‘कमीशन’ का घुन खा रहा है, राष्ट्र को किंतु हम सब इस व्यवस्था के प्रति अभ्यस्त होने का प्रदर्शन करते हैं, न कि आंदोलित होते हैं, ऐसा क्यों? क्योंकि हमारे नेतागण ‘कमीशन’ का विष हमारी नसों में चढ़ाने में सफल रहे हैं। देखिये- जब कोई राष्ट्र अपने आदर्शों को भुलाकर उधारे आदर्शों का आश्रय लिया […]
लेखक: डॉ॰ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत
राजा हरदौलसिंह बुंदेलों की वीरता की कहानियों से इतिहास भरा पड़ा है। देशभक्ति की अनेकों कहानियों में से एक कहानी जिसे गौरवपूर्ण इतिहास कहा जाना उचित होगा-भ्रातृप्रेमी और देशप्रेमी राजा हरदौल की है। हरदौल ओरछा के राजा जुझारसिंह के छोटे भाई थे। उन दिनों देश की राजनीतिक परिस्थितियां बड़ी दयनीय थीं। दिल्ली पर उस समय […]
लाभकारी हो हवन हर जीवधारी के लिए जब हम कहते हैं कि ‘लाभकारी हो हवन हर जीवधारी के लिए’ तो उस समय हवन के वैज्ञानिक और औषधीय स्वरूप को समझने की आवश्यकता होती है। हवन की एक-एक क्रिया का बड़ा ही पवित्र अर्थ है। इस अध्याय में हम थोड़ा-थोड़ा प्रकाश याज्ञिक क्रियाओं की वैज्ञानिकता पर […]
दादरी रेलवे स्टेशन पर मैं अपने आदरणीय और श्रद्घेय भ्राता श्री देवेन्द्र सिंह आर्य (वरिष्ठ अधिवक्ता) के साथ फाटक बंद होने के कारण उनकी गाड़ी में बैठा रेलगाड़ी गुजरने की प्रतीक्षा कर रहा था। रेलगाड़ी पर्याप्त विलम्ब करने पर भी नहीं आयी। मैंने ज्येष्ठ भ्राता श्री से इतने पहले फाटक बंद कर देने का कारण […]
पी.एन.ओक कहते हैं…. अपनी पुस्तक ”क्या भारत का इतिहास भारत के शत्रुओं द्वारा लिखा गया है?” में लिखी गयी भूमिका में पी.एन. ओक महोदय लिखते हैं :- ”भारतीय इतिहास में जिन विशाल सीमाओं तथा अयथार्थ और मनगढ़ंत विवरण गहराई तक पैठ चुके हैं, वह राष्ट्रीय घोर संकट के समान है। जो अधिक दुखदायी बात है […]
कामनाएं पूर्ण होवें यज्ञ से नरनार की क्रोध, मद, मोह, लोभ इत्यादि के विषय में भी ऐसा ही मानना चाहिए। अर्थात एक सीमा तक क्रोध (मन्यु) ईश्वरीय व्यवस्था के अंतर्गत उचित है, परंतु सीमोल्लंघन होते ही क्रोध भी ईश्वरीय व्यवस्था में बाधक हो जाता है। यदि पापी, दुष्ट, अत्याचारी, अनाचारी और किसी भी असामाजिक व्यक्ति […]
गांधीजी का कहना था कि- ”अगर पाकिस्तान बनेगा तो मेरी लाश पर बनेगा” परंतु यह उनके जीते जी ही बन गया। हां! ये अलग बात है कि वह उनकी लाश पर न बनकर देश के असंख्य लोगों की लाशों पर बना। क्या ही अच्छा होता कि यदि वह केवल उनकी ही लाश पर बनता तो […]
महात्मा की अपेक्षाएं महात्मा तो वह होता है जिसकी आत्मा संसार के महत्व को समझकर विषमताओं, प्रतिकूलताओं और आवेश के क्षणों में भी जनसाधारण के प्रति असमानता का व्यवहार न करते हुए समभाव का ही प्रदर्शन करती है, किंतु जिसका व्यवहार हठीला हो, दुराग्रही हो, सच को सच न कह सकता हो, इसलिए एक पक्ष […]
गांधीजी के नैतिक मूल्यों ने इन समस्याओं को और उलझा दिया। आज परिणाम हम देख रहे हैं कि मानव-मानव से जुड़ा नहीं है, अपितु पृथक हुआ है। आज मानव दानव बन गया है। संप्रदाय आदि के झगड़े राष्ट्र में शैतान की आंत की भांति बढ़े हैं। क्योंकि हमने मजहब संप्रदाय, वर्ग, पंथ, भाषा, जाति आदि […]
गांधीजी की धर्मनिरपेक्षता गांधीजी की धर्मनिरपेक्षता को गांधीवाद का एक महान लक्षण बताकर महिमामंडित किया गया है। हिंदू उत्पीडऩ, हिंदू दमन, हिन्दू का शोषण और विपरीत मजहब वालों का तुष्टिकरण गांधीवाद में धर्मनिरपेक्षता की यही परिभाषा है। इस पर हम पूर्व लेखों में पर्याप्त प्रकाश डाल चुके हैं। अपनी इसी धर्मनिरपेक्षता के कारण गांधीजी ने […]