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पर्यावरण राजनीति संपादकीय

संतति निरोध की मूर्खतापूर्ण नीतियां अपनाने का षडय़ंत्र भाग-2

अन्नोत्पादन से कितने ही जीवों की हत्या हलादि से होती है। वनों का संकुचन होता है। फलत: पर्यावरण का संकट आ खड़ा होता है। इसलिए प्राकृतिक और स्वाभाविक रूप से जो कुछ हमें मिल रहा है वही हमारा स्वाभाविक भोजन है। अत: अन्न  से रोटी बनाना और उसे भोजन में ग्रहण करना तो एक बनावट […]

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भयानक राजनीतिक षडयंत्र संपादकीय

संतति निरोध की मूर्खतापूर्ण नीतियां अपनाने का षडय़ंत्र

संतति निरोध की मूर्खतापूर्ण नीतियां अपनाने का षडय़ंत्र भारत में संतति निरोध की नीतियां भी पश्चिम के अंधानुकरण पर टिकी हैं। इस विषय को इससे जुड़ी हुई गुत्थ्यिों को हमारे राजनीतिज्ञों ने पश्चिमी दृष्टिकोण से ही देखा और समझा है। पश्चिमी दृष्टिकोण से बढक़र दुर्भाग्यपूर्ण है इस विषय पर इस्लामिक दृष्टिकोण को मान्यता देने की […]

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संपादकीय

कोऊ नृप होइ हमें का हानि-क्यों बनी ऐसी सोच?-भाग-3

राष्ट्र धर्म की उपेक्षा घातक स्वतंत्रता के उपरांत हमारा राष्ट्रधर्म था राजनीति को मूल्य आधारित बनाना, शासक को शासक के गुणों से विभूषित करना तथा राष्ट्र को दिशा देने में सक्षम बनाने वाले राजनीतिक परिवेश का निर्माण करना। हमने इसी धर्म को निशाने में चूक की। परिणामस्वरूप राजनीति बदमाशों के पल्ले पड़ गयी जो आज […]

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संपादकीय

कोऊ नृप होइ हमें का हानि-क्यों बनी ऐसी सोच?-भाग-2

इस बात को दृष्टिगत रखते हुए कृष्ण जी कहते हैं-‘स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मोभयावह:’ अपने धर्म में मर जाना भी उत्तम है, क्योंकि दूसरे का धर्म भयावह है। इसे एक बात से हम समझ लें कि अध्यापक (ब्राह्मण) का कर्म पढ़ाना है, राजा का कर्म राज करना है। राज करने से पढ़ाना सरल है। यदि कोई […]

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संपादकीय

कोऊ नृप होइ हमें का हानि-क्यों बनी ऐसी सोच?

देखिये गीता में श्रीकृष्ण जी अर्जुन से कहते हैं- ‘वीरता, तेज, धीरता, चतुरता, युद्घ में पीठ न दिखाना, दानशीलता और शासन करना ये क्षत्रिय के स्वाभाविक गुण हैं।’ श्री कृष्ण जी कहते हैं कि अपने स्वभाव के अनुसार अपने-अपने कर्म में जो व्यक्ति लगा रहता है, वह सिद्घि को प्राप्त करता है। सभी व्यक्तियों का […]

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राष्ट्रीय साक्षरता अभियान, भाग-3

आज जो शिक्षा हमें दी जा रही है वह निर्मम शिक्षा है, यह शिक्षा इस भूमि को बांझ बना रही है। ‘गर्भनिरोधक’ गोलियां दे देकर हमारी मातृशक्ति को बांझ बना रही है। नारी को विषय भोग की वस्तु बना रही है। जबकि भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली बांझपन को नहीं उत्पादकता को और विषय भोग […]

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संपादकीय

मनुष्य को अछूत मानने वाला स्वयं ‘अछूत’ है

अस्पृश्यता को लेकर पुन: एक बार चर्चा चली है। पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने इस विषय में कुछ समय पूर्व आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया है था और शूद्रों को मंदिर में प्रवेश पाने से निषिद्घ करने की बात कही थी। जब विश्व मंगल ग्रह पर जाकर पृथ्वी के मंगल गीतों से मंगल पर […]

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संपादकीय

राष्ट्रीय साक्षरता अभियान, भाग-2

फ्रायड का फ्राड और भारतीय शिक्षा फ्रायड नाम के विदेशी मनोवैज्ञानिक ने एक शब्द पकड़ लिया ङ्ख्रञ्जष्ट॥ वाच।  इसकी व्याख्या उसने करते हुए कहा कि देखो इसका प्रथम अक्षर ङ्ख कह रहा है कि ‘वाच यौर वर्डस’ अपने शब्दों पर ध्यान दें कि आप क्या कह रहे हैं? इसी प्रकार र से एक्शन ञ्ज से […]

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संपादकीय

राष्ट्रीय साक्षरता अभियान

हमारे देश में लोगों को साक्षर करने का मिशन बड़े जोरों पर चलाया गया है। राजनीतिज्ञों ने इस अभियान का राजनीतिक लाभ और देश के नौकरशाहों ने आर्थिक लाभ उठाने का भी भरपूर प्रयास किया है। अपने इस प्यारे एवं ‘सारे जहां से अच्छे हिंदुस्तान’ में जिस प्रकार सडक़ें फाइलों में बन जाती हैं और […]

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संपादकीय

छद्म धर्मनिरपेक्षता के साये में चलते इतिहास के कुछ झूठ, भाग-3

आत्मदाह की प्रवृत्ति यह आत्मदाह की ही प्रवृत्ति का एक स्वरूप है कि यहां का युवा वर्ग अपने गौरवपूर्ण अतीत से काट दिया गया है, या कट रहा है। इस भटकते हुए युवा मानस को यह बताना आज नितांत आवश्यक हो गया है कि उस भारत के वे महान जुझारू संघर्षशील राजा कौन थे जो […]

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