषा, जाति आदि […]
गांधीजी की धर्मनिरपेक्षता गांधीजी की धर्मनिरपेक्षता को गांधीवाद का एक महान लक्षण बताकर महिमामंडित किया गया है। हिंदू उत्पीडऩ, हिंदू दमन, हिन्दू का शोषण और विपरीत मजहब वालों का तुष्टिकरण गांधीवाद में धर्मनिरपेक्षता की यही परिभाषा है। इस पर हम पूर्व लेखों में पर्याप्त प्रकाश डाल चुके हैं। अपनी इसी धर्मनिरपेक्षता के कारण गांधीजी ने […]
(पाठकवृन्द! इससे पूर्व इस लेखमाला के आप 5 खण्ड पढ़ चुके हैं, त्रुटिवश उन लेखमालाओं पर क्रम संख्या नहीं डाली गयी थी। इस 6वीं लेखमाला का अंक आपके कर कमलों में सादर समर्पित है।) गांधीजी की सिद्घांत के प्रति यह मतान्धता थी, जिद थी, और उदारता की अति थी। लोकतंत्र उदारता का समर्थक तो है […]
इस घटना से जो उत्तेजना फैली उससे एक दिन मालेर कोटला के महल को कूकों के द्वारा घेर लिया गया और जमकर संघर्ष हुआ। परिणाम स्वरूप 68 व्यक्ति मालेर कोटला के डिप्टी कमिश्नर ‘मिस्टर कॉवन’ ने पकड़ लिये और अगले दिन उनमें से 49 लोग तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिये गये तथा पचासवां […]
रानी सारंधा के विषय में भारत की वीरांगनाओं में रानी सारंधा का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है। सारंधा बुंदेला राजा चंपतराय की सहधर्मिणी थी। जब सारंधा छोटी ही अवस्था में थी, तभी से उसकी देशभक्ति उस पर हावी होने लगी थी। स्वतंत्रता के भाव उसमें कूट-कूटकर भरे थे, इसलिए आत्माभिमान की भी […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-51
कामनाएं पूर्ण होवें यज्ञ से नरनार की प्रसिद्घ कवि शिव मंगलसिंह ‘सुमन’ अपनी ‘थीसिस’ के लिए शांति निकेतन गये। वहां से प्रस्थान करने से पूर्व वह आचार्य क्षिति मोहन सेन से आशीर्वाद लेने हेतु उनके कक्ष में गये। आचार्यश्री के चरण स्पर्श करके कवि महोदय ऊपर उठे तो आचार्यश्री के मुंह से निकलने वाले आशीष […]
आत्मन: प्रतिकूलानि… संसार का कोई भी मत,पंथ या संप्रदाय ऐसा नही, जिसने परतंत्रता को धिक्कारा ना हो। इसका अर्थ है कि कोई मत, पंथ या संप्रदाय चाहे किसी विपरीत मत, पंथ या संप्रदाय के मानने वालों को अपने अधिक संख्या बल से डराकर या अपने बाहुबल से डराकर उन्हें अपना दास बनाने का अभियान चला […]