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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-92

गीता का अठारहवां अध्याय अंग्रेजों के कानून ने किसी ‘डायर’ को फांसी न देकर और हर किसी ‘भगतसिंह’ को फांसी देकर मानवता के विरूद्घ अपराध किया। यह न्याय नहीं अन्याय था। यद्यपि अंग्रेज अपने आपको न्यायप्रिय जाति सिद्घ करने का एड़ी चोटी का प्रयास आज भी करते हैं। इसके विपरीत गीता दुष्ट के विनाश करने […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-91

गीता का अठारहवां अध्याय योगीराज श्रीकृष्णजी अर्जुन को बताते हैं कि किसी भी देहधारी के लिए कर्मों का पूर्ण त्याग सम्भव नहीं है। ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई व्यक्ति कर्मों का पूर्ण त्याग कर दे। कर्म तो लगा रहता है, चलता रहता है। गीता की एक ही शर्त है जिसे श्रीकृष्णजी पुन: दोहरा […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-90

गीता का अठारहवां अध्याय अठारहवें अध्याय में गीता समाप्त हो जाती है। इसे एक प्रकार से ‘गीता’ का उपसंहार कहा जा सकता है। जिन-जिन गूढ़ बातों पर या ज्ञान की गहरी बातों पर पूर्व अध्याय में प्रकाश डाला गया है, उन सबका निचोड़ इस अध्याय में दिया गया है। एक अच्छे लेखक की अपनी विशेषता […]

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संपूर्ण भारत कभी गुलाम नही रहा

जब बैरागी ने शत्रु के सामने रख दिये धनुष बाण

सृष्टि नियमों के विरूद्घ मिथ्या सिद्घांत स्वतंत्रता सच्चिदानंद ईश्वरीय व्यवस्था का स्वाभाविक विधान है। संसार में कोई भी जीव ऐसा नही है और ना ही कोई वनस्पति ऐसी है जो किसी अन्य जीव या वनस्पति के आधीन करके ईश्वर ने उत्पन्न किया हो। ‘जीवम् जीवस्य भोजनम्’ का त्रुटिपूर्ण अर्थ करके यह मिथ्या और भ्रामक प्रचार […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-90

गीता का अठारहवां अध्याय अठारहवें अध्याय में गीता समाप्त हो जाती है। इसे एक प्रकार से ‘गीता’ का उपसंहार कहा जा सकता है। जिन-जिन गूढ़ बातों पर या ज्ञान की गहरी बातों पर पूर्व अध्याय में प्रकाश डाला गया है, उन सबका निचोड़ इस अध्याय में दिया गया है। एक अच्छे लेखक की अपनी विशेषता […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-89

गीता का सत्रहवां अध्याय अपनी चर्चा को निरंतर आगे बढ़ाते हुए श्रीकृष्णजी कहने लगे कि जो दान, ‘देना उचित है’-ऐसा समझकर अपने ऊपर प्रत्युपकार न करने वाले को, देश, काल तथा पात्र का विचार करके दिया जाता है उस दान को सात्विक दान माना गया है। इस प्रकार का दान सर्वोत्तम होता है, क्योंकि इस […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-88

गीता का सत्रहवां अध्याय अन्त में श्रीकृष्णजी तामसिक यज्ञ पर आते हैं। वे कहने लगे हैं कि जो यज्ञ विधिहीन है, जिसमें अन्नदान नहीं किया जाता, जिसमें मंत्र का विधिवत और सम्यक पाठ भी नहीं होता और ना ही कोई दक्षिणा दी जाती है, वह तामस यज्ञ कहलाता है। इस प्रकार के यज्ञों को अशिक्षित, […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-87

गीता का सत्रहवां अध्याय श्रीकृष्ण जी कह रहे हैं कि संसार में कई लोग ऐसे भी होते हैं जो कि दम्भी और अहंकारी होते हैं। ऐसे लोग अन्धश्रद्घा वाले होते हैं और शारीरिक कष्ट उठाने को ही मान लेते हैं कि इसी प्रकार भगवान की प्राप्ति हो जाएगी। यद्यपि ऐसे कठोर तपों का शास्त्रों में […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-86

गीता का सत्रहवां अध्याय मनुष्य के पतन का कारण कामवासना होती है। बड़े-बड़े सन्त महात्मा और सम्राटों का आत्मिक पतन इसी कामवासना के कारण हो गया। जिसने काम को जीत लिया वह ‘जगजीत’ हो जाता है। सारा जग उसके चरणों में आ जाता है। ऐसे उदाहरण भी हमारे इतिहास में अनेकों हैं जिन्होंने कामवासना को […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-85

गीता का सोलहवां अध्याय काम, क्रोध और लोभ इन तीनों को गीता नरक के द्वार रहती है। आज के संसार को गीता से यह शिक्षा लेनी चाहिए कि वह जिन तीन विकारों (काम, क्रोध और लोभ) में जल रहा है-इनसे शीघ्र मुक्ति पाएगा। आज के संससार में गीता से दूरी बनाकर अपने मरने का अपने […]

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