गीता का सातवां अध्याय और विश्व समाज आज के संसार में प्रकृतिवादी लोग ऐसी ही मानसिकता और सोच रखते हैं। प्रकृतिवादी नास्तिक बन गये हैं। उन्हें प्रकृति से आगे ईश्वर के होने की बात स्वीकार ही नहीं है। वे मानते हैं कि ये प्रकृति ही सब कुछ है और यह स्वयं यन्त्रवत चल रही है। […]
Author: डॉ॰ राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत
लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है
गीता का सातवां अध्याय और विश्व समाज महर्षि पतंजलि ‘योग दर्शन’ में कहते हैं कि संसार और शरीर आदि के अनित्य पदार्थों को नित्य, मिथ्या-भाषण, चोरी आदि अपवित्र कर्मों को पवित्र, विषय सेवन आदि दु:ख को सुख रूप, शरीर और भौतिक जड़ पदार्थों को चेतन समझना यह अविद्या है। अनित्य को नित्य मानकर करै जो […]
गीता का सातवां अध्याय और विश्व समाज ज्ञान-विज्ञान और ईश्वर का ध्यान गीता के सातवें अध्याय का शुभारम्भ करते हुए योगेश्वर श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि हे पार्थ! मुझ में मन को आसक्त करके अर्थात कर्मफल की आसक्ति के भाव को छोडक़र और संसार के भोगों या विषय वासनाओं को त्यागकर जिस प्रकार तू मुझे […]
चोरी का वैधानिकीकरण
देश का आधुनिकता और ऐश्वर्य के नाम पर भौतिकवाद ज्यों-ज्यों पांव पसारता जा रहा है-मानव जीवन पर उसका उतना ही घातक प्रभाव पड़ता जा रहा है। उदाहरण के लिए आप ए.सी. को लें। ए.सी. के प्रयोग से निकलने वाली एक घातक गैस मानव स्वास्थ्य को बड़ी गहराई से और घातक रूप से प्रभावित कर रही […]
‘धर्मवीरों’ की दृष्टि गुरू तेगबहादुर पर पड़ी कश्मीर और कश्मीरी संस्कृति को विनष्ट करने की सौगंध उठा लेने वाले शेर अफगान के विरूद्घ कश्मीरी पंडितों में विरोध का लावा उबल रहा था पर विरोध में प्रतिरोध का अभाव था। इसलिए विरोध प्रतिरोध के लिए किसी का बोध (मार्गदर्शन) प्राप्त करने का अभिलाषी था। तब इन […]
गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज अच्छे बुद्घिमानों का और पवित्रात्माओं का परिवार ऐसे ही योगभ्रष्ट लोगों को एक पुरस्कार के रूप में मिलता है। जिनके संसर्ग, सम्पर्क और सान्निध्य में रहकर वह योगभ्रष्ट व्यक्ति या योगी शीघ्र ही आगे बढऩा आरम्भ कर देता है। वह पूर्व जन्म के बुद्घि संयोग को फिर से […]
गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज योगेश्वर श्री कृष्णजी कहते हैं कि अर्जुन यह कार्य अर्थात मन को जीतना या वश में करना अभ्यास तथा वैराग्य के माध्यम से सम्भव है। अभ्यास और वैराग्य से होती मन की जीत। मन को लेते जीत जो पाते रब की प्रीत।। इस प्रकार श्रीकृष्णजी ने मन को […]
गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज भारत की ऐसी ही परम्पराओं में से एक परम्परा यह भी है कि जब किसी व्यक्ति को कोई कष्ट होता है तो दूसरा उसके विषय में यह कहता है कि यह कष्ट मुझे ऐसे ही अनुभव हुआ है जैसे कि मुझे ही हुआ हो। लोग अक्सर कहते हैं […]
गीता का छठा अध्याय और विश्व समाज अब पुन: हम उस आनन्द के विषय में ‘ब्रह्मानन्दवल्ली’ (तैत्तिरीय-उपनिषद) का उल्लेख करते हैं। जिसका ऋषि कहता है कि यदि कोई बलवान युवावस्था को प्राप्त वेदादि शास्त्रों का पूर्ण ज्ञाता सम्पूर्ण पृथ्वी का राजा होकर राज भोगे तो उसे उस राज से जो आनन्द प्राप्त होगा वह एक […]
देश से पहले संस्कृति बचाओ
भारत में अध्यात्म और मानव समाज का चोली दामन का साथ है। बिना अध्यात्म के भारत में मानव समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती। यही कारण है कि भारत में आध्यात्मिक संतों व महात्माओं का विशेष सम्मान है। प्राचीनकाल में लोग पाप पुण्य से बहुत डरते थे। यही कारण था कि अपने अधिकांश […]