शिवाजी नाम की महिमा जब कभी भी भारतवर्ष के निष्पक्ष स्वातंत्र्य समर का इतिहास लिखा जाएगा तब भारत के महान सपूत छत्रपति शिवाजी महाराज को उस समर के महानायकों में अवश्य ही स्थान मिलेगा। छत्रपति शिवाजी भारत के इतिहास के उस महान नक्षत्र का नाम है, जिससे औरंगजेब सबसे अधिक भय खाता था। उसे रात […]
Author: डॉ॰ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत
लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-73
हाथ जोड़ झुकाये मस्तक वन्दना हम कर रहे गुरू ने शिष्य से एक दांव छुपाकर रखा-यह उनका ‘यथायोग्य वत्र्ताव’ था। उन्होंने उसे सब कुछ सिखाने का प्रयास किया-यह उनका ‘प्रीतिपूर्वक धर्मानुसार किया गया आचरण’ था। भारत का राष्ट्रीय अभिवादन ‘नमस्ते’ है। नमस्ते की सही मुद्रा है -व्यक्ति के दोनों हाथों का छाती के सामने आकर […]
ऋग्वेद (10/85/47) ने पति-पत्नी को जल के समान मिलने की बात तो कही ही है, साथ ही इनके मिलन को और भी अधिक सुंदर और उपयोगी बनाते हुए एक उपदेश और दिया है। जिसमें ‘सं मातरिश्वा’ की बात कही गयी है। इसका अभिप्राय है कि तुम दोनों परस्पर मिलकर ऐसे रहो जैसे दो वायु परस्पर […]
स्वर्णकाल नहीं था शाहजहां का शासनकाल शाहजहां को भारत में स्वर्णयुग का निर्माता माना जाता है। हम पूर्व पृष्ठों में कई स्थानों पर यह कह आये हैं कि उसका काल ‘स्वर्णयुग’ कहे जाने के योग्य नहीं था, क्योंकि उसमें ‘स्वर्णयुग’ कहे जाने के लिए अपेक्षित योग्यताएं नहीं थीं। शाहजहां ने जितने भर भी युद्घ किये-उनमें […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-72
हाथ जोड़ झुकाये मस्तक वन्दना हम कर रहे विनम्रता वैदिक धर्म का एक प्रमुख गुण है। सारी विषम परिस्थितियों को अनुकूल करने में कई बार विनम्रता ही काम आती है। इसीलिए विनम्र बनाने के लिए विद्या देने की व्यवस्था की जाती है। विद्या बिना विनम्रता के कोई लाभ नहीं दे सकती और विनम्रता बिना विद्या […]
वेद (अथर्व 03/30/2) में आया है :-अनुव्रत: पितु पुत्रो मात्रा भवतु संमना:। जाया पत्ये मधुमतीं वाचं वदतु शन्तिवाम्।। वेद का आदेश है कि पुत्र अपने पिता का अनुव्रती हो, पिता के अनुकूल आचरण करने वाला हो। पिता के दिये गये निर्देशों का वह श्रद्घापूर्वक पालन करे। ध्यान रहे कि पिता का हृदय अपनी संतान के […]
भारत का लोकतन्त्र एक दीवार है-उन लोगों के लिए जो प्रतिभावान और ईमानदार देशभक्त तो हैं, पर उनके पास लोकतन्त्र को नचाने के लिए अपने साधनों की कमी है। वे धनाढ्य नहीं हैं और ना ही उनके पास पार्टी तन्त्र है। लोकतन्त्र को पार्टीतन्त्र खा रहा है और पार्टी तन्त्र द्वारा निगले जा रहे लोकतन्त्र […]
कलकत्ता की टकसाल के अध्यक्ष रहे प्रो. विल्सन ने कहा था-”मैंने पाया कि ये लोग सदा प्रसन्न रहने वाले और अथक परिश्रमी हैं। उनमें चापलूसी का अभाव है और चरमसीमा की स्पष्टवादिता है। मैं यह कहना चाहूंगा कि जहां भी भयरहित विश्वास है वहीं स्पष्टवादिता भारतीयों के चरित्र की एक विशिष्ट विशेषता है। पढ़े-लिखे लोगों […]
पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-71
इदन्नमम् का सार्थक प्रत्येक में व्यवहार हो अब ज्ञान की जितनी बाल्टी खींचता जाता था कुंआ उतना ही भरता जाता था। वह ज्ञान बांटता गया और विद्यादान से बहुतों के जीवन में ज्ञान प्रकाश करता गया। उधर ईश्वर प्रसन्न होते गये-इस भक्त के इस ‘इदन्नमम्’ रूपी सार्थक जीवन पर। वह उस पर कृपालु होते गये-और […]
विश्वगुरू के रूप में भारत-54 (5) सर्वकल्याण था भारत का धर्म अन्त्योदयवाद और सर्वोदयवाद भारत के आदर्श रहे हैं। ऐसी उत्कृष्ट सांस्कृतिक भावना की रक्षा करना भी भारत का धर्म था। विदेशी लुटेरे शासक डाकू समूह के रूप में उठे और विश्व के कोने-कोने में फैल गये। उनका कार्य उस समय लूटमार और हिंसा हो […]