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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-61

गीता का दसवां अध्याय और विश्व समाज सत्य है परमात्मा सृष्टि का आधार। उसके साधे सब सधै जीव का हो उद्घार।। वह परमपिता-परमात्मा सत्य है। सत्य वही होता है जो इस सृष्टि से पूर्व भी विद्यमान था और इसके पश्चात भी विद्यमान रहेगा, जो अविनाशी है। वह परमपिता परमात्मा अपने स्वभाव में अविनाशी है। वह […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-60

गीता का दसवां अध्याय और विश्व समाज शस्त्रों में वज्र मैं हूं, गायों में कामधेनु मैं हूं, प्रजनन में कामदेव मैं हूं, सर्पों में वासुकि मैं हूं। यहां श्रीकृष्णजी किसी भी जाति में या पदार्थादि में सर्वोत्कृष्ट को अपना रूप बता रहे हैं। सर्वोत्कृष्ट के आते ही छोटे उसमें अपने आप आ जाते हैं। जैसे […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-59

गीता का दसवां अध्याय और विश्व समाज ऐसी उत्कृष्ट श्रद्घाभावना के साथ जो लोग ईश भजन करते हैं-उनके लिए गीता का कहना है कि उन्हें मैं (भगवान) बुद्घि भी ऐसी प्रदान करता हूं कि जिसके द्वारा वे मेरे पास ही पहुंच जाते हैं। उन पर अपनी अनुकम्पा करने के लिए मैं उनके आत्मा के भाव […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

गुरू गोविन्द सिंह ने कीं अपनी सैन्य तैयारियां आरंभ

संघर्ष की भावना ने और गति पकड़ी गुरू तेगबहादुर का बलिदान व्यर्थ नही गया। उनके बलिदान ने भारतवासियों को अन्याय, अत्याचार और शोषण के विरूद्घ अपना संघर्ष जारी रखने की नई ऊर्जा प्रदान की। अपने गुरू के साथ इतने निर्मम अत्याचारों की कहानी को सुनकर लोगों के मन में जहां तत्कालीन सत्ता के विरूद्घ एकजुट […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-58

गीता का दसवां अध्याय और विश्व समाज ”पत्ते-पत्ते की कतरन न्यारी तेरे हाथ कतरनी कहीं नहीं-” कवि ने जब ये पंक्तियां लिखी होंगी तो उसने भगवान (प्रकत्र्ता) और प्रकृति को और उनके सम्बन्ध को बड़ी गहराई से पढ़ा व समझा होगा। हर पत्ते की कतरन न्यारी -न्यारी बनाने वाला अवश्य कोई है-पर वह दिखायी नहीं […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-57

गीता का नौवां अध्याय और विश्व समाज अन्य देवोपासक और भक्तिमार्गी पीछे हम कह रहे थे कि गीता बहुदेवतावाद की विरोधी है और एकेश्वरवाद की समर्थक है। यहां पुन: उसी बात को श्रीकृष्ण जी दोहरा रहे हैं, पर शब्द कुछ दूसरे हैं। जिन्हें सुनकर लगता है कि वे बहुदेवतावाद को बढ़ावा दे रहे हैं। वह […]

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संपादकीय

‘पराली’ बन सकती है हमारे प्राण हरने वाली

दिल्ली में हर साल की तरह इस बार भी स्मॉग ने अपना कहर बरपा किया है। इसकी गिरफ्त में आकर बहुत से लोगों को हृदय की बीमारियों ने घेर लिया है, तो कईयों को ऐसी ही दूसरी घातक बीमारियों के उभरने की शिकायत रही है। यह सब इसलिए हुआ है कि हमारे किसानों ने अपने […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-56

गीता का नौवां अध्याय और विश्व समाज इस प्रकार ईश्वर को एक देशीय न मानना स्वयं अपने बौद्घिक विकास के लिए भी आवश्यक है। आज का मनुष्य धर्म में भी व्यापार करता है। इसलिए हम उसे व्यापार में मुनाफे का एक सौदा बता रहे हैं कि वह ईश्वर को सर्वव्यापक सर्वान्तर्यामी माने और परिणाम में […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-55

गीता का नौवां अध्याय और विश्व समाज इससे अगले श्लोक में श्रीकृष्णजी कहते हैं कि इस संसार में लोग किसी को ब्राह्मïण, किसी को बड़ा, किसी को चाण्डाल तो किसी को छोटा कहते हैं। जबकि सभी मनुष्यों में ‘मैं’ ही समाया होता हूं। इसका भाव यह है कि आत्मा को ही परमात्मा मानने का व्यवहार […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-54

गीता का नौवां अध्याय और विश्व समाज गुरू अद्भुत दर्शनीय मिले अर्जुन हुआ निहाल। अतुलित ज्ञान गाम्भीर्य व्यक्तित्व बड़ा विशाल।। ऐसे अद्भुत दर्शनीय गुरू श्रीकृष्ण जी अपने शिष्य अर्जुन को बताने लगे कि अर्जुन! अब मैं तुझे पवित्रतम और अति उत्तम प्रत्यक्ष फल देने वाली, धर्म के सर्वथा अनुकूल और साधन करने में बड़ी सुगम […]

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